शुषा लिपि
सहायता

अनुभूति

 16. 9. 2003

आज सिरहानेआभारउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथाघर–परिवार
दो पल
परिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगफुलवारीरसोईलेखकलेखकों सेविज्ञान वार्ता
विशेषांक
शिक्षा–सूत्रसाहित्य संगमसंस्मरणसाहित्य समाचारसाहित्यिक निबंधस्वास्थ्यसंदर्भसंपर्कहास्य व्यंग्य 

 

पिछले सप्ताह

परिक्रमा में
दिल्ली दरबार के अंतर्गत बृजेशकुमार शुक्ला का आलेख
सुरक्षा के साए में
स्वतंत्रता दिवस

एवं
नार्वे निवेदन के अंतर्गत सुरेशचंद्र शुक्ल का आलेख
ओसलो में
यादगार स्वतंत्रता दिवस

°

रसोईघर में
सफल पकवान के अंतर्गत फलों के
गुणों से भरपूर शीतलता प्रदान करने वाला
शीतल शकोरा

°

धारावाहिक में
कृष्ण बिहारी की आत्मकथा
'सागर के इस पार से उस पार से' की
अगली किस्त
शीशों के शहर में

°

कहानियों में
कैनेडा से शैलजा सक्सेना की कहानी
पहचान एक शाम की

लंदन की तेज़ भागती अंडरग्राउण्ड ट्रेन में बैठी विनीता का मन बेटे की उसी बात में खोया हुआ था। जब से दिल्ली की अपनी नौकरी छोड़ बाहर निकली है, तब से घर और घर के लोगों की इच्छाओं से इतन्ी बंधी हुई चल रही है कि स्वयं को भी भूल गई है। कभी कॉलेज के दिन अपनी बड़ी–बड़ी बातें, अपने को कुछ 'होने' कुछ 'करने' के वायदे याद आते हैं तो मन भरभरा जाता है। "क्या उम्र यूँ बर्तन धोते खाना बनाते निकल जाएगी?" इस विदेश में नए सिरे से पढ़ाई करने और कविता–कहानी की दुनिया छोड़, कम्प्यूटर पर आँकड़े लिखने मिटाने को मन अभी भी नहीं राज़ी, तब क्या करूІ

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इस सप्ताह

कहानियों में
यू के से उषा वर्मा की कहानी
सलमा

रात में नींद नहीं आती! मैं सोचती हूं मैं
किस किसका दुख दूर करूंगी। कोई
एक सलमा तो है नहीं, हज़ारों हैं। कभी
मुझे गुस्सा आता है! मुझे क्या करना है
सलमा न मेरी हम वतन न मेरे मज़हब की,
फिर मुझे रात की नींद हराम करने की क्या
ज़रूरत। पर मन है कि वहीं जा कर फिर
उलझ जाता है।
 ठीक है मेरा न तो वतन
का रिश्ता है न ही मजहब का। परंतु एक
रिश्ता है, वह है औरत होने का रिश्ता—
इंसानियत का रिश्ता। लेकिन इंसानियत
के रिश्ते तो मज़हब और वतन की सरहदों
में ही घुट कर रह गये।

°

संस्मरण में
14 सितंबर हिन्दी दिवस के अवसर पर
उषा राजे सक्सेना द्वारा सातवें 'अंतर्राष्ट्रीय 
हिन्दी सम्मेलन' के संस्मरण

यादें सूरीनाम की
का पहला भाग

°

प्रौद्योगिकी में
विजय कुमार मल्होत्रा से जानकारी
सूचना प्रौद्योगिकी और
भारतीय भाषाएं
(पहली किस्त)

°

पर्यटन में
वाहिद क़ाज़मी का आलेख
गौरवशाली ग्वालियर

°

हास्य व्यंग्य में
प्रेम जनमेजय का प्रस्तुत कर रहे हैं
आंधियों का मौसम

!!सप्ताह का विचार!
नुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य
के विचारों को बदलते हैं।

—हरिऔध

 

अनुभूति में

प्रो हरिशंकर आदेश, वीरा
और
वेणु गोपाल की
बारह नयी 
कविताएं

साहित्य समाचार
टीम अभिव्यक्ति दिल्ली में

° पिछले अंकों से°

  कहानियों में
शिशिर की शारिकाबी मुरली
मृगतृष्णाअशोक कुमार श्रीवास्तव
अनन्य
शैल अग्रवाल
अज़ेलिया के फूलसुषम बेदी
°

साहित्यिक निबंध में
डा सेवाराम त्रिपाठी का लेख
हिन्दी ग़ज़ल के नये पड़ाव
°

कलादीर्घा में
कला और कलाकार के अंतर्गत

अमृता शेरगिल

का परिचय उनके चित्रों के साथ
°

फुलवारी में 
सितारों की दुनिया स्तंभ के
अंतर्गत इला प्रवीन से जानकारी
शनि ग्रह और
दीपिका जोशी की ज़बानी लोककहानी
सुनहरे मुकुटवाला भगवान
°

पर्यटन में  
विनोद भारद्वाज का आलेख 
महिमा मोना लीसा और लूव्र संग्रहालय की
°

घर परिवार में  
दीपिका जोशी के अनूठे अनुभव 

साथ खाना
°

विज्ञान वार्ता में  
डा गुरूदयाल प्रदीप प्रस्तुत कर रहे हैं
विज्ञान समाचार
°

परिक्रमा में

लंदन पाती के अंतर्गत 
शैल अग्रवाल का आलेख
बूमरैंग

 

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© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन     
        सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी सहयोग :प्रबुद्ध कालिय  साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार शुक्ला