हास्य व्यंग्य

जड़ खोदने की कला
सुशील यादव


जंगल विभाग से उनका रिटायरमेंट क्या हुआ वे पड़ोसियों के लिये कष्टदायक हो गए। कहीं भी चले आते हैं। तरह–तरह की खबर, दुबे, चौबे, शर्मा, द्वेवेदी सब के घरों का हाल उनसे मुँह–जुबानी पूछ लें। कहाँ क्या चल रहा है, उन्हें एक-एक की खबर होती है। उनको, चूहों से अगर बच गए हों तो, घर के, पूरे साल भर के अखबार की खबरों को कुतरने में चंद दिन लगते हैं।
 
अखबार पढ़ने के बारे में वो कहते हैं कि जंगल की सर्विस में उनको स्टडी का मौका नहीं मिला सो वे राजनैतिक –सामाजिक सरोकार से दूर थे। अब फुर्सत है सो अध्ययन–मनन में समय बिताने की सोच रहे हैं।
मैंने कहा, फिर अखबार ही क्यों? मनन–चिंतन के लिये साहित्य का भण्डार है, पढते क्यों नहीं?
वो बोले अब साहित्य-वगैरा पढ़ के कोई एक्जाम तो पास करना नहीं है। मोहल्ले–पड़ोस में ज्ञान बघारने के लिये रोज टी वी देख लो, कुछ अखबार बाँच लो काफी है।
मैंने मन में सोचा, पाँडे जी का तर्क अकाट्य है। हर आदमी इतना ही ज्ञान रखता है इन दिनों। काम चलना चाहिए। ज्यादा ज्ञानी हुए नहीं कि समाज के लिये मिस-फिट हो जाता है आदमी।

मैंने पाँडे जी को छेड़ते हुए कहा, चुनाव-उनाव क्यों नहीं लड़ लेते। अभी पार्षद बनने का, फिर अगले साल एम एल ए बनने का खूब मौका है। उन्हें लगा कि मैंने उनको बुढ़ापे की वैतरणी पार करने का नुस्खा दे दिया है। वे तुरंत लपक लिये। ऐसे आदमी मुझे भले लगते हैं जो बिना किसी तर्क के मेरी बात मान लेते हैं, बोले ऐसा हो सकता है। अपने को एमएलए तक तो जाना नहीं है। खर्चा बहुत होता है, पूरा पेंशन निपट जाएगा तो खायेंगे-पहनेंगे क्या?


पाँडे जी को जितना लाइटली मैं लेता था उतने वो थे नहीं। जिस आदमी को पेंशन बचाने का शऊर हो, वो आर्थिक मामले में भला कहाँ से किसी के कहने में आ सकता है? किसी के चढ़ाने को वे उसी हद तक लेते थे जितनी वे चढ़ सकें। बहरहाल उनने मेरी सलाह को, बतौर टर्निग–प्वाइंट नोट कर लिया। वे चले गए।

अगले महीनों तक वे कई बार टकराए, कभी सब्जी-भाजी ले कर बाजार से लौटते हुए, कभी किराने का सामान लादे हुए। हाय–हेलो से ज्यादा बात नहीं हुई। एक दिन वे रेल-आरक्षण की लाइन में लगे थे, मैंने पूछा, पाँडे जी कहीं घूमने जा रहे हैं क्या?

वो बोले, बोले क्या बस महीने भर की दास्तान सुनाने लगे। किस–किस नेता से मिले, कितनी पार्टी का चक्कर लगाया। सक्रिय सदस्य बनने के लिये कई एक पार्टी का मुआयना कर आए हैं। अब अभी राजधानी जा रहे हैं। दो-तीन पार्टी हेड से मिलकर देखते हैं, देखें क्या बनता है?

मैंने कहा, पाँडे जी मैंने तो यों ही मजाक में कह दिया था, चुनाव-सुनाव के बारे में। आपने गंभीरता से ले लिया। मुझे अपने कथन के साथ–साथ, पाँडे जी में भविष्य का पार्षद भी दिख रहा था, उनकी जीवटता को देखते हुए।

४ फरवरी २०१३