चिठ्ठा–पत्री चिठ्ठा पंडित ने बांची

अप्रैल के चिठ्ठे  

राम राम यजमानो। सब कुशल मंगल? बहुत गर्मी पड़ रही है आजकल। दिल्ली का तो हाल न पूछो। अप्रैल का महीना तेज़ धूप और गर्मी लेकर आया है। साथ ही गुल है बिजली। बिना एअर कंडीशनर के बैठे हैं लेख लिखने। पर एसी हो न हो, बिजली हो न हो, गर्मी हो या सर्दी ब्लागिए ब्लॉग लिखना थोड़े ही बंद कर देंगे? बल्कि इस महीने ब्लाग जगत में कई नये लोगों का प्रवेश हुआ है। चिठ्ठाकारी की दुनिया में लोग जाने किस–किस विषय पर लिखते हैं। इतनी विचित्रता और कहां देखने को मिलती है यजमान? चिठ्ठा बांचने में न सिर्फ़ हमें आनंद आता है बल्कि हमारा ज्ञानवर्धन भी होता है। हम भी भूल जाते हैं गर्मी–सर्दी। आइए देखें इस महीने चिठ्ठाकारी की दुनिया में क्या–क्या हुआ।

'अनुगूंज' एक तरह की प्रतियोगिता है जहां चिठ्ठाकारों को एक विषय दिया जाता है और अपने विचार लोगों के सामने रखने की अंतिम तिथि भी। इस बार अनुगूंज–18 पर बड़ा ही गंभीर व विवादास्पद–सा विषय दिया गया—'मेरे जीवन में धर्म का महत्व'। चिठ्ठाकारों ने अपनी लेखन क्षमता का बखूबी परिचय दिया। इस तरह के नाजुक मसले पर भी सभी ने बहुत खूबसूरती के साथ लिखा। 

रमण कौल के विचार देखिए
– "ईश्वर क्यों नहीं है, यह साबित करने की ज़रूरत नहीं है। यह साबित करने की ज़रूरत है कि ईश्वर क्यों है। और ऐसा कोई सबूत अभी तक मुझे नहीं दिखा है। और शायद किसी ने कोशिश नहीं की है साबित करने की। आस्तिक लोग यह कहते हैं कि यह तो अपनी आस्था की बात है – इसे प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है। ठीक है, फिर सबकी अलग–अलग आस्था है, पर सत्य तो एक ही होता है न? यदि यह मान लिया जाए कि इन सब में से ही एक सत्य है, तो बाकी सब तो झूठे हुए न? फिर ये सब "ईश्वर–रूपी सत्य" को पाने के अलग–अलग रास्ते कैसे हुए? एक ही तथ्य का यदि सत्य रूप बताना हो तो उसका एक ही तरीका होता है, पर उसी तथ्य का यदि असत्य रूप बताना हो तो उसके सैंकड़ों तरीके हो सकते हैं।" विस्तार से पढना चाहें तो यहां देखें।

कुछ और विचार जोगलिखी के चिठ्ठे से : – "एक अच्छा पिता कहलवाने की कोशिश कर रहा हूं। टैक्स भी ईमानदारी से भरता हूं और एक जागरूक नागरिक की तरह बिना चूके मतदान भी करता हूं। क्या एक अच्छा इंसान और नागरिक बनने के लिए इतना ही काफ़ी नहीं है? अगर हां, तो मुझे कहां किसी धर्म की आवश्यकता है? मैं बिना हिंदू या मुसलमान या अन्य धर्मावलंबी हुए भी ऐसा हो सकता हूं। यानि इतना घबराने की आवश्यकता नहीं है कि कोई हिंदू या ईसाई न हुआ तो वो अधर्मी हो जाएगा। वह बिना धर्म के भी उतना ही धार्मिक रहेगा जितना है और वो जो धर्मात्मा अधर्मि है वे भी उतने ही अधर्मि रहेंगे धर्म के अस्तित्व में होने पर भी। इसलिए अच्छा है बजाय हिंदू, मुसलमान आदि बनने के एक इंसान बन और प्रहार करे रूढ़ियों पर, धार्मिक बंधनों पर, मानवता के लिए।"

