हास्य व्यंग्य

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मेरी असफलताएँ
यशवंत कोठारी
 


इधर व्यंग्य में विषयों का अकाल है। समाचारों का अकाल है। घिसे पिटे लेखक घिसेपिटे विषयों पर घिसेपिटे व्यंग्य लिखकर घिसेपिटे स्थानों पर प्रकाशित कराकर घिसेपिटे चेक प्राप्त कर रहे हैं। कुछ लोग घोस्ट राइटिंग के घोस्ट के पीछे पड़े हुए है। हर व्यक्ति अपने आपको सफल समझता है और अन्य व्यक्ति उसे असफल, गलत, बेकार, नाकारा, निकम्मा घोषित करते रहते हैं।

जैसा कि आप जानते है हर सफल व्यक्ति की सफलता के पीछे एक महिला होती है और उस महिला के पीछे उस सफल व्यक्ति की पत्नी होती है। इधर मेरी अफलताओं की समस्त जिम्मेदारी मैं स्वयं लेता हूँ ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आये।

प्रारम्भ में मैंने खेलकूद के क्षेत्र में प्रयास किये। असफल रहा मैंने फिल्मों में घुसने का प्रयास किया असफल रहा। मैंने नाटकों में प्रयास किया मंच से दूर कर दिया गया। मैंने कविताएँ लिखी किसी ने नहीं पढ़ी। मैंने आलोचना के क्षेत्र में हाथ पाँव मारे आलोचना बेचारी आलू चना हो गई। मैंने विज्ञापन बनाये, उत्पादों की बिक्री घट गई। कक्षाओं में गम्भीरता से पढ़ाया छात्रों ने कक्षाओं में आना बन्द कर दिया। मैंने अफसरों की चमचागिरी के प्रयास किया, असफल रहा। सम्पादकों की जी
हजूरी करने की कोशिश की, नहीं चल पाया।

मैंने महापुरूषों के फटे में टांग उड़ाने की कोशिश की। लोगों ने टाँगे तोड़ दी। मैंने स्तम्भ लेखन के क्षेत्र में हाथ आजमाये और कई पत्र-पत्रिकाएँ बन्द हो गई। मैंने फीचर लेखन के क्षेत्र में कोशिश की, असफल रहा। मैंने मंच पर हास्यास्पद रस की कविताएँ पढ़ी, श्रोताओं ने सड़े अण्डे और टमाटरों से स्वागत किया। मंच पर एक पैर के जूते आये और नेपथ्य से दोनों पैरों के चले गये।

मैंने मोहल्ले में सामाजिक कार्यों का बीड़ा उठाया। पड़ोसियों ने सर कलम करने की चेतावनी दे डाली। असफलताओं का हिमालय ऊँचे से ऊँचा होता चला गया। जीवन अफलताओं से भरा हुआ है। जीवन है तो असफलताएँ, परेशानियाँ है। मेरे दु:खी जीवन का दु:खड़ा खत्म होने का नाम ही नहीं लेता। मैंने एक पत्रिका के सम्पादन का भार ग्रहण किया और पत्रिका ने कुछ ही अंकों के बाद दम तोड़ दिया।

विफलताओं का यह किस्सा और भी आगे चला। मैंने कई प्यार किये और हर एक में असफल रहा। जिससे प्यार किया उससे शादी नही करने की परम्परा का मैंने भी निर्वाह किया। मैंने विदेश जाकर काम करने के प्रयास किये, असफल रहा। मैंने सुदर्शन दिखने के प्रयास हेतु वर्जिश की, असफल रहा और काफी समय खाट पर पड़ा रहा।

मेरी असफलताओं में बैचेनी, उच्च रक्तचाप, पेट की परेशानियों का बड़ा हाथ रहा। जब भी सफलता आने का समय होता कोई दूसरा बाजी मार लेता और मैं ठगा सा देखता रह जाता। पुरस्कारों के लिए प्रयास किया, असफल रहा। मैंने कलेण्डर को देखकर मौसमी लेखन शुरू करने का प्रयास किया, असफल रहा। आकाशवाणी, दूरदर्शन पर वार्ताएँ पढ़ने की कोशिश की, असफल रहा।

मैं वकील, डॉक्टर, इन्जीनियर, नेता, अफसर भी नहीं बन सका। कुछ प्राकृतिक कारणों से मैं देवदासी भी नहीं बन सका। असफलताओं का और मेरा चोली-दामन का साथ है। पूरा जीवन विफलताओं से भरा है और अँधेरे में रोशनी का दिया टिमटिमा रहा है तो बस व्यंग्य का है।

आप क्या सोचते है, जीवन में कौन सफल होता है। सफलता किसके चरण चूमती है? और क्यों? सफल हाने के लिए स्वाभिमान को क्यों बेचना पड़ता है। मैं गुरू था लोग गुरू घंटाल निकले। गुरू गुड़ और चेले शक्कर हो गये। यारों स्वाभिमान को घर पर छोड़ो और सफल हो जाओ या फिर मेरी तरह असफलताओं के गीत गाओ, और अन्त में शायर का कहना है।
मैं सजदे मैं नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा।
पूरा बदन दर्द से दोहरा हुआ होगा।।

९ मई २०११