विज्ञान वार्ता


शुक्र का पारगमन
-डॉ. भक्त दर्शन श्रीवास्तव


५ एवं ६ जून २०१२ को सूर्य पर शुक्र का पारगमन होने वाला है। पूर्वी या पश्चिमी आकाश में शाम को सबसे अधिक चमकने वाला तारा शुक्र ग्रह इस दिन मध्य आकाश में दिखाई देगा, वह भी दिन में ! अन्य दिनों में हम शुक्र के सूर्य से प्रकाशित भाग को चमकता हुआ देखते हैं लेकिन उस दिन शुक्र का अंधेरा भाग हमारी ओर होगा, फिर भी उसे हम देख सकेंगे क्यों कि वह जब सूर्य के सामने से गुजरेगा तो वह हमें सूर्य पर काले वृत्त के रूप में दिखाई देगा।

इस खगोलीय घटना को पश्चिमी पेसिफिक, पूर्वी एशिया और पूर्वी ऑस्ट्रेलिया से देखा जा सकेगा। उत्तरी एवं मध्य अमेरिका व उत्तरी दक्षिण अमेरिका में शुक्र पारगमन का प्रारंभ ५ जून को देखा जा सकता है, लेकिन पारगमन समाप्त होने से पूर्व ही सूर्य अस्त हो जाएगा। यूरोप, पश्चिमी एवं मध्य एशिया, पूर्वी अफ्रीका और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में इस घटना को समाप्ति तक देखा जा सकेगा, क्योंकि इन स्थानों में सूर्योदय से पूर्व ही पारगमन आरम्भ हो चुका होगा। भारतीय मानक समय के अनुसार शुक्र का बाह्यप्रवेश ६ जून २०१२ को ०३:३९:१३ बजे होगा और बाह्य निर्गमन १०:२२:४१ बजे होगा। भारत में भी इसके आरंभ का दृश्य नहीं देखा जा सकेगा क्यों कि वहाँ सूर्योदय ५:३० पर होगा जबकि पारगमन का आरंभ भारतीय समयानुसार तड़के ३.३९ बजे हो चुकेगा।

पारगमन क्या है

जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाता है तो सूर्यग्रहण पड़ता है। लेकिन जब अंदरूनी ग्रह जैसे कि बुध या शुक्र में से कोई भी ग्रह सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है तो उसे पारगमन कहते हैं। बुध व शुक्र दोनों ही अंतर्ग्रह होने के कारण पारगमन की घटना को प्रदर्शित करते हैं। बुध के पारगमन अपेक्षाकृत अधिक एवं एक सदी में लगभग १३ या १४ बार घटित होते हैं। जबकि शुक्र का पारगमन २४३ वर्ष में चार बार ही हो पाता है। यह घटना जोड़े में होती है दो पारगमन ८ साल के अंतराल में होते हैं, और अगले दो पारगमन एक शताब्दी से अधिक समय बाद होते हैं।

पारगमन दुर्लभ क्यों है

अंतरिक्ष और प्रकृति की दुनिया में यह घटना साधारण ही है लेकिन मानव की दुनिया में यह दुर्लभ है क्यों कि हर व्यक्ति इसे अपने जीवन में देख सके यह संभव नहीं है। पारगमन की घटना आमतौर पर बहुत कम होती है क्योंकि पृथ्वी की दीर्घ वृत्तीय कक्षा और इन ग्रहो की कक्षाओं के बीच थोड़ा सा झुकाव होता है। इस झुकाव के कारण ये ग्रह पृथ्वी की कक्षा के दीर्घ वृत्तीय तल से उत्तर की ओर कुछ ऊपर होते हैं या दक्षिण की ओर नीचे रहते हैं। बुध के पारगमन की तुलना में शुक्र का पारगमन ग्रहों की व्यवस्था में अधिक दुर्लभ घटना है। दूरबीन के अविष्कार के बाद केवल सात बार यह घटना देखी गई है। वर्ष १६३१, १६३९, १७६१, १७६९, १८७४, १८८२ और २००४ में। शुक्र और पृथ्वी के कक्षीय तलों के बीच ३.४ अंश के झुकाव को कारण शुक्र पारगमन का दोहराव एक विचित्र रूप में होता है। शुक्र पारगमन की घटना की आवृत्ति में इतना बड़ा अंतर शुक्र और पृथ्वी के कक्षीय तलों के अंतर के कारण होता है। अगर शुक्र और पृथ्वी के तल समान होते तो पारगमन घटना की आवृत्ति अधिक होती।

