दो संस्कृतियों का सेतुः जनकपुर - श्वेता प्रियदर्शनी |
जानकी मंदिर, जनकपुर नेपाल |
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जनकपुर वो पवित्र स्थान है
जिसका धर्मग्रंथों, काव्यों एवं रामायण में उत्कृष्ट
वर्णन है। उसे स्वर्ग से ऊँचा स्थान दिया गया है जहाँ
मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र एवं आदर्श नारी सीता का
विवाह संपन्न हुआ। त्रेता युग के प्रकांड विद्वान एवं
तत्कालीन मिथिला नरेश शिरध्वज जनक ने अपने राज्य में आए
अकाल के निवारण हेतु ऋषि-मुनियों के सुझाव पर हल जोतना
प्रारंभ किया। हल जोतने के क्रम में एक लड़की मिली। राजा
ने उसे अपनी पुत्री स्वीकार किया। फलस्वरूप सीता,
'जानकी' भी कही जाती है। राजा जनक शिवधनुष की पूजा करते
थे। एक दिन उन्होंने देखा जानकी इसे हाथ में उठाए हुई
थीं। शिवधनुष उठाना किसी साधारण व्यक्ति के बस का नहीं,
जनक समझ गए कि जानकी साधारण नारी नहीं है। अतः राजा जनक
ने प्रतिज्ञा की कि जो शिवधनुष तोड़ेगा उसी से जानकी की
शादी होगी। अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार राजा जनक ने
धनुष-यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ से संपूर्ण संसार के
राजा, महाराजा, राजकुमार तथा वीर पुरुषों को आमंत्रित
किया गया। समारोह में अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र
रामचंद्र और लक्ष्मण अपने गुरु विश्वामित्र के साथ
उपस्थित थे। जब धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की बारी आई तो
वहाँ उपस्थित किसी भी व्यक्ति से प्रत्यंचा तो दूर धनुष
हिला तक नहीं। इस स्थिति को देख राजा जनक को अपने-आप पर
बड़ा क्षोभ हुआ। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में
लिखा है- अब अनि कोउ माखै भट मानी, वीर विहीन मही मैं जानी तजहु आस निज-निज गृह जाहू, लिखा न विधि वैदेही बिबाहू सुकृतु जाई जौ पुन पहिहरऊँ, कुउँरि कुआरी रहउ का करऊँ जो तनतेऊँ बिनु भट भुविभाई, तौ पनु करि होतेऊँ न हँसाई राजा जनक के इस वचन को सुनकर लक्ष्मण के आग्रह और गुरु की आज्ञा पर रामचंद्र ने ज्यों ही धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई त्यों ही धनुष तीन टुकड़ों में विभक्त हो गया। बाद में अयोध्या से बारात आकर रामचंद्र और जनक नंदिनी जानकी का विवाह माघ शीर्ष शुक्ल पंचमी को जनकपुरी में संपन्न हुआ। कहते हैं कि कालांतर में त्रेता युगकालीन जनकपुर का लोप हो गया। करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व महात्मा सूरकिशोर दास ने जानकी के जन्मस्थल का पता लगाया और मूर्ति स्थापना कर पूजा प्रारंभ की। तत्पश्चात आधुनिक जनकपुर विकसित हुआ। जनकपुर नेपाल के तराई क्षेत्र में है जो भारत के बिहार राज्य के सीतामढ़ी, दरभंगा तथा मधुबनी जिले के नज़दीक है। नौलखा मंदिर जनकपुर में राम-जानकी के कई मंदिर हैं। इनमें सबसे भव्य मंदिर का निर्माण भारत के टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी ने करवाया। पुत्र प्राप्ति की कामना से महारानी वृषभानु कुमारी ने अयोध्या में 'कनक भवन मंदिर' का निर्माण करवाया परंतु पुत्र प्राप्त न होने पर गुरु की आज्ञा से पुत्र प्राप्ति के लिए जनकपुरी में १८९६ ई. में जानकी मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर निर्माण प्रारंभ के १ वर्ष के अंदर ही