सामयिकी भारत से

निर्दोष भारतीयों पर होने वाले हमलों और ऑस्ट्रेलियाई सरकार की उदासीनता पर अशोक बंसल का आलेख-


ऑस्ट्रेलिया में हमले : दोषी कौन?


ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर की गली-कूचों और हाट-बाजार को दो बार देखने के बाद इस अद्भुत देश को एक बार फिर से जानने-समझने की ललक थी, लेकिन निर्दोष भारतीयों पर होने वाले हमलों और ऑस्ट्रेलियाई सरकार की उदासीनता तथा नितिन गर्ग की निर्मम हत्या और २९ साल के जसप्रीत सिंह को जिंदा जलाने की कोशिश ने मेरी यात्रा पर अनेक प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बेहतरीन शहरों में शामिल मेलबर्न के जिन भीड़भाड़ वाले या शांत उपनगरीय इलाकों में मैं अकेले निर्द्वंद विचरण करता था, वहाँ फिर से अकेले घूमने की कल्पना नहीं कर पाता। वैसे भी दुनिया के किसी भाग में भारतवंशियों पर होने वाले जुल्म के समाचार हमें दु:ख भी देते हैं और हममें रोष भी पैदा करते हैं।

ढाई करोड़ की आबादी वाले ऑस्ट्रेलिया में मेलबर्न की २७ लाख की आबादी को वहाँ की सरकार ने वर्ष २०३० तक ५० लाख तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए सरकार नए-नए प्रलोभन दे रही है। स्थायी वीजा लेकर वहाँ रहने वाले परदेशियों को संतानोत्पत्ति पर आकर्षक नकद इनाम मिलता है। ऑस्टे्रलिया में बसे भारतीय तो वहाँ की सरकार के मकसद में मददगार ही बन रहे हैं। अकेले मेलबर्न में अब ७७,००० भारतीय रहते हैं। और इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं, जिनका इन घातक हमलों से घबड़ाकर पलायन संभव नहीं। क्योंकि अनेक लोग उच्च पदों पर आसीन हैं, तो कई वहाँ पर बड़े व्यवसायी बन गए हैं।  

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री केबिन रड भारतीय छात्रों की सुरक्षा का भरोसा भले ही दिला रहे हैं, लेकिन गोरे हमलावर एकदम बेलगाम हैं। गोरों के बीच होने वाली आपसी हिंसक वारदातों के खिलाफ विक्टोरिया पुलिस त्वरित कार्रवाई करती है। मेलबर्न शहर में ही कोलिंस रोड के एक नाइट क्लब की घटना मुझे याद है। वहाँ एक लड़की को लेकर दो गोरे भिड़ गए। क्लब के बाहर एक गोरे ने दूसरे को सरेआम गोली से उड़ा दिया। हमलावर की गरदन दबोचने में विक्टोरिया की स्मार्ट और हाई टेक पुलिस ने १२ घंटे भी नहीं लगाए। लेकिन नितिन और जसप्रीत के हमलावर विक्टोरिया पुलिस की गिरफ्त से दूर क्यों हैं? इसका जवाब विक्टोरिया के प्रधानमंत्री जॉन बुबी के पास नहीं हैं।

ऑस्ट्रेलिया के राजनेता भारतीयों पर होने वाले घातक हमलों को नस्लवाद की परिधि से निकालकर सिर्फ लूटपाट और नगरीय अपराध की श्रेणी में रख रहे हैं। उनका यह रवैया अपने देश के अपराधियों के अपराध की गंभीरता को कम करता है। वहाँ पर भारतीय छात्र ही नहीं, पाकिस्तान, श्रीलंका समेत अन्य एशियाई देशों के लोग भी लंबे वक्त से रंगभेद का शिकार बनते रहे हैं। वहाँ टैक्सी चलाकर अपना जेब खर्च जुटाने वाले भारतीय लगातार शिकार बनते रहे हैं। सिडनी और मेलबर्न में तो भारतीय टैक्सी चालकों ने संसद के समक्ष प्रदर्शन भी किया था। लेकिन हमले थमे नहीं, बल्कि इनमें तेजी ही आई। दरअसल, संपन्नता के बाद आने वाली उच्छृंखलता गोरे नौजवानों में साफ झलकती है। ऐसे नौजवानों के गुट को वहाँ 'राउडी’
पुकारते हैं। मेलबर्न पुलिस इन 'राउडी ’ पर अंकुश लगाने में नाकाम है।

एक ऑस्ट्रेलियाई अखबार ने इन हमलों का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि भारतीय छात्र गोरे हमलावरों के लिए 'आसान शिकार’ हैं। यदि यह विश्लेषण सही है, तो इसके लिए भी ऑस्ट्रेलिया की लचर पुलिस व्यवस्था को जिम्मेदार माना जाना चाहिए। एक सुनसान पार्क से गुजरते नितिन को कोई दबोच सकता है और एक गोरे के लिए मेलबर्न का हर कोना सुरक्षित है। यह कैसे संभव है? सचाई यह है कि काले-गोरे के भेद का बोध वहाँ के गोरे बच्चों में भी पलने लगा है। मेलबर्न की ट्राम में सफर करते समय मैंने स्वयं एक मासूम गोरे बच्चे को अपनी माँ से यह कहते सुना था, 'मम ही इज ब्लैक। ’ इनसानियत को शर्मसार और दागदार करने वाले ऐसे संस्कारों को कोई सभ्य समाज और संवेदनशील सरकार
बेहतर शिक्षा और सख्त कानून से ही समाप्त कर सकती है।

इस पूरे परिदृश्य में मजेदार बात यह है कि ऑस्ट्रेलिया के लिए भारतीय लोग छात्र और पर्यटक के रूप में प्रिय हैं। हाल के नस्लवादी हमलों के बाद ऑस्ट्रेलिया के अंतरराष्ट्रीय शिक्षा उद्योग को जबर्दस्त धक्का लगा है, इसमें लगभग ४६ फीसदी की कमी आंकी जा रही है, लेकिन इन हमलों के सही चरित्र को समझने और सख्त कदम उठाने से वहाँ के अधिकारी कतरा रहे हैं।

वैश्वीकरण के युग में दुनिया सिमटी है। लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि देश के बाहर जाने वाले और देश में आने वाले लोग अपनी मनमर्जी करें। वास्तव में, दिल्ली और ऑस्ट्रेलिया में बैठे ऐजेंट शिक्षा के नाम पर भारतीय नौजवानों को लंबे समय से बरगलाते रहे हैं। वे उन्हें सब्जबाग दिखाकर ठग ही नहीं रहे, बल्कि धोखा भी दे रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया सरकार ने इस दिशा में कदम उठाया है। ऑस्ट्रेलिया के कई दर्जन फर्जी विश्वविद्यालयों की पहचान कर कार्रवाई की गई है। पर हमारी सरकार ने फर्जी ऐजेंटों के खिलाफ कार्रवाई का अभी तक मन नहीं बनाया है।

१ फरवरी २०१०