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रहमान, अल्लाह–ओ–अकबर, दबी हुई आवाज से दोहराने लगा।

"देखा, कोई मशीन चिल्लायी–बिल्लायी नहीं। जहां राहे खुदा रहती है, सब काम आसान बन जाता है, "प्लेन के गेट की ओर बढ़ते हुए अब्दुल ने रहमान का हौसला बढ़ाने की कोशिश की।
"तारीक और अज़ीज नज़र नहीं आ रहे", रहमान अब भी कांप रहा था।

"रहमान, ये क्या हो गया आज तुझे? सुबह हमने साथ–साथ खुदा की बंदगी की, जो भी हम कर कर रहे हैं, खुदा के आदेश से। चल, फिक्र करना छोड़ दे, और सीधी नज़र रख कर आगे चल। सब कुछ हमारे प्लान के मुताबिक हो रहा है। तारीक और अज़ीज हम से आगे हैं, और हमारा सब खास सामान प्लेन के अन्दर पहुंच गया है।" 

अब्दुल, रहमान, तारीक और अज़ीज़, चार जवान आखिरी दिन को अंजाम देने जा रहे थे। फना होने जा रहे थे, और साथ–साथ दुनिया को सबक सिखाने वाले थे। तीन साल से इस दिन की योजना बन रही थी। अमेरिका की प्रतिष्ठा के चिह्न आज गिरने वाले थे। योजना बड़ी कुशलता से तैयार की गई थी। चार प्लेन आज मिसाइल बन कर वाशिंग्टन और न्यूयार्क पर आग बरसाने वाले थे।

अब्दुल की टीम के हिस्से सब से भारी काम आया था। अमेरिका के प्रमुख को खुदा के घर पहुंचाना था।

कोई आधा घंटा हुआ होगा। पूरब की ओर से निकला हुआ प्लेन पश्चिम की ओर गति करने लगा। प्लेन ने अपनी ऊँचाई आकाश में हासिल कर ली थी। प्लेन आधे से ज्यादा खाली था। जो भी मुसाफिर थे वो लंबी आरामदायक यात्रा की कल्पना में विहरने लगे थे।

अनायास एक ऐलान हुआ। अब्दुल के हाथ में माइक्रोफोन था। इस घड़ी का अब्दुल ने कई बार रिहर्सल किया था।

"मेरा नाम अब्दुल है। अब मैं तुम्हारा कैप्टन हूं। यह प्लेन अब हमारे कब्जे़ में हैं। खुदा का फरमान है कि आज का हमारा दिन अंतिम हो। आज हम सब साथ–साथ खुदा के पास जायेंगे। तुम्हारे दोनों पायलेट खुदा के पास पहुंच गये हैं। सब फ्लाइट अटेन्डण्ट्स को हमने चुप कर दिया है। ये प्लेन अब वाशिंग्टन की ओर जा रहा है। खुदा के दरबार में अमेरिका के प्रमुख की भी आज भरती होगी।"

एक सन्नाटा सा छा गया। सिर्फ प्लेन के इंजन की आवाज सुनाई दे रही थी। इतनी खुशनुमा सुबह, इतने आरामदायक सफर में, क्या ऐसा हो सकता है? 
शायद कोई मज़ाक कर रहा हो।

प्लेन के पिछले भाग में एन्ड्रयू म्यूज़िक सुन रहा था, और कॉफी के साथ सुबह के न्यूज पेपर का बिजनेस सेक्शन देख रहा था। तैंतीस साल की आयु में एन्ड्रयू ने काफी सफलता पायी थी। अपनी कंपनी की नयी प्रोडक्ट धूमधाम से जाहिर करने को लॉस एन्जेलिस जा रहा था।

सुनकर एन्ड्रयू स्तब्ध हो गया। ये कोई प्रैक्टिकल जोक है क्या? नजर उठाकर देखा तो कोई तीन आदमी खड़े थे। साफ सुथरे, अच्छे कपड़े पहने हुए, मगर तीनों के हाथ में खंजर थे। शायद खंजर लहू से भीगे हुए दिख रहे थे।

एन्ड्रयू ने कालेज में सायकॉलॉजी पढ़ी थी, और अपने बिजनेस में सफलता से उपयोग भी किया था। सोचा, कुछ बातचीत करने से अंदाज़ आ जायेगा कि मामला क्या है।

"अरे, अब्दुल भाई, ये क्या मज़ाक है? हमारी इच्छा तो आज लॉस एन्जेलिस जाने की है, खुदा के घर नहीं!"