वृषभानु कुमारी को पुत्र प्राप्त हुआ। जानकी मंदिर के निर्माण हेतु नौ लाख रुपए का संकल्प किया गया था। फलस्वरूप उसे 'नौलखा मंदिर' भी कहते हैं। परंतु इसके निर्माण में १८ लाख रुपया खर्च हुआ। जानकी मंदिर के निर्माण काल में ही वृषभानु कुमारी के निधनोपरांत उनकी बहन नरेंद्र कुमारी ने मंदिर का निर्माण कार्य पूरा करवाया। बाद में वृषभानुकुमारी के पति ने नरेंद्र कुमारी से विवाह कर लिया। जानकी मंदिर का निर्माण १२ वर्षों में हुआ लेकिन इसमें मूर्ति स्थापना १८१४ में ही कर दी गई और पूजा प्रारंभ हो गई। जानकी मंदिर को दान में बहुत-सी भूमि दी गई है जो इसकी आमदनी का प्रमुख स्रोत है। जानकी मंदिर परिसर के भीतर प्रमुख मंदिर के पीछे जानकी मंदिर उत्तर की ओर 'अखंड कीर्तन भवन' है जिसमें १९६१ ई. से लगातार सीताराम नाम का कीर्तन हो रहा है। जानकी मंदिर के बाहरी परिसर में लक्ष्णण मंदिर है जिसका निर्माण जानकी मंदिर के निर्माण से पहले बताया जाता है। परिसर के भीतर ही राम जानकी विवाह मंडप है। मंडप के खंभों और दूसरी जगहों को मिलाकर कुल १०८ प्रतिमाएँ हैं। विवाह पंचमी विवाह पंचमी के दिन पूरी रीति-रिवाज से राम-जानकी का विवाह किया जाता है। जनकपुरी से १४ किलोमीटर 'उत्तर धनुषा' नामक स्थान है। बताया जाता है कि रामचंद्र जी ने इसी जगह पर धनुष तोड़ा था। पत्थर के टुकड़े को अवशेष कहा जाता है। पूरे वर्षभर ख़ासकर 'विवाह पंचमी' के अवसर पर तीर्थयात्रियों का तांता लगा रहता है। नेपाल के मूल निवासियों के साथ ही अपने देश के बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान तथा महाराष्ट्र राज्य के अनगिनत श्रद्धालु नज़र आते हैं। जनकपुर में कई अन्य मंदिर और तालाब हैं। प्रत्येक तालाब के साथ अलग-अलग कहानियाँ हैं। 'विहार कुंड' नाम के तालाब के पास ३०-४० मंदिर हैं। यहाँ एक संस्कृत विद्यालय तथा विश्वविद्यालय भी है। विद्यालय में छात्रों को रहने तथा भोजन की निःशुल्क व्यवस्था है। यह विद्यालय 'ज्ञानकूप' के नाम से जाना जाता है। मिथिला-राजधानीः जनकपुर जनकपुर के बाज़ार में भारतीय मुद्रा से आसानी से व्यापार होता है। जनकपुर से करीब १४ किलोमीटर उत्तर के बाद पहाड़ शुरू हो जाता है। जनकपुर से राष्ट्रीय स्तर पर विमान सेवा उपलब्ध है। नेपाल की रेल सेवा का एकमात्र केंद्र जनकपुर है। जनकपुर जाने के लिए बहार राज्य से तीन रास्ते हैं। पहला रेल मार्ग जयनगर से है, दूसरा सीतामढ़ी जिले के भिठ्ठामोड़ से बस द्वारा है, तीसरा मार्ग मधुबनी जिले के उमगाँउ से बस द्वारा है। जनकपुर से काठमांडू जाने के लिए हवाई जहाज़ भी उपलब्ध हैं। जनकपुर में यात्रियों के ठहरने हेतु होटल एवं धर्मशालाओं का उचित प्रबंध है। यहाँ के रीति-रिवाज बिहार राज्य के मिथलांचल जैसे ही हैं। क्यों न हो मिथिला की राजधानी मानी जाती है जनकपुर। भारतीय पर्यटक के साथ ही अन्य देश के पर्यटक भी काफी संख्या में जनकपुर आते हैं। जनकपुर आकर ऐसा नहीं
लगता कि हम किसी और देश में हैं। यहाँ की हर चीज़ अपनेपन
से परिपूर्ण लगती है। नेपाल हमारा सर्वाधिक निकट पड़ोसी
राष्ट्र है। खासकर जनकपुर में दो देशों की संस्कृतियों
के अभूतपूर्व संगम पर आश्चर्य होना स्वाभाविक है। यहाँ
के परिवेश के निरीक्षण के पश्चात यदि हम जनकपुर को दो
देशों तथा दो संस्कृतियों का 'सेतु' कहें तो कोई
अतिशयोक्ति नहीं होगी। १८ मई २००९ |