हास्य व्यंग्य

 

विश्व कप का बुखार
- बसंत आर्य


एक होता है बुखार, एक दिन में उतर जाता है। जैसे एक दिवसीय क्रिकेट मैच, किस्सा ख़त्म। दूसरा होता है मियादी ज्वर। महीने-दो महीने से कम में नहीं जाता, विश्व कप की तरह। आज कल यही मौसम चल रहा है और विश्व कप का बुखार ज़ोरों पर है। इस बीमारी के लक्षण एकदम आम हैं। इस बीमारी में लोग-बाग बहुत व्यस्त हो जाते हैं, उनकी ज़िंदगी व्यस्ततम रहने लगती है।

दफ़्तरों में कर्मचारियों की ही नहीं, हाक़िमों की उपस्थिति में भी अप्रत्याशित कमी हो जाती है। सिनेमा हॉल खाली रहने लगते हैं। बन कर तैयार फ़िल्मों के रिलीज़ की तारीखें मुल्तवी कर दी जाती है। डाइरेक्टर, प्रोड्यूसर भी सोचता है जब हम खुद क्रिकेट देखने में मश्गूल हैं तो कौन-सा पागल दर्शक हमारी फ़िल्में देखने आएगा। किताबें तो वैसे ही कोई नहीं पढ़ता है पर टेलिविजन पर भी स्पोर्ट्स चैनलों की ही चाँदी हो जाती है और सारे विज्ञापन उनकी ही झोली में गिरने को आतुर हो जाते हैं। दर्शक भी उन्हीं चैनलों का अवलोकन करते हैं। मतलब ये बुखार लगा तो दुनिया की सारी चीज़ें फीकी हैं।

जिसे देखो वही इस कप में डूबा हुआ है। पता नहीं इसे विश्व कप कहते क्यों हैं, आख़िर इसका वास्तविक अर्थ क्या है। पर इतना तो तय है कि समूचा विश्व इस छोटे से कप में समाया हुआ है। हर कोई इसकी चर्चा में डूब - उतरा रहा है। जिन लोगों में दम है वे तो सीधे साउथ अफ्रीका पहुँच गए हैं। जो नहीं जा पाए हैं उनके लिए टेलीविज़न एक मात्र सहारा है। इन दिनों गली-गली में भी जहाँ देखो सब क्रिकेट ही खेल रहे हैं। जो क्रिकेट नहीं खेल पा रहे हैं वे लोग क्रिकेट पर सट्टा खेल रहे हैं।

वैसे यह कोई बड़ी बात नहीं है। जब भी विश्वकप आता है, ऐसा ही होता है। ऋतु बसंत के आते ही आमों पर मंज़र लद जाते हैं। भ्रमरों का गुंजन प्रारंभ हो जाता है, कोयल की कूक दिल में हूक उठाने लगती है। मतलब चारों ओर मस्ती ही मस्ती। अफ़सर चपरासी से स्कोर पूछ रहा है, चपरासी गदगद हो कर साहब को बता रहा है। यही तो मौका है जब समाजवाद का सपना साकार होता नज़र आ रहा है। शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीने में मानहानि नहीं समझ रहे हैं। आप राह चलती खूबसूरत लड़की की नज़रों में नज़रें डालते हैं और वह आपसे स्कोर पूछती है, आप धन्य हो जाते हैं। हे क्रिकेट देवता तुम्हें सलाम।

एक कंपनी का बिस्किट खाइए तो वह आपको सीधे मैदान में जाकर खेल का मज़ा लेने के लिए हवाई जहाज़ का टिकट उपलब्ध करा रही है। दूसरी कंपनी का साबुन ख़रीदिए तो वह आपको कप पाने वाले खिलाड़ी के साथ डिनर टेबल पर गप लड़ाने का मौका दिलाएगी। एक टी.वी. कंपनी के विज्ञापन में तो बताया गया है कि विश्व कप देखने के लिए एक मात्र उसी कंपनी की टी.वी. ऑफिशीयल है।

इन दिनों हर जगह एक ही रंग है। एक होटल में खाना खाने गया तो चमचे की जगह छोटा-सा बैट रखा था और रसगुल्ले को देखकर लग रहा था जैसे मिठाई नहीं क्रिकेट की गेंदे परोस दी गई हो।
क्रिकेट को छोड़ कर किसी को कुछ सूझता ही नहीं। पिछली बार जब विश्व कप हुआ था मेरे मुहल्ले की एक लड़की अपने खिलाड़ी नंबर वन के साथ टेस्ट मैच खेलने हेतु घर से गुप्त प्रयाण कर गई। पर घर वालों को इस घटना की ख़बर तब लगी, जब विश्व कप का समापन हो गया। अगर विश्व कप और लंबा चलता तो पता नहीं वह जाने कितने चौके, छक्के और शतक आराम से लगाती रहती और लोग विश्व कप में रमें रहते।

इसी तरह विश्व कप के दौरान एक मित्र के घर चोर घुसा। पहले तो पूरे परिवार के साथ बैठ कर उसने दो ओवर तक मैच का मज़ा लिया और जब तीसरा विकेट गिर गया तो आराम से उठ कर घर से टेपरिकार्डर, घड़ियाँ, ज़ेवर आदि समेट कर चलता बना और मित्र महोदय सपरिवार बेख़बर होकर क्रिकेट देखते रहे।
कई घरों में तो मैंने देखा है घर के मनुष्य प्राणी ही नहीं, कुत्ते-बिल्ली भी उतने ही चाव से विश्व कप क्रिकेट का आनंद उठाते हैं। कभी-कभी तो मैं हीन भावना का शिकार होने लगता हूँ, समूचा देश, बल्कि समूची दुनिया इस वर्ल्ड कप के बुखार में तप रहा है और मुझे जरा-सा टेंपरेचर भी नहीं।

सच कहिए तो इस समय दुनिया में दो ही सनकी या पागल हैं। एक तो मैं स्वयं जो वर्ल्ड कप, क्रिकेट, सट्टेबाज़ी और स्कोर बोर्ड से मुँह मोड़ कर यह लेख लिखने बैठा हूँ और दूसरे आप जो इतनी देर से इसे पढ़ रहे हैं। मैं तो चला विश्व कप के आइने में खिलाड़ियों का चेहरा देखने। वैसे भी यह लेख तो आप पढ़ ही चुके हैं और चाहें तो आप भी सारी दुनिया के साथ इसका लुत्फ़ उठा सकते हैं।