फ़िल्म-इल्म

हिंदी फ़िल्मों में रक्षाबंधन
ममता सिंह

चलचित्र या फ़िल्‍मों का आविष्‍कार एक वैज्ञानिक अजूबे के तौर पर हुआ था। लेकिन जैसे-जैसे फ़िल्‍मों का कारवाँ बढ़ता गया, ये एक वैज्ञानिक-अजूबे की बजाय ज़िंदगी का आईना बनती चली गईं। भारतीय फ़िल्‍मों की दास्‍तान तो बहुत ही अनूठी रही है। हमारे समाज और जीवन की छोटी-छोटी घटनाएँ इनमें कुछ इस तरह समा गई हैं ‍कि कभी-कभी फ़िल्‍मों की कोई घटना बहुत असली और कभी ज़िंदगी की कोई घटना बहुत फ़िल्‍मी लगने लगती है। हमारी फ़िल्‍मों की जान रहा है उसका 'मेलोड्रामा'। नाटकीयता पैदा करने के लिए भारतीय फ़िल्‍मकारों ने हमारे सामाजिक-सांस्‍कृतिक-जीवन के कुछ आयामों को अपनी फ़िल्‍मों का हिस्‍सा बनाया।

भावुकता का छौंक लगाने के लिए फ़िल्‍मकारों ने कभी करवा-चौथ का सहारा लिया तो कभी रक्षा-बंधन का। जाने कब और कैसे रक्षा-बंधन फ़िल्‍मों का अटूट हिस्‍सा बन गया। हालाँकि इधर के कुछ सालों में बहुत कम ऐसी फ़िल्‍में आई हैं जिनमें रक्षाबंधन का ज़िक्र आता हो लेकिन पचास से लेकर अस्‍सी के दशक तक रक्षाबंधन को फ़िल्‍मों की कहानियों में खूब शामिल किया जाता रहा है। इसी बहाने फ़िल्‍म-संसार को कुछ बेहद भावुक प्रसंग मिले हैं और मिले हैं कुछ सुरीले गीत।

राखी का ज़िक्र करें तो सबसे पहले याद आती है फ़िल्‍म 'रेशम की डोरी'। सन १९७४ में आई इस फ़िल्‍म के निर्देशक थे गुरुदत्त के भाई आत्‍माराम। धर्मेंद्र की बहन बनी अभिनेत्री कुमुद छुगानी गाती हैं- 'बहना ने भाई की कलाई पे प्‍यार बाँधा है, प्‍यार के दो तार से संसार बाँधा है, रेशम की डोरी से संसार बाँधा है'। बहुत सारे लोग सोचते हैं कि ये लता मंगेशकर का गाया गीत है। पर ये मान्‍यता ग़लत है, ये गाना सुमन कल्‍याणपुर ने गाया है। शैलेंद्र ने लिखा और संगीत शंकर जयकिशन का।

फ़िल्‍म 'अनपढ़' सन १९६२ में आई थी। इस फ़िल्‍म में भी भाई-बहन का प्रसंग आता है, इस फ़िल्‍म में राजा मेंहदी अली खाँ ने राखी का एक बेहतरीन गीत लिखा था। 'रंग बिरंगी राखी लेकर आई बहना, राखी बँधवा ले मेरे वीर'। जहाँ तक मुझे याद आता है इस फ़िल्‍म में धर्मेंद्र ने माला सिन्‍हा के भाई का किरदार निभाया था। दरअसल मदनमोहन के बनाए इस फ़िल्‍म के दो गाने इतने लोकप्रिय हो गए कि यह गीत केवल रक्षाबंधन पर ही रेडियो से बजाया जाता है। वरना साल भर कहीं गुम पड़ा रहता है। लता जी ने इस गाने को गाया भी बड़ा प्‍यारा है। ख़ास कर 'राखी बँधवा ले मेरे वीर' में एक अलग तरह की पंजाबियत झलकती है। ज़रा इसके अंतरे पर ग़ौर कीजिए 'मैं ना चाँदी ना सोने के हार माँगूँ, अपने भैया का थोड़ा-सा प्‍यार माँगूँ, इस राखी में प्‍यार छुपा ले आई बहना, राखी बँधवा ले मेरे वीर'। इस फ़िल्‍म में राखी का प्रसंग जितना दिव्‍य आया है, शायद कम ही फ़िल्‍मों में है। बिना किसी नाटकीयता के साथ निर्देशक मोहन कुमार ने इस फ़िल्‍म में राखी-प्रसंग को अत्यंत स्वाभाविक फ़िल्माया है।

