सामयिकी भारत से

ग्वांगझु एशियाड में भारत के संतोषजनक प्रदर्शन के विषय में मनीष कुमार जोशी का लेख-


एशियाड- २०१० सफलता की नई उड़ान


ग्वांगझु एशियाड भारत के लिए अब तक के सबसे सफल एशियाड खेल रहे हैं। इन खेलो में भारत ने अब तक के सर्वाधिक पदक जीते। भारत की इस सफलता की खास बात यह रही कि इसमें वे भारतीय खिलाड़ी अधिक सफल रहे जिनसे कभी कोई आशा नहीं की गई थी। भारत ने ऐसे खेलो में भी अपना दमखम दिखाया जिनमें भारत अब तक केवल खानापूर्ति के लिए खिलाड़ी भेजा करता था। रोईग, रोलर स्केटिंग, जिमनास्टिक और वुशु जैसे कई खेले है जिनमें भारत ने पहली बार सफलता प्राप्त की है। इस सफलता से देश में इन खेलो को नई ऊर्जा तो मिली है साथ ही भारत के लिए भविष्य में सफलता के नये द्वार खोल दिये हैं।

भारत ने इस बार चीनी खेल वुशु में सफलता प्राप्त कर सबको हैरत में डाल दिया। वुशु खेल भारत में बहुत कम खेला जाता है और अधिकांश लोग इस खेल के बारे में जानते ही नहीं है। टीम प्रबंधन भी कभी अपनी वुशु टीम से पदक की उम्मीद नहीं करता है। भारतीय ओलम्पिक संघ भी इस खेल में टीम को केवल औपचारिकता के लिए भेजता है। परन्तु इस बार इस खेल में भारत को पहली बार एक रजत और एक कास्य पदक मिला। भारत की संध्यादेवी रानी ने वुशु में चीन और कोरिया जैसे देशो के एथलीटो के बीच रजत पदक जीत कर सबको आश्चर्य चकित कर दिया। इसी खेल में बीमोलजीत सिंह ने भारत को कांस्य दिलाया। इस खेल में भारत के ये दोनो पदक बहुमूल्य है। इस छोटी सफलता ने इस खेल में भारत के लिए नई उम्मीद पैदा कर दी है।

वुशु की तरह भारत में रोलर स्केटिंग के बारे में भी लोग कम जानते है। यदि जानते भी है तो इस बात की कभी उम्मीद नहीं करते कि किसी अंतराष्ट्रीय स्पर्धा में भारत को इस खेल में कोई पदक मिलेगा। यहाँ तक कि भारतीय पदक विजता अनूप कुमार यामा ने इसमें अपने खर्चे पर प्रशिक्षण प्राप्त कर सफलता प्राप्त की। इस खेल में उन्होंने भारत को दो कांस्य दिलाए जिसमें भरत कुमार उनके सहयोगी रहे। कहने को तो भारत ने इस खेल में केवल दो काँसे के पदक जीते है परन्तु ये दो पदक इस खेल मे भारत में नई ऊर्जा पैदा करेंगे। इस खेल के खिलाड़ियों के लिए यह सफलता प्रेरणा का काम करेगी। इससे भविष्य में और अच्छे परिणाम की उम्मीदे पाली जा सकती है। इसी तरह जिमनास्टिक में भारत को अभी तक अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में कभी सफलता नहीं मिली और यही माना जाता है कि इस खेल में भारतीय खिलाड़ी केवल भागीदारी करेंगे, पदक प्राप्त करना उनका उद्देश्य नहीं होगा। परन्तु इस बार आशीष कुमार ने कांस्य पदक प्राप्त कर इस अवधारणा को झूठा साबित कर दिया। ग्वांगझु में आशीष कुमार को यह पदक जिमनास्टिक की फलोर स्पर्धा में प्राप्त हुआ। इस पदक से जिमनास्टिक के खेलों में कई पदको की उम्मीद पैदा की जा सकेंगी।

तैराकी में भारत के खजानसिंह ने १९८६ के एशियाई खेलो में रजत पदक जीता था और इसके बाद इस खेल में पदक मिलना एक सपना बन गया। पिछले कुछ सालों से तो तैराकी से कभी कोई उम्मीद ही नहीं की गई। इस खेल के लिए कभी नहीं माना गया कि भारतीय तैराक कोई पदक जीत पायेंगे। परन्तु इस बार विरधवाल खाडे ने कमाल कर दिया। ५० मीटर बटर फलाई में विरधवाल ने कांस्य पदक जीतकर तैराकी में पदक के सूखे को समाप्त कर दिया। निश्चित रूप से तैराकी का यह कास्य तरणताल में भारत के लिए कई पदको की उम्मीद जगाएगा और युवा तैराको में नया जोश पैदा करेगा।

भारत को सबसे बड़ी सफलता रोईंग में मिली जिसमें बजरंग लाल ताखर ने भारत के लिये स्वर्ण पदक प्राप्त किया। वे इस खेल में पहले भी सफलता प्राप्त कर चुके है परन्तु उन्हें कभी ओलम्पिक और एशियाड में पदक की उम्मीद नहीं माना गया। यहाँ तक कि बजरंग लाल को उधार के पैसो से लाई गई किराये की नाव पर अभ्यास करना पड़ा। बजरंग लाल की एक ही धुन थी कि इस खेल में भारत को सफलता दिलाना है। फौज के इस सूबेदार ने भारत को रोईग में पहली बड़ी सफलता दिला कर इस खेल को भारत के भविष्य की उम्मीद में शामिल करवा दिया। सतीश जोशी और गिरीराजसिंह ने भी रोईग में भारत को रजत पदक दिलाया। इस खेल में जब भारत को स्वर्ण पदक मिला तो भारतीयो को खुशी साथ अचरज भी हुआ परन्तु अब आने वोल दिनो में अन्य खेलो की तरह रोईग भी भारत की उम्मीदों का खेल बन जायेगा।

इन खेलो के अलावा लोकप्रिय खेलो में भी उम्मीद के विपरीत सामान्य खिलाड़ी सफलता प्राप्त कर नायक बन गए। बाक्सिंग में विकास कृष्ण और एथलेटिक्स में अश्विनी चिदानंदा स्वर्ण पतक जीतकर देश के नये सितारे बने। भारतीय खेल जगत ये दो नए सफल चेहरे हैं। नि:सन्देह सोमदेव बर्मन और पंकज आडवाणी का योगदान भी महत्वपूर्ण है परन्तु दो अनजान चेहरो की सफलता ने भी नई उम्मीदे जगाई है।

इस एशियाड में भारत को एतिहासिक सफलता मिली है परन्तु सफलता का एक बड़ा हिस्सा नये क्षेत्रो से आया है। इस सफलता को भविष्य की नई उम्मीदो के रूप में देखा जा सकता है।

 

२७ दिसंबर २०१०