अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

पुरालेख तिथि-अनुसार पुरालेख विषयानुसार हमारे लेखक
तुक कोश // शब्दकोश // पता-

लेखकों से
 १. १२. २०१६

इस पखवारे-

अनुभूति-में-
भगवानस्वरूप सरस, सुरेन्द्र पाल वैद्य, शकुंतला बहादुर, पूनम मिश्रा और अनिरुद्ध नीरव की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि लाई हैं पर्वों के अवसर पर विशेष रूप से अभिव्यक्ति के पाठकों के लिये- बटर कुकी

फेंगशुई में- २४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर जीवन को सुखमय बना सकते हैं- २४- फेंगशुई घंटियाँ

बागबानी- के अंतर्गत लटकने वाली फूल-टोकरियों के विषय में कुछ उपयोगी सुझाव- २४- यायावर यहूदी की सदाबहार रौनक

सुंदर घर- शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- २४- ऊष्मा से भरपूर गुलाबी

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- आज के दिन (१५ दिसंबर को) स्वामी रंगनाथनानंद, रुस्तम कूपर, जीव मिल्खा सिंह, बाइचुंग भूटिया और अन्वेषा दत्ता ... विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- मालिनी गौतम की कलम से गणेश गंभीर के नवगीत संग्रह- संवत बदले का परिचय।

वर्ग पहेली- २८२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है यू.के. से
नीना पॉल की कहानी- सिगरेट बुझ गई

घर के चारों ओर पुलिस ने पीले रंग की टेप का घेरा डाल दिया।
सामने से निकलने वाला प्रत्येक राहगीर कुछ पल के लिए खड़ा होकर सोचने लगता कि इस घर मे क्या हुआ है? इस घर में किसी की मृत्यु हुई है जिसकी सूचना डाकिये से मिली है। जब डाकिया लैटर बॉक्स में चिट्ठी डाल रहा था तो उसे अंदर से एक अजीब प्रकार की महक आई। उसने दरवाजे पर दस्तक दी तो अंदर कोई हलचल न हुई। डाकिये को किसी अनहोनी की शंका होने लगी। उसने जेब से मोबाइल निकाल कर ९९९ पुलिस का नम्बर घुमा दिया। पुलिस का नम्बर क्या घुमाया कि शोर मचाती हुई दो पुलिस गाड़ियाँ व एक एंबुलेंस कुछ ही पलों में वहाँ पहुँच गईं। अपने चेहरे पर मास्क पहन कर पुलिस ऑफ़िसर ने दरवाजे को ज़ोर से धकेला परंतु वह अंदर से बंद था। पहले पुलिस ने मास्टर की सहायता से ताला खोलना चाहा। कई डबल गलेज ताले मास्टर की से भी नहीं खुलते। अंत में हार कर वे दरवाजे का ताला तोड़कर अंदर घुसे। अंदर घुसते ही उन्हें बहुत ज़ोर की महक आई। लिविंग रूम में बहुत गर्मी थी। ...आगे-
*

पुरानी बस्ती की लघुकथा-
क्रिसमस का उपहार
*

चीन से गुणशेखर की पाती
क्रिसमस के कलंदर
*

सतीश जायसवाल का संस्मरण
क्रिसमस की रात में शोक-गीत

*

पुनर्पाठ में अतुल अरोरा के संस्मरण
''बड़ी सड़क की तेज गली में'' का छठा भाग

पिछले पखवारे-

आलोक सक्सेना का व्यंग्य
सर्वर डाउन है
*

अशोक कुमार शुक्ल के साथ
हरदोई के प्रमुख पर्यटन स्थल
*

हजारी प्रसाद द्विवेदी का
ललित निबंध- कुटज
*

पुनर्पाठ में अतुल अरोरा के संस्मरण
''बड़ी सड़क की तेज गली में'' का पाँचवाँ भाग

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
दिव्या विजय की कहानी- बिट्टो

कभी कभी ज़िन्दगी में घटने वाले हादसे ज़िन्दगी का विभाजन कर देते हैं। ज़िन्दगी दो हिस्सों में बँट जाती है। एक हादसे के पहले वाली। दूसरी हादसे के बाद वाली। हर बात ऐसे ही याद रह जाती है, उस घटना की लकीर से कटी हुई। जैसे नीलाभ हर बात यों ही याद करता है। बिट्टो के पहले और बिट्टो के बाद। छोटा सा कस्बा था। पेइंग गेस्ट जैसी सुविधाएँ तब यहाँ प्रचलित नहीं थीं। किरायेदार को खाना खिलाने की आफत मोल लेना मध्यमवर्गीय घरों में नयी बात थी जिसके लिए घर की स्त्रियाँ राजी नहीं होती थीं। नए आदमी का घर के भीतर प्रवेश सावधानी की दृष्टि से ठीक नहीं माना जाता था। जवान होती लड़कियाँ हर घर में थीं। एक अलग दरवाजे से किरायेदार का आना जाना तय रहता था। और उसमें भी वक़्त तय था। ज़्यादा देर होने पर किच किच होने की पूरी सम्भावना रहती थी। गुजरात में दूरांत स्थित इस कस्बे में बगैर 'खाने पीने' वाले किरायेदार को ही तरजीह दी जाती थी। मकान पक्के थे पर कस्बे के मुहाने पर कच्चे मकानों की लड़ियाँ खेतों के संग संग पिरोई हुई चलती थीं। ... आगे-

आज सिरहाने उपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग घर–परिवार दो पल नाटक
परिक्रमा पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरण
चुटकुलेडाक-टिकट संग्रहअंतरजाल पर लेखन साहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वाद और स्वास्थ्य हास्य व्यंग्यडाउनलोड परिसररेडियो सबरंग

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

Loading