सामयिकी भारत से

छब्बीस फरवरी को प्रस्तुत भारतीय बजट पर पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा के विचार-


आँकड़ों का मकड़जाल


बजट पर किसी भी तरह की राय व्यक्त करने से पहले मैं यह बताना चाहूँगा कि पिछले एक साल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से घरेलू माँग और उच्च घरेलू बचत पर टिकी रही। दुनिया भर में जब अर्थव्यवस्था चरमरा गई, तो भारतीय अर्थव्यवस्था इन्हीं दो वजहों से नहीं चरमराई। घरेलू माँग बनी रहे और घरेलू बचत का क्रम जारी रहे, इसके लिए जरूरी है कि मूल्य वृद्धि नियंत्रित हो, फंड की सुलभता हो और लोगों की जेब में पैसे हों।

इस आलोक में अब हम जरा बजट को देखें। पिछले कुछ दिनों में जिस तेजी से महँगाई बढ़ी है और जनता त्रस्त है, उसमें लोग किसी भी वित्त मंत्री से महँगाई रोकने की अपेक्षा करेंगे। लेकिन मुझे दुख के साथ कहना पड़ता है कि महँगाई रोकने के नाम पर वित्त मंत्री ने कुछ नहीं किया और घुटने टेक दिए। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी कर दी गई है। जनता को अब प्रति लीटर पेट्रोल के लिए २.७१ रुपये और डीजल के लिए २.५५ रुपये अधिक देने होंगे। यह बात भी आश्चर्यजनक है कि वित्त मंत्री ने पेट्रोल और डीजल में अंतर नहीं किया। यदि सिर्फ पेट्रोल की कीमत बढ़ती, तो इसका असर कुछ लोगों पर ही होता। लेकिन डीजल का उपयोग परिवहन के अलावा कृषि कार्य, उत्पादन कार्य और निर्माण कार्य के लिए भी होता है। अर्थात इन सभी जगहों पर लागत बढ़ेगी, जिससे मूल्य वृद्धि और होगी और यह कहाँ तक जाएगी, इसका अंदाजा लगाना अभी कठिन है।

अब एक और बात पर गौर करें। वित्त मंत्री ने कहा है कि अप्रत्यक्ष कर से सरकार को ४६,५०० करोड़ रुपये की आमदनी होगी और ३,००० करोड़ की आमदनी सेवा कर से होगी। अर्थात, उत्पाद और सेवाओं के मद में लोगों पर लगभग ५०,००० करोड़ रुपये का भार पड़ेगा। यह बात सर्वविदित है कि आयकर दाताओं की संख्या सीमित है। ऐसे में, प्रत्यक्ष कर की छूट का लाभ महज एक तबके को हासिल होगा, जबकि ५०,००० करोड़ का भार सभी को वहन करना होगा। राहत पैकेज में भी कटौती की बात की गई है, जो लोगों की परेशानी बढ़ाने वाला है।

अब नजर रोजगार और कृषि क्षेत्र पर डालते हैं। बजट में बेरोजगारी का उल्लेख ही नहीं है। सरकार की फ्लैगशिप कार्यक्रम मनरेगा की स्थिति देखें। सरकार ने इस कार्यक्रम को पिछले साल देश भर में लागू कर दिया। पिछले बजट में लगभग ४० हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। लेकिन इस बार खानापूर्ति से काम चला लिया गया। सिर्फ १००० करोड़ रुपये अतिरिक्त दिए गए हैं। सब चीज जिस तरह से महँगी हुई है, उसमें १००० करोड़ से भरपाई तक नहीं हो सकती है। कृषि और आधारभूत संरचना, आर्थिक विकास से जुड़े दो प्रमुख क्षेत्र हैं। लेकिन खेती को लेकर कोई ऐक्शन प्लान नहीं लाया गया है। २० किलोमीटर सड़क रोजाना बनाने की बात जरूर की गई है, लेकिन यदि पाँच किलोमीटर सड़क भी रोजाना बन सकी, तो यह चमत्कार से कम नहीं होगा।

अब एक नजर राजकोषीय घाटे की तरफ डालें। वित्त मंत्री ने दावा किया है कि यह ५.५ फीसदी के आसपास है। यदि वास्तव में ऐसा होता, तो इसे चमत्कार माना जा सकता है। मुझे दुख के साथ कहना पड़ सकता है कि आंकड़ों का इससे बड़ा मकडज़ाल और कोई नहीं हो सकता है। बजट देखने से साफ है कि इसमें लाखों करोड़ रुपये दिखाए ही नहीं गए हैं।

बजट पारदर्शी भी नहीं है। कोयला क्षेत्र में रेगुलेटर बनाने की बात की गई है। सबको पता है कि रेगुलेटर उस क्षेत्र में होते हैं, जिसे निजी कंपनियों के लिए खोलते हैं। मसलन, टेलिकॉम, बीमा आदि। कोयला क्षेत्र में रेगुलेटर का मतलब क्या समझा जाए? क्या कोयला क्षेत्र भी निजी क्षेत्र के लिए खोलने की तैयारी सरकार ने कर ली है? यदि सरकार के पास ऐसी कोई मंशा है, तो उसे साफ कहना चाहिए कि कोयला क्षेत्र निजी कंपनियों के लिए खोले जा रहे हैं। इसके परिणाम क्या होंगे, कहना मुश्किल है।

अंत में, मैं यही कहना चाहूँगा कि बजट पूरी तरह से निराशाजनक है। महँगाई की आम में घी डालने जैसा है। पूरा बजट ऐसा है, जो महँगाई को कहाँ तक बढ़ाकर ले जाएगा, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। लोगों को राहत मिलने की जगह, परेशानी मिलेगी और हम कह सकते हैं कि एक चरमराती अर्थव्यवस्था की स्थिति से देश को गुजरना पड़ सकता है। घरेलू बचत पर सीधे-सीधे नकारात्मक असर पड़ेगा, जिसकी चपेट में घरेलू माँग अपने आप आएगी।

८ मार्च २०१०