लीजिए अब याद आ गई वो फ़िल्‍म जिसने बहनों के लिए रक्षाबंधन का एक नायाब गीत दिया है, ये है एल.वी.प्रसाद की फ़िल्‍म- 'छोटी बहन' (१९५९)। ये गीत नंदा और रहमान पर फ़िल्‍माया गया है और रक्षाबंधन का बहुत प्‍यारा गाना है। जैसा कि नाम से ज़ाहिर है, ये फ़िल्‍म एक छोटी बहन की व्‍यथा-कथा है। दक्षिण की इस फ़िल्‍म ने काफ़ी लोकप्रियता हासिल की थी। ख़ासकर इस गाने ने- 'भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना, भैया मेरे, छोटी बहन को ना भुलाना'। इस गाने का आखिरी अंतरे पर ध्‍यान दीजिए 'शायद वो सावन भी आए, जो बहना का रंग ना लाए, बहन पराए देश बसी हो, अगर वो तुम तक पहुँच ना पाए, याद का दीपक जलाना जलाना, भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना'। परदेस जा बसी कितनी ही बहनों की मनोव्‍यथा को व्‍यक्‍त किया है गीतकार शैलेंद्र ने। ऐसी बहनें जो हर राखी पर अपने भैया के पास नहीं पहुँच सकती हैं। इस गाने को सुनकर राखी का उल्‍लास मन-मस्तिष्‍क पर छा जाता है।

मैंने ज़िक्र किया उन बहनों का जो विवाह के बाद परदेस जा बसी हैं और हर बरस अपने भैया कि पास नहीं पहुँच सकती हैं। इन भावनाओं को बहुत खूबसूरती से व्‍यक्‍त किया गया था फ़िल्‍म 'बंदिनी' के गीत अबके बरस भेज भैया को बाबुल में। यह गीत शुभा खोटे पर फ़िल्‍माया गया था। हैरत की बात है कि एक बार फिर ये शैलेंद्र का गीत है, आपको भी आश्‍चर्य होना चाहिए कि रक्षाबंधन जैसे विषय पर कैसे गीतकार शैलेंद्र इतने सुंदर गीत बार-बार लिख सके। इस गाने का अंतरा कितना भावुक है देखिए- 'बैरन जवानी ने छीने खिलौने, और मेरी गुड़िया चुराई। बाबुल जी मैं तेरे नाज़ों से पाली, फिर क्‍यों हुई मैं पराई। बीते रे जग कोई चिठिया ना पाती, ना कोई नैहर से आए रे। अब के बरस भेज भैया को बाबुल, सावन में लीजो बुलाए रे।'  १९६३ में रचे इस गीत में जिस व्‍यथा की बात की गई है, आज वो किस क़दर गहन हो चुकी है। जीवन की व्‍यस्‍तताएँ बढ़ गईं हैं, बहनें भी गृहस्‍थी और बच्‍चों में उलझ जाती हैं, रक्षाबंधन पर मायके जाना मुश्किल होता जा रहा है, और सारी हड़बड़ी के बीच कभी-कभी इस गृहिणी के मन के भीतर छिपी नन्‍हीं मासूम बहना जाग जाती है, अपनी बेबसी पर आँसू बहाती है। चाहकर भी बचपन के रक्षाबंधन के वो मासूम दिन अब वापस नहीं आ सकते। अब ना वो पहले जैसी बहना रही और ना ही उसके भैया पहले जैसे भैया रहे। ज़िम्‍मेदारियों के पहाड़ और दुनियादारी की समझ ने दोनों को बदल के रख दिया है।

एक उदास बहन जब अपने भैया को याद करती है तो ये गीत गाती है- 'चंदा रे मेरे भैया से कहना, बहना याद करे'। ये फ़िल्‍म सन १९८० में आई थी और निर्देशक थे राम माहेश्‍वरी। ख़ैयाम ने इसका संगीत तैयार किया था। ये राखी के बहुत ही मार्मिक गीतों में से एक है। साहिर लुधियानवी लिखते हैं- 'क्‍या बतलाऊँ कैसा है वो, बिल्‍कुल तेरे जैसा है वो, तू उसको पहचान ही लेगा, देखेगा तो जान ही लेगा, तू सारे संसार में चमके, हर बस्‍ती हर गाँव में दमके, कहना अब घर वापस आ जा, तू है घर का गहना, बहना याद करे।' ये गीत उस भाई के लिए गाया जा रहा है जो घर को छोड़कर ग़लत राह पर चला गया है और बहन उसे शिद्दत से याद कर रही है।