पारगमन का इतिहास

वर्ष १६०६ में जोहानस केप्लर (सन् १५७१-१६३०) ने अपने गणितीय आकलन से यह पता लगाया कि ग्रह सूर्य के इर्द-गिर्द दीर्घ वृत्तीय कक्षाओं में भ्रमण करते हैं। गणनाओं के आधार पर केप्लर ने अपनी रुडोल्फ तालिका में सर्वप्रथम यह भविष्यवाणी की थी कि शुक्र का पारगमन ६ दिसम्बर १६३१ में होगा, साथ ही बुध पारगमन की भी भविष्यवाणी की थी, जो ७ नवम्बर १६३१ को घटित हुई थी। खगोलविज्ञानी पियरे गसेंडी (१५९२-१६५५), ने केप्लर की खगोलीय सारणी का अध्ययन कर, ७ नवम्बर १६३१ के बुध पारगमन का प्रेक्षण किया। भारत में सर्वप्रथम टेलीस्कोप का प्रयोग एक अंग्रेज जेरेमियाह शेकर्ली ने किया था। वे केप्लर की गणनाओं का अनुसरण कर रहे थे। शेकर्ली ने सूरत में १६५१ में बुध के पारगमन का अवलोकन किया, लेकिन वह बुध के सूर्य के गोले के समक्ष प्रवेश एवं निर्गमन के समय को नोट नहीं कर पाए। एक अंग्रेज पादरी एवं खगोलविज्ञानी जेरेमियाह होरोक्स ने अपने विभिन्न अध्ययनों में वर्ष १६३९ तक यह ज्ञात कर लिया था कि शुक्र पारगमन की घटना आठ-आठ वर्ष के जोड़ों में करीब १२० वर्ष के अंतराल पर होती है। सर्वप्रथम शुक्र पारगमन के अवलोकन के गवाह बनने का श्रेय भी होरोक्स और उनके मित्र विलियम क्रैबट्री को जाता है, जिन्होंने २४ नवंबर १६३९ के शुक्र पारगमन को देखा।

पारगमन के पाँच चरण

पारगमन की घटना पारगमन की घटना निम्नलिखित पाँच चरणों में सम्पन्न होती है –

  • १॰ बाह्य प्रवेश या बाह्य स्पर्श- बुध या शुक्र का बिम्ब सूर्यबिम्ब से पारगमन के ठीक पूर्व जब स्पर्श करता है, तो उसे बाह्य प्रवेश या स्पर्श कहते हैं।

  • २॰ अन्तः प्रवेश या अन्तः स्पर्श- बुध या शुक्र का बिम्ब पूर्णतः सूर्यबिम्ब में प्रवेश कर जाता है, तो वह स्थिति अन्तःप्रवेश या स्पर्श कहलाती है। इसे ‘सम्मिलन’ भी कहते हैं।

  • ३॰ मध्य पारगमन- बुध या शुक्र का बिम्ब सूर्य के बिम्ब के पारगमन की कुल दूरी के मध्य बिन्दु पर हो, तो यह स्थिति मध्य पारगमन कहलाती है ।

  • ४॰ आन्तरिक निर्गमन या आन्तरिक मोचन- बुध या शुक्र का बिम्ब सूर्य के बिम्ब के ऊपर से पारगमन पूर्ण कर बाहर जाने के लिए सूर्यबिम्ब की सीमा से पहला स्पर्श करता है, वह आन्तरिक निर्गमन या मोचन कहलाता है। इसे ‘उन्मीलन’ भी कहते हैं ।

  • ५॰ बाह्य निर्गमन या बाह्य मोचन- बुध या शुक्र का बिम्ब सूर्यबिम्ब से पूर्णतः बाहर निकल जाता है, तो उसे बाह्य निर्गमन या मोचन कहते हैं । इसे ‘मोक्ष’ भी कहा जाता है।

पारगमन का महत्व

शुक्र पारगमन की घटना से हमारा ध्यान ग्रहों की जटिल गतियों, केपलर के नियम, गति और गुरूत्व आदि की और खींचती है। पारगमन की दुर्लभता और दोहराव हमें दिखाते हैं कि खगोलीय घटनाओं के पूर्वानुमान की गणना में किस प्रकार की कठनाईयाँ आती हैं। यद्यपि इन सार्वभौमिक नियमों की व्याख्या खगोलविज्ञानी और भौतिकविद् ही करते हैं लेकन इनके अनुप्रयोगों हम सभी लाभान्वित होते हैं।

४ जून २०१२