हास्य व्यंग्य

अजूबे और भी हैं इंडिया में!
—गुरमीत बेदी


अपना ताजमहल दुनिया के सात अजूबों में शुमार हो गया, इसके लिए अख़बार वालों और मोबाइल वालों का स्पैशल कोटि-कोटि थैंक्स! अपने इंडिया में मीडिया और मोबाइल नहीं होता तो पब्लिक की आवाज़ 'वर्ल्ड अजूबा सिलैक्शन कमेटी' तक कैसे पहुँचती? ( यहाँ तो सरकार के कानों तक आवाज़ पहुँच जाए तो यह अजूबा होता है) पब्लिक की आवाज़ दुनिया तक नहीं पहुँचती तो दुनिया को कैसे पता चलता कि इंडिया में भले ही पुत्र रत्न की चाहत में लोग अपने प्यार की फ़ीमेल निशानी को गर्भ में ही ख़त्म कर देते हों लेकिन शाहजहाँ के प्रेम की निशानी को अपने दिल से लगा कर रखते हैं। यानी इंडिया वालों के प्रेम के मामले में दुहरे मापदंड हैं। या यों कह लीजिए कि इंडियन्ज अपने प्यार की बजाये दूसरों के प्रेम के प्रति ज़्यादा-ज़्यादा सैंसटिव, ज़्यादा इमोशनल और ज़्यादा ऐक्साइटमैंट वाले होते हैं। दूसरों की प्रेम कहानियों को वे भोजन के साथ सलाद के रूप में ग्रहण करते हैं। इससे उन्हें स्पेशल प्रोटीन की प्राप्ति होती है, जिससे वे ऊर्जावान बने रहते हैं। यहाँ तो कब्र में पैर लटकाए बैठे किसी बूढ़े मर्द को भी किसी के प्रेम प्रसंग का लफड़ा सुना दिया जाए तो कब्र से पाँव हटाकर अपने खुश्क होठों पर जीभ फेरने लगता है। इंडिया में जिस दिन चैनल वाले प्रोफ़ेसर मुटुकनाथ और और उनकी फ़ीमेल स्टूडैंट जूली की प्रेम कहानी की पुनरावृति के प्रसंग टी०वी० पर दिखाते हैं, उस दिन इंडियन्ज दर्शकों के चेहरे पर शाइनिंग देखते ही बनती है। महँगाई की दुनिया से निकल कर वे प्रेम की दुनिया में पहुँच जाते हैं और यह भी भूल जाते हैं कि बच्चों की फीस भरने के लिए बटुआ जवाब दे चुका है। है न यह भी एक अजूबा! ताज्जुब की बात है कि 'वर्ल्ड अजूबा सेलेक्शन कमेटी' की नज़र इंडिया के इस अजूबे पर क्यों नहीं पड़ी? अगर पड़ जाती तो ताज पीछे छूट जाता और शाहजहाँ व उनकी वाईफ मुमताज की आत्माएँ इस ब्रह्मांड में घूमती हुईं झुनझुने बजाती रहतीं!

वैसे इंडिया में ताज के अलावा और अजूबे भी है। इनमें ताज कोरीडोर मामले की हम चर्चा नहीं करेंगे। यह लक्स कोज़ी बनियान की तरह माया और यू०पी०ए० के बीच अंदर की बात है। ताज के अलावा अपने इंडिया में और भी कई अजूबे हैं, जिन पर हम सिलसिलेवार चर्चा करेंगे। मीडिया से हमारा विशेष अनुरोध रहेगा कि वह इन अजूबों को दूसरे फ़ालतू लफड़ों की तरह बड़ी एक्साइटमैंट के साथ हाई-लाईट करे ताकि भविष्य में जब भी दुनिया के सात अजूबों पर कोई कमेटी पुन: विचार करने बैठे तो इंडिया के सात अजूबे ही विश्व के सात अजूबों में शामिल हो जाएँ। इससे दुनिया में इंडिया की रेपूटेशन बढ़ेगी। रेपूटेशन बढ़ने से टूरिस्टों की इंडिया में आमद बढ़ेगी, जिससे देश और देश वासियों की इकानोमी में ज़बरदस्त मज़बूती आएगी और हम वर्ल्ड बैंक व दूसरी एजैंसियों के आगे कटोरा लेकर खड़े होने के झंझट से बच जाएँगे। यह भी हो सकता है कि उल्टा वर्ल्ड बैंक व दूसरी एजैंसियाँ हमारे मुल्क के कर्णधारों के आगे कटोरा लेकर खड़ी हो जाएँ और मुल्क के कर्णधारों को फंडिंग के एवज में कमीशन खाने का बैठे-बिठाए मौका मिल जाए।

ताज के अलावा इंडिया में अजूबा नंबर-टू यह है कि यहाँ के व्यवस्था तंत्र में भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक समाया हुआ है और हर चुनाव में 'वोट अगेंस्ट करप्शन' का नारा उछलने के बाबजूद व्यवस्था तंत्र पीसा की मीनार की तरह वहीं का वहीं जमा रहता है। जो इसे नीचे से हिलाता है, कुछ दिन बाद वहीं इसके ऊपर चढ़कर बैठा नज़र आता है।

अजूबा नंबर थ्री यह है कि इंडिया की पॉलिटिक्स में मिक्सिंग और रि-मिक्सिंग की प्रक्रिया चौबीस घंटे चलती रहती है। यहाँ राजनीति के हमाम में लठैत, गैंगस्टर, डॉन, दलाल और डाकू भी अपने कपड़े उतारे नज़र आते हैं और जनसेवक भी उनसे गलबहियाँ लेते दिखते हैं। यानि इस हमाम में मिक्सिंग और रि-मिक्सिंग के तहत डाकू लोग राजनीतिज्ञ बन जाते हैं और राजनीतिज्ञ डाकू की भूमिका में आ जाते हैं। इससे बड़ा अजूबा और क्या होगा?

अजूबा नंबर फोर यह है