लगभग इसी भाव का गीत फ़िल्‍म 'दीदी' में भी था। और इसे शुभा खोटे पर फ़िल्‍माया गया था। गीत के बोल थे, 'मेरे भैया को संदेसा पहुँचाना के चंदा तेरी जोत बढ़े'। देखा आपने, यहाँ भी चंदा के ज़रिए बहना अपने भैया को संदेस भेज रही है। अब फ़िल्‍म 'काजल' के गीत को लीजिए, अदाकारा मीनाकुमारी पर ये गीत फ़िल्‍माया गया है, जिसमें बहन, अपने भाई को चंदा कहती है- 'मेरे भैया मेरे चंदा मेरे अनमोल रतन, तेरे बदले में ज़माने की कोई चीज़ ना लूँ'।

देव आनंद ने बनाई थी फ़िल्‍म 'हरे रामा हरे कृष्‍णा' जिसमें ज़ीनत अमान देव साहब की बहन होती हैं। वो बहन जो बाद में हिप्‍पी बनकर 'दम मारो दम' गाती है। कहानी में खूब पेंच जोड़ा था देव साहब ने। इस फ़िल्‍म में आनंद बख्‍शी ने लिखा था- 'फूलों का तारों का सबका कहना है, एक हज़ारों में मेरी बहना है'। कितना मार्मिक लगता है ये गीत, फ़िल्‍म में ये गीत एक बार भाई देव आनंद के लिए किशोर कुमार गाते हैं और बाद में बहन ज़ीनत अमान के लिए गाती हैं लता मंगेशकर। सन १९७१ में आई इस फ़िल्‍म के गाने में बहना का कितना सुंदर चित्रण है 'जीवन के दुखों से डरते नहीं हैं, ऐसे बच के सच से गुज़रते नहीं हैं, सुख की है चाह तो दुख भी सहना है, एक हज़ारों में मेरी बहना है’। कितना बड़ा दर्शन है इस गीत में। बहुत ख़ास है इस गाने का फिल्‍मांकन। और कहानी में इसे बुना भी बहुत कुशलता के साथ गया है। ये गीत मास्‍टर सत्‍यजीत और बेबी फरीदा पर और बाद में देव आनंद और ज़ीनत अमान पर फ़िल्‍माया गया है। 'एक हज़ारों में मेरी बहना है' ये जुमला अब एक कहावत बन चुका है।

बहन और भाई का मार्मिक प्रसंग फ़िल्‍म 'मजबूर' में भी दिखाया गया है, जिसमें बहन फरीदा जलाल पैरों से लाचार है और ज़िंदगी से बहुत तंग आ चुकी है। भाई अमिताभ बच्‍चन उसके लिए गाते हैं 'देख सकता हूँ मैं कुछ भी होते हुए, नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए'। वही अमिताभ बच्‍चन आगे चलकर एंग्री यंग मैन बन गए। उनकी इसी इमेज को भुनाया गया था फ़िल्‍म 'अंधा क़ानून' में, जिसमें बहन पर हुए अत्‍याचार का बदला भाई गिन-गिन कर लेता है। इस फ़िल्‍म में भी 'मेरी बहना दीवानी है' शीर्षक वाला एक राखी गीत है। लेकिन अपने मामूली बोलों, औसत संगीत और ख़राब गायकी की वजह से ये गीत ज़्यादा उल्‍लेखनीय नहीं बन सका है।

इसी तरह राजेश खन्‍ना की मुख्‍य भूमिका वाली फ़िल्‍म 'सच्‍चा-झूठा' भी बहन और भाई के एक प्रसंग पर आधारित थी। राजेश खन्‍ना पर इस फ़िल्‍म में एक ऐसा गीत था, जो इतना लोकप्रिय हुआ कि आज तक रेडियो पर जब भी बजता है, लोग इसे बहुत उत्‍साह के साथ गुनगुनाते हैं। ये गीत है- 'मेरी प्‍यारी बहनिया बनेगी दुल्‍हनिया, सजके आएँगे दूल्‍हे राजा, भैया राजा बजाएगा बाजा'। वाह क्‍या गीत है ये। इस गीत की सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि हमारे घरों की शादियों में इसे खोजकर जुटाया और बजाया जाता है।

