2

"हाइ, याई हेतेर टीना। (मेरा नाम टीना है)" कहकर उस युवती ने बिना झिझक मेरे कंधे पर हाथ रखकर अपनी ओर खींचा, दोनों ओर मेरे गालों का गालों से आलिंगन किया और मेरी मेज के सामनेवाली कुरसी पर बैठ गयी थी। मैं भावविभोर हो गया। अपनी इस नार्वेजीय विदेशी मां का स्नेह देख रहा था। प्रेम से बढ़कर भी और कोई स्नेह उपहार भला क्या होगा?

मेज पर बिछे मेजपोश पर घंटे, फूल, मोमबत्तियां, तथा सेंटाक्लाज की आकृतियां छपी हुई थीं। कागज के लाल रूमाल खाली गिलास के साथ, मोरपत्ती से बने सजे हुए थे। 

मेज के मध्य क्रिसमस बियर, सोडा, सोलो और कोकाकोला की बोतलें सजी हुई थी। टीना ने क्रिसमस बियर की बोतल खोली और उसे मेरे गिलास में डालने लगी। मैं यह देखकर हैरान हुआ परंतु कौतूहलवश मना न कर सका। मैंने मदिरा को पहले कभी हाथ नहीं लगाया था। उत्सुकता बढ़ रही थी। यह स्वीडिनेर्वियन देशों (नारवे, स्वीडेन और डेनमार्क) में आम बात थी। हर डिपार्टमेंटल स्टोर (किराने की दुकान) में बियर की बिक्री होती है।

मेरे लिए यह नयी बात थी कि एक ओर टीना से साक्षात्कार हुआ, तो दूसरी ओर मदिरा से साक्षात्कार। मेरे लिए दोनों ही घटनाएं अनहोनी थीं। एक में मदिरा का नशा तो दूसरी में सौंदर्य का नशा।

रोमांचक अनुभवों की तरफ ले जाते क्षण। मेरे मन में कभी यह विचार नहीं आया था कि मूर मुझे उपहार स्वरूप टीना से मिलवाएंगी। अनजान होते हुए भी कुछ समय के सान्निध्य से महसूस होने लगा था कि टीना अब अपरिचित नहीं है।

टीना ने मेरे हाथ पर हाथ रखा और मेरे नयनों में झांकने लगीं। मेरे विचारों की श्रृंखला टूट गयी। उसने पूछा, "कान दू दासे मे माई ! (क्या तुम मेरे साथ नृत्य करोगे?)" 
कहकर उसने मेरा हाथ खींचा और खड़ी हो गयी।

मैं उठा और उसके साथ चलते हुए स्पष्ट किया, "याई हार आल्ट्री वुर्ट। (मैंने पहले कभी नृत्य नहीं किया है।)"

"दे योर इके नूए (कोई फर्क नहीं पड़ता)" 

उसने मुझे नृत्य सिखाना आरंभ कर दिया। उसने अपना बायां हाथ मेरी कमर पर रखा और दायां हाथ मेरे कंधे पर और वैसा ही मुझे करने को कहा। अंग्रेजी पॉप संगीत जोर–शोर से बज रहा था। हम दोनों एक–दूसरे को थामे कभी बायीं ओर जाते फिर दायीं ओर और यह क्रम चलता रहता।

मूर हम दोनों के समीप आयीं और पूछने लगी, "मेरा उपहार कैसा लगा?"

"बहुत अच्छा मूर, बहुत अच्छा।" मूर मुसकरा रही थी। हम दोनों को खुश देखकर उसे बहुत अच्छा लगा था।

"मौज करो, खुश रहो।" वह दुआएं देकर चली गयी।

काफी रात्रि हो चुकी थी। काफी लोग जा चुके थे। कुछ जाने की तैयारी कर रहे थे। टीना ने मुझे घर चलने के लिए आमंत्रित किया। मैंने स्वीकृति दे दी। टैक्सी आयी, हम दोनों रवाना हुए। कुछ समय पश्चात हम टीना के घर पहुंच गये थे।

दो कमरो का सेट था। उसके ड्राइंग रूम को देखा जहां अनेक सुंदर तैलचित्र दीवार पर टंगे हुए थे।

दीवार के दूसरी ओर एक लगभग चार–पांच वर्ष के एक बालक का पोर्टरेट चित्र टंगा था। घुंघराले बाल, अफरीकी नाक–नक्श। बहुत सुंदर चित्र था। मेरे पूछने से पूर्व ही उसने कहा, "यह मेरा पुत्र है। यह तैलचित्र मूर ने बनाया है।"

"जब इसका तैलचित्र इतना सुंदर और आकर्षक है फिर वह तो और . . . कितना सुंदर होगा वह?"

"हां, वह सुंदर है . . . परंतु उसके सावलेपन ने मेरे जीवन में भूचाल खड़ा कर दिया था।" टीना इतनी देर में बहुत घुल–मिल गयी थी। एक–एक करके उसके जीवन की वीणा के तार झनझना उठे हो।

मैं शांत–निस्तब्ध टीना की नशीली आंखों में ममता के अश्रुओं को देख रहा था। वह सोफे पर बैठ गयी। उसने मेरी ओर देखते हुए आगे कहा, "मेरे जीवन की एक कमजोरी रही है। वह कमजोरी है प्रेम। प्रेम बाटने से कभी कम नहीं होता।" वह अपने अतीत के पन्नों को पढ़ती जा रही थी, "मेरा बचपन अजीबोगरीब घटनाओं से भरा पड़ा है। बचपन में ही विरोध का सामना किया है मैंने। मैं कभी भी अपने को संभाल न सकी। मेरे पुत्र पीटर के जन्म के पूर्व और बाद की दास्तान सुनोगे। तब स्वयं समझ जाओगे।" 

एक लंबी सांस भरते हुए उसने कहा, "मैं कॉलेज के दिनों से ही कार्ल को प्रेम करती थी। उन्ही दिनों हम दोनों ने सगाई कर ली थी। मैं उसके साथ रहती थी। कार्ल ने मुझे बताया कि अध्ययन के लिए वह एक वर्ष के लिए इंगलैंड जा रहा है। मैं यह सुनकर उदास हो गयी। 
मैंने उसे अपने गर्भवती होने की बात बतायी। उसने कहा था, "अभी बहुत जल्दी है। अभी हमको बच्चा नहीं चाहिए। इतनी जल्दी मैं पिता नहीं बनना चाहता। 

मेरे गर्भवती होने के उपरांत भी उसके इंगलैंड जाने के विचार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। उसके लिए इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए एक ही रास्ता था गर्भपात। मेरे लिए गर्भपात समाधान नही था। मैंने उससे कह दिया था कि मैं बच्चे को जन्म दूंगी। हमारे और कार्ल के मध्य एक द्वंद्व आरंभ हो गया था। कार्ल की आंखों में अक्सर आंसू छलक जाते। वह इंगलैंड चला गया।"

"तुम्हारी दास्तान बहुत दर्दभरी है टीना।" कहकर मैं उसके समीप बैठकर सुनने लगा था।

वह अपने बालों को संवारते हुए कहने लगी, "मैं असमंजस में पड़ गयी थीं। समय के साथ परेशानियां बढ़ने लगी थीं। मैं दुविधा में थी। अंततः मैंने गर्भपात करा लिया। कार्ल के अतिरिक्त किसी को भी ज्ञात न था कि मैं गर्भवती थी।

शायद मैं अपने आपको दंड देना चाहती थी। मैं अकेलापन महसूस करने लगी। मैंने कार्ल से भी गर्भपात का जिक्र नहीं किया। एक दिन मेरी सहेली का फोन आया। उसने कहा, "हाइ टीना, मेरे घर पर पार्टी है। तुम्हें अवश्य आना है। नहीं की कतई गुंजाइश नहीं है। मैं अपनी सहेली के आमंत्रण को नहीं ठुकरा सकी। पार्टी में मेरी मुलाकात एक अफरीकी युवक से हुई।

वह मेरे वाइन के गिलास को खाली न रहने देता था। जैसे ही गिलास खाली होता वह उसे वाइन से भर देता। काफी दिनों से मदिरा सेवन नहीं किया था मैंने। मैं उसके इस व्यवहार को ठुकरा न सकी थी। मैंने इतनी वाइन पी थी कि चलते समय लड़खड़ाने लगी। मेरी सहेली ने मुझे ऊपरवाले कमरे में विश्राम करने और रात वहीं ठहरने के लिए कहा। उस युवक ने मेरी बाहों को कंधे पर रखकर मुझे सहारा दिया और मुझे ऊपर कमरे में ले गया। ऊपर कमरे में पड़े बिस्तर पर गिरते ही मैं अचेत अवस्था में सोने–सी लगी थी कि वह युवक भी मेरे बिस्तर में मेरे ऊपर गिर पड़ा। मैंने उसे मना किया, परंतु वह नहीं माना। मैंने विरोध किया परंतु मानो मेरे शरीर में जान नहीं थी। मैंने चिल्लाने का प्रयास किया – "नहीं, नहीं," परंतु मेरे मुख से बोल नहीं फूट सके थे। मुझे पता ही नहीं चला कि कब मैं सोयी और कब वह युवक चला गया। जब दूसरे दिन सोकर उठी तब बहुत रोयी। मैंने यह घटना किसी को न बतायी। मैं अपने दर्द अपने अंतस्थल में छिपाने की आदी हो गयी थी। कुछ दिनों बाद मुझे पेट में अजीब–सा महसूस हुआ। जांच करायी तब पता चला कि मैं पुनः गर्भवती हो गयी हूं। मानो मेरे ऊपर पहाड़ टूट पड़ा हो। मैंने निर्णय लिया कि अब गर्भपात नहीं कराऊंगी।

"मैं कैसे कहूं कि जो बच्चा मेरे पेट में पल रहा है, वह मेरे पति का नहीं हैं। कड़वा सच कितना कष्टदायी होता है, मैं जान चुकी थी।

कुछ दिनों बाद अचानक कार्ल इंगलैंड से वापस आ गया। उसने मुझे गले लगाया और अपनी बाहों में भरते हुए कहा, "मुझे माफ कर दो। मुझे अब ज्ञात हो गया है कि मेरे लिए क्या आवश्यक है।  टीना, मेरे लिए तुम और मेरा यह बच्चा आवश्यक है।

"मैंने उसे माफ कर दिया। पर स्वयं अब दूसरी बार गर्भवती थी। यह विचार कर मैं सहम जाती। कार्ल ने बच्चे के जन्म के कुछ दिन पूर्व मुझसे कोर्ट मैरिज कर ली। मैं निश्चिंत हो गयी।

"अस्पताल में जब दाई ने मेरे बच्चे को मेरे हाथों में दिया, तब मैं देखकर हैरान हुई। बच्चे के काले बाल थे और गोरा रंग। मेरे परिवार में किसी के भी काले बाल नहीं थे।

"मैंने हिम्मत बांधकर कार्ल को उस रात की घटना बता दी। कार्ल ने आसमान ऊपर उठा लिया। उसने जो–जो उपमाएं मुझे दी थी, मैं उन्हें भूल नहीं सकती थी। वह मुझे छोड़कर इंगलैंड चला गया।

"मैंने इस घटना से बहुत कुछ सीखा है। जैसे अपने आप में इमानदार होना। मैं नहीं चाहती कि मेरे बच्चे से लोग भेदभाव करे। मैं दोबारा शादी भी नहीं करना चाहती।" कहकर उसने मेज पर एक मोमबत्ती जलायी और एक भारतीय फिल्मी गीत की कैसेट लगा दी, जिसमें स्वर निकल रहे थे, 'मरना यहां, जीना यहां, इसके सिवा जाना कहां।' इस गीत पर किसी को नृत्य करते नहीं देखा था। परंतु टीना ने मेरा हाथ पकड़ा, अपने ड्राइंग रूम में धीरे–धीरे नाचने लगी। मानो वह अतीत के सारे दुःख भूल जाना चाहती थी। सारा माहौल संगीतमय हो उठा था। वह कहने लगी, "दुनिया छोटी है। जीवन में व्यक्ति को मंजिल की तलाश करनी चाहिए। एक नदी की तरह। वह किधर किस ओर बहेगी उसे ज्ञान नहीं होता। बस दूसरों के लिए बहती चली जाती है।"

उसके विचार मेरे मन में गूंज रहे थे। मूर का स्मरण कर उसके बनाये हुए एक तैलचित्र को देख रहा था जिसमें नदी के ऊपर बर्फ ज़मी थी, जिस पर लोग स्की से फिसल रहे थे। इस चित्र को उसने मुझे उपहार में दिया था। उसके वाक्यों से मेरे मन में एक बाढ़ आ गयी थी, जिसमें मैं बह रहा था।


डा सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' : sshukla@online.no