"तुम्हारी इच्छा आज हमारे बस में हैं, और वो ही खुदा की मर्जी है। अगर किसी ने खिलाफ जाने की कोशिश की तो ये खंजर देखा, खुदा के नाम हुलाया जायेगा। लहू की नदियां बहेंगी, और पहुंचेंगी खुदा के द्वार," जवाब देते देते अब्दुल ने खंजर को अपने दांतों के बीच संभाला, और दोनों हाथों से अपने सर पर जेहाद का पट्टा बांधा।

"देखो, हम लोगों ने तुम्हारा कुछ बिगाड़ा नहीं। आप लोगों को कुछ चाहिये, कुछ शर्तें हैं तो वो पूरी हो सकती है। हम सब तो साधारण इन्सान हैं। हमें छोड़ दो, शायद खुदा और भी प्रसन्न होगा।"

"हमें कुछ नहीं चाहिये। हमारी कोई शर्ते नहीं। हमें जो चाहिये वो हमें मिल गया है, खुदा हमसे प्रसन्न हैं। आज कयामत का दिन है, और हम खुदा के दूत हैं।"

एन्ड्रयू को अंदाज होने लगा कि इन लोगों ने मरने का फैसला कर लिया है, और कोई बातों से नहीं मानने वाले।

"तुम्हें क्या मिलेगा, अब्दुल? तुम सब लोगों के भी मां–बाप, बीवी–बच्चे होंगे। क्या तुम्हारे माँ–बाप, बीवी–बच्चे तुम्हें वापिस जिन्दा देखकर खुश नहीं होंगे? क्यों ना कुछ शर्तें बना लो? जो चाहे वो मांग लो। जब मिल जाये, सब मुसाफिर को छोड़ दो, और ये प्लेन अपने मुल्क ले जाओ" एन्ड्रयू ने आखिरी कोशिश की।

"ओय, कौन हो तुम? अपने को बहुत होशियार समझते हो? बीवी–बच्चे, मां–बाप, सब हमारे साथ हैं। अब कुछ आगे बोला तो सबसे पहले खुदा के पास तुम्हें पहुंचाया जायेगा।" ऊँची आवाज में अब्दुल ने एन्ड्रयू को चुप कर दिया।

एन्ड्रयू अपनी सीट में थोड़ा और लंबा हो गया, ताकि अब्दुल और उसके साथी उसको ठीक तरह से देख ना सके। एन्ड्रयू ने अपना मोबाइल फोन निकाला और अपने घर का नंबर जोड़ा। फोन चल रहा था!

"हाइ हनी, आय लव यू। सुनो, मेरे पास समय ज्यादा नहीं, यह फोन कब बंद हो जाये मालूम नहीं। प्लेन हाईजैक हो गया है। कोई चार आदमी लगते हैं, खंजर के साथ। कोई पिस्तोल नहीं है। एक के कमर के पट्टे पर बॉम्ब बांधा हुआ लगता है।"

"ओह, एन्ड्रयू, ये क्या हो गया? ये कैसे हो सकता है?"

"लीसा, हनी, पचास मुसाफिर है प्लेन में। मेरी नज़दीक में एक जॉनी है, और थोड़े दूर एक गुरजीत बैठा है, सरदार है, केसरी रंग की पगड़ी पहने हुए। हमने कुछ गुपचुप और इशारों से बात कर ली है। हाइजैकर्स को प्लेन वॉशिंग्टन पर गिराना है, हम लोग ऐसा नहीं होने देंगे।"

"एन्ड्रयू, मुझे डर लग रहा है, " लीसा की पेट में आने वाली बेटी ने हंगामा मचाना शुरू कर दिया था।

"लीसा, वक्त बहुत कम है। मेरी एक बात सुनेगी? आज मैने इन हाइजैकर्स से एक नया शब्द जाना और समझा, वो है, 'कुरबानी'। अपनी बेटी का नाम 'कुरबानी' रखना, रखोगी ना?"

फोन कट हो गया, और दूर दूर लीसा की आंखों से आंसू बह रहे थे। लीसा कहती रही फोन पर, "एन्ड्रयू, मैं तुम्हें प्यार करती हूं , और हमेशा करती रहूंगी। मैं सदा तुम्हारा इंतजार करूंगी, चाहे ये दुनिया हो या और कोई . . . . "

संघर्ष शरू होने वाला था। कोई ठीक से प्लान करने का समय नहीं था। जॉनी ने पहले कुछ प्लेन उड्डयन के सबक सीखे थे। जॉनी को पायलट के केबिन तक पहुंचना जरूरी था। एन्ड्रयू ने कप्तान की जिम्मेदारी अपने सर ले ली। दूसरे मुसाफिरों को इशारों से समझा दिया, अगर खंजर से हमले हुए तो ब्लेंकेट या पिलो झट से सामने रख देना।

आगे खड़े थे अब्दुल, रहमान और तारीक, खंजरों से सजे हुए। एन्ड्रयू, जॉनी और गुरजीत को वहां तक पहुंचना था, और उनको वश में करना था।

गुरजीत ने कुछ तरकीब सोची। शायद ये हाइजैकर्स गुरजीत की ओर सहानुभूति भी दिखाये। दिखावे में गुरजीत की मूंछ, दाढ़ी, और सर की पगड़ी ये हाइजैकर्स को कुछ अपनापन महसूस कराये। और गुरजीत कुछ टूटी–फूटी हिंदी–पंजाबी–उर्दू में बोल सकता था जो इन हाइजैकर्स को पसंद भी आये।