मनोज कुमार की फ़िल्‍म 'बेईमान' में भी रक्षाबंधन का प्रसंग आता है। मनोज कुमार और नाजिमा पर फ़िल्‍माया गया है इस फ़िल्‍म का एक राखी गीत। 'ये राखी बंधन है ऐसा, जैसे चंदा और किरण का, जैसे बदरी और पवन का, जैसे धरती और गगन का, ये राखी बंधन है ऐसा'। वर्मा मलिक ने इस गाने को लिखा था।

१९५६ में आई फ़िल्‍म 'तूफ़ान और दिया' में बहन के ससुराल जाने का प्रसंग आता है, और गीता राय और लता मंगेशकर की आवाज़ों में एक सुंदर गाना आता है- 'मेरी छोटी-सी बहन, देखो गहने पहन ससुराल चली रे बन ठन के'। ये भले रक्षाबंधन का गीत नहीं है, पर बहन के प्रति अगाध प्रेम का गीत तो है ही।

पचास और साठ के दशक में रक्षाबंधन फ़िल्‍मकारों को एक उपयोगी विषय लगता था। तभी तो ना सिर्फ़ 'राखी' नाम से बल्कि 'रक्षाबंधन' नाम से भी फ़िल्‍म बनाई गई है। 'राखी' नाम से दो बार फ़िल्‍म बनी, एक बार सन १९४९ में, दूसरी बार सन १९६२ में, सन ६२ में आई फ़िल्‍म को ए. भीम सिंह ने बनाया था, कलाकार थे अशोक कुमार, वहीदा रहमान, प्रदीप कुमार और अमिता। इस फ़िल्‍म में राजेंद्र कृष्‍ण ने शीर्षक गीत लिखा था- 'राखी धागों का त्‍यौहार'।

आइए यहाँ आपको राखी शीर्षक पर बनी कुछ दिलचस्‍प फ़िल्‍मों के नाम तो बताते चलें। सन १९७२ में एस.एम.सागर ने फ़िल्‍म बनाई थी 'राखी और हथकड़ी' इसमें आर.डी.बर्मन का संगीत था। सन १९७६ में राधाकांत शर्मा ने फ़िल्‍म बनाई 'राखी और राइफल'। दारा सिंह के अभिनय वाली ये कोई मसाला फ़िल्‍म रही होगी। इसी तरह से सन १९७६ में ही शांतिलाल सोनी ने सचिन और सारिका को लेकर बनाई फ़िल्‍म 'रक्षाबंधन'। सन १९७२ में राजश्री फ़िल्‍म्‍स ने 'मेरे भैया' नामक फ़िल्‍म बनाई, जिसमें विजय अरोरा नायक थे। सलिल चौधरी ने इस फ़िल्‍म में भाई बहन का एक गीत स्‍वरबद्ध किया था बोल थे- 'चंचल मन पर छाए गंध के बादल'। फ़िर भोजपुरी फ़िल्‍म 'लागी नाहीं छूटे राम' में एक गाना आया था- 'रखिया बँधा ले'। बिमल रॉय प्रोडक्‍शन की फ़िल्‍म 'परख' में भी राखी का ज़िक्र आने पर एक गीत होता है- 'कहें राखी के ये धागे’। और 'अंजाना' फ़िल्‍म में बहनें गाती हैं- 'हम बहनों के लिए मेरे भैया आता है एक दिन'।

इधर कुछ सालों से राखी का ज़िक्र फ़िल्‍मों में नहीं आ रहा है। मुझे केवल सुल्‍तान अहमद की फ़िल्‍म 'दाता' याद आती है, जिसे आए भी एक अरसा बीत गया, इसमें शायद राखी का एक प्रसंग था। लगता है फ़िल्‍मकारों को राखी एक पिटा-पिटाया फॉर्मूला समझ लिया है। तर्क भी सही है, राखी का प्रसंग इतनी बार दोहराया जा चुका है और इस पर इतने गाने रचे जा चुके हैं कि शायद अब कहने के लिए कुछ बाकी नहीं रहा है। अच्‍छी बात ये है कि इसी बहाने हमें मिले हैं राखी के कुछ अनमोल नग़में। इन गीतों को हम इस राखी पर भी गाएँगे और हर राखी पर गाएँगे।

२४ अगस्त २००७