लक्ष्मी गुप्त न्यूयार्क से अपने चिठ्ठे 'काव्यकला' में तरह–तरह की कविताएं लिखते हैं। इस बार अपने चिठ्ठे पर उन्होंने कवि घाघ पर अमूल्य जानकारी दी। "घाघ भड्डरी अकबर के समकालीन थे और वर्तमान कानपुर के पास कहीं रहते थे। इनकी मौसम और अन्य विषयों के बारे में कहावतें इस इलाके के ग्रामीण क्षेत्रों में आम लोगों की ज़बान पर होती हैं। इनके जीवन के बारे में मुझे अधिक ज्ञान नहीं है किंतु इनका दांपत्य जीवन अवश्य सुखी रहा होगा जैसा कि निम्नलिखित कहावतों से लगता हैः

अरहर की दाल औ' जड़हन का भात
गागल निंबुआ औ' घिउ तात
सरहस खंड दहिउ जो होय
बांके नयन परोसैं जोय
कहैं घाघ तब सबही झूठा
उहां छांडि इहवै बैकुंठा।"
घाघ की लिखी कुछ और पंक्तियां इसी ब्लॉग पर पढ़े

अगर आप आल्हा क्या है यह जानना चाहते हैं या आल्हे के शौकीन हैं तो लक्ष्मी गुप्त और अनूप शुक्ल के आल्हा दंगल, मेरा मतलब है कि आल्हा से संबंधित लेखों का मज़ा लिए आगे बढ़ना बेकार है। तो चलिए अनूप शुक्ल के लेख के लिए यहां और लक्ष्मी गुप्त जी के लेख लिए यहां चुटकी दीजिए। यह तो हुईं आल्हा के इतिहास और भूगोल की बातें। असली अमरीकी आल्हा पढ़ना है तो 
यहां दबावै माउस अपना देरी और नहीं हुई जाय 
लक्ष्मी जी का आल्हा बढ़िया देखो मौका निकल न जाय 
राम कसम दोनों आल्हे ऐसे दमदार हैं कि हम भी डूब कर लिख बैठे ये पंक्तियां ! और जब दंगल चल ही रहा है तो फिर अनूप कुमार शुक्ल का जवाबी कानपुरिया आल्हा क्यों छोड़ा जाए। लगे हाथ उस पर भी हाथ साफ कर लें। तो यजमान यह रहा अनूप का जवाबी आल्हा। आल्हा थोड़ा नीचे की ओर है इसलिए कृपया धैर्य रखें और नीचे तक पढ़ें।

चिठ्ठाजगत में तकनीकी विषयों पर भी समय–समय पर भी जानकारी दी जाती है। 'उन्मुक्त' नामक ब्लाग पर इस बार ओपन सोर्स साफ्टवेयर की जानकारी दी गई। उन्मुक्त ने इस जानकारी को श्रृंखलाबद्ध किया है और सबको इससे अवगत कराया है। "तकनीकी दृष्टि से साफ्टवेयर के दो हिस्से होते हैं। सोर्स कोड और सोर्स औबजेक्ट कोड। इन दोनों को समझने के लिए थोड़ा कंप्यूटर साफ्टवेयर के इतिहास को जानना होगा। कंप्यूटर हम लोगों की भाषा नहीं समझते हैं। वे केवल हां या ना, अथवा 1 अथवा 0 की भाषा समझते हैं। हमारे लिए इस भाषा में प्रोग्राम लिखना बहुत मुश्किल है। पहले प्रोग्राम इसी तरह से लिखे जाते थे एक पंच–कार्ड होता था जिसे छेद किया जाता था कार्ड में छेद का मतलब हां और यदि छेद नहीं है तो मतलब ना।" आगे एक श्रृंखला में उन्होंने ओपन सोर्स साफ्टवेयर के महत्व को बताया है और कॉपीराइट के मसलों को भी।इस सबके विषय में जानना चाहते हैं तो विस्तार से यहां पढ़ें। 