गुरजीत की काया बड़ी थी। ऊँचा था, और चौड़ा भी। इज़ाज़त लेने का कोई समय ही नहीं था। गुरजीत खड़ा हो गया, और कुछ गड़बड़ी वाली भाषा में बोलते हुए निर्भयता से, निश्चिंतता से, एक–एक कदम माप के अब्दुल की ओर बढ़ने लगा। पीछे–पीछे चल दिये एन्ड्रयू और जॉनी, और कुछ और मुसाफिर।

अब्दुल को कुछ सोचने का वक्त नहीं मिला। यकायक ये लोग क्यों आगे आ रहे थे? इस जलूस को रोकना होगा। वह खंजर को हवा में घुमाते हुए जोर शोर से चिल्लाने लगा, "रूक जाओ, वहीं रूक जाओ . . . . "

यह जलूस रूकने वाला नहीं था।

अब्दुल ने गुरजीत पर खंजर से वार किया। गुरजीत ने अपनी पगड़ी झट से खंजर के सामने रख दी। खंजर निशाना चूक गया। गुरजीत के दायें हाथ पर घाव हो गया। लहू बहने लगा, और गिरी हुई केसरी पगड़ी लाल होने लगी।

एन्ड्रयू और जॉनी ने रहमान और तारीक से मुकाबला किया।

" जॉनी, तुम झट से पायलट के केबिन पहुंच जाओ" एन्ड्रयू ने जॉनी को हुक्म दिया। एन्ड्रयू ने रहमान और तारीक दोनों को अपने साथ की लड़ाई में पिरो दिया। अब्दुल का गिरा हुआ खंजर एन्ड्रयू के हाथ में आया था।

"गुरजीत, वो पगड़ी खोलो, हम उसका पट्टा बना के इन बदमाशों को बांध देंगे, " एन्ड्रयू बोल ही रहा था, और तारीक के नाम का एक खंजर एन्ड्रयू के सीने में घुस गया।

जॉनी पायलट के केबिन की ओर आगे बढ़ गया था।

जैसे ही केबिन का दरवाज़ा खोला तो जॉनी गिर गया। दोनों पायलट्स की लहू से भीगी हुई काया जमीन पर अवरोध बन गयी थी। गिरता हुआ जॉनी पायलट की सीट के नज़दीक आ पड़ा।

प्लेन और भी मचकने लगा। प्लेन के दोनों ओर के एंजिन आग की ज्वाला में लिपट गये थे और काला घना धुआँ निकल रहा था। प्लेन आकाश से गिर रहा था। नीचे की ज़मीन साफ–साफ दिखाई देने लगी थी।

अज़ीज़ को विघ्न आ गया। एक ओर प्लेन अपने निशाने की ओर ले जाना था, और दूसरी ओर यह जॉनी नाम का बंदा आ टपक पड़ा। अज़ीज़ ने पास रखे हुए खंजर से जॉनी पर वार किये। वही खंजर जिसने दोनों पायलट्स के गले काट दिये थे।

जॉनी घायल हुआ, मगर खंजर अज़ीज़ के हाथ से छूटकर दो कदम दूर गिरा। हाथों–हाथों की लड़ाई हुई, किस्मत जॉनी के साथ थी। अज़ीज़ गिरा, गिरे हुए खंजर की धार पर। अज़ीज़ के खंजर ने अज़ीज़ का गला काट दिया। रक्त की धार हुई, और कटे हुए गले से आवाज आयी, "ओ खुदा, मैं आ रहा हूं . . . . "

प्लेन जमीन से कुछ पांच सौ फीट ऊपर होगा। जमीन पर सब खेत दिखाई दे रहे थे। थोड़ी दूर पेड़ों से भरा कुछ जंगल सा दिखाई दे रहा था। शहर से दूर . . .और नीचे कोई हलचल नहीं दिख रही थी।

अचानक जॉनी की नज़र कुछ मकानों पर आ गिरी। ओह, ये तो स्कूल लगता है। कुछ बच्चे मैदान में खेल भी रहे थे। ये तो नहीं हो सकता। बहुत से बच्चे होंगे स्कूल में। ये प्लेन स्कूल पर नहीं गिरेगा। "ओ जीसस, ये प्लेन को कुछ आगे बढा दे, " जॉनी ने अपने भगवान से आखिरी विनती की।

प्लेन गिरा जंगल में आकर, निशाना चूक गया अपना, ना वो स्कूल पर गिरा ना वो वाशिंगटन पहुँचा।

जो भी प्लेन में थे, सब पहुंच गये खुदा के घर।

आग के गोले में से कहीं अल्लाह की पुकार हो रही थी, कहीं जीसस की, कहीं वाहे–गुरू की।

अब्दुल के हाथ सर पर बांधी हुई पट्टी पर थे, गुरजीत की आंखें केसरी पगड़ी पर थी, और एन्ड्रयू की नज़र 'कुरबानी' देख रही थी।


अश्विन गांधी : doorkarahi@doorkarahi.com