आकाशदीप

 

कहीं सफ़र में खो मत जाना
तुम
 मेरे  आकाशदीप  हो

जिसको  समझा  मैंने  अपना
जिसमें पाला  है  इक  सपना
जिसनें हर दिन समय संजोया
जिसमें  पाया सब कुछ खोया

 

जिसमें  अपनी  चमक सँवारी
तुम  मेरे  मोती  के सीप हो
कहीं  सफ़र में खो मत जाना
तुम
 मेरे  आकाशदीप   हो

कितने  सागर  पार  किये  हैं
लहरों  पर  हम  साथ जिये हैं
घनी  धूप  से  तपते  नभ में
ऊबड़-खाबड़  से  इस  पथ में

तूफानों   में   भी  ना  खोए
ऐसा   विस्तृत   अंतरीप  हो

कहीं  सफ़र में खो  मत जाना
तुम
  मेरे  आकाशदीप   हो