हिंदी साहित्य जगत में जयप्रकाश मानस अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं। श्री मानस छतीसगढ़ से लिखते हैं और इस बार उन्होंने अपने ब्लाग पर डा .शोभाकांत झा की पुस्तक 'लिखने का मतलब' पर अपनी समीक्षा लिखी। इस लेख में न केवल इस पुस्तक की समीक्षा है बल्कि ललित निबंध क्या है इस विषय में भी विस्तृत और क्रमबद्ध जानकारी दी गयी है। इस महत्वपूर्ण लेख को यहां पढ़ा जा सकता है

विवेक नामक चिठ्ठे पर स्वामी विवेकानंद की वाणी व उनका जीवनाचार प्रकाशित किया जाता है। इस चिठ्ठे को मुंबई से श्री रूपेश तिवारी निकालते हैं। अप्रैल में प्रकाशित एक चिठ्ठे में वे लिखते हैं— "यदि कोई भंगी हमारे पास भंगी के रूप में आता है, तो छुतही बीमारी की तरह हम उसके स्पर्श से दूर भागते हैं। परंतु जब उसके सिर पर एक कटोरा पानी डालकर कोई पादरी प्रार्थना के रूप में कुछ गुनगुना देता है और जब उसे पहनने को एक कोट मिल जाता है . . .वह कितना ही फटा–पुराना क्यों न हो . . .तब चाहे वह किसी कट्टर से कट्टर हिंदू के कमरे में पहुंच जाए, उसके लिए कहीं रोक–टोक नहीं, ऐसा कोई नहीं, जो उससे सप्रेम हाथ मिलाकर बैठने के लिए उसे कुर्सी न दे। इससे अधिक विडंबना की बात क्या हो सकती है? आइए, देखिए तो सही, दक्षिण भारत में पादरी लोग क्या ग़ज़ब कर रहे हैं। ये लोग नीच जाति के लोगों को लाखों की संख्या में ईसाई बना रहे हैं। वहां लगभग चौथाई जनसंख्या ईसाई हो गई है। मैं उन बेचारों को क्यों दोष दूं? हे भगवान, कब एक मनुष्य दूसरे से भाईचारे का बर्ताव करना सीखेगा।" लीजिए आप भी पढ़िए विवेकानंद की वाणी— इस लिंक पर आपको विवेकानंद की बहुमूल्य सूक्तियां भी पढ़ने को मिलेंगी। इसके पहले दिया गया गद्यांश पढ़ने लिए अग्नि मंत्र नामक लिंक पर जाना होगा।

और चलते–चलते भारत और विदेश से कुछ सुंदर चित्र। भारत के मध्य प्रदेश के जाने–माने शहर जबलपुर में नर्मदा नदी के दर्शन कीजिए भेडाघाट में शिकागो से नितीन व्यास के भारत यात्रा के समय ली गई तस्वीरों से उनके चिठ्ठे 'पहला पन्ना' पर, वैंक्यूवर कनाडा से वहां के बसंत के आगमन की तस्वीरों का लुत्फ़ उठाइए 'मानसी' पर। रसायन शास्त्र के विद्वान रामचंद्र मिश्र के चिठ्ठे पर वर्ण लेखन या कालम क्रोमटोग्र्राफ़ी के रंगीन चित्र स्लाइड शो के ज़रिए यहां देखे जा सकते हैं और इटली से लगातार लिख रहे सुनील जी के चिठ्ठे पर उनके मोज़ांबीक यात्रा के चित्रों व यात्रा विवरण को पढ़ा जा सकता है यहां। 

वाह यजमानों! न सिर्फ़ सुंदर जानकारी भरे लेख बल्कि सुंदर तस्वीरें। चिठ्ठा बांचते समय हम एक दूसरे ही लोक में विचरण कर आते हैं। और हमें बेसब्री से इंतज़ार रहता है आने वाले नये चिठ्ठों का। नयी–नयी जानकारी और साथ ही मनोरंजन भी। हम तो कायल है हिंदी चिठ्ठाकारों के हिंदी प्रेम के। हर महीने जाने कितने विषयों पर कितने लेख, कविताएं, विचार आदि लिखे जाते हैं। जालस्थल में हिंदी की समृद्धि में हिंदी चिठ्ठा जगत का बहुत बड़ा हाथ है। सभी हिंदी प्रेमियों को मेरा नमन। अगले महीने फिर मिलेंगे नये चिठ्ठों के साथ। तब तक के लिए राम राम।

9 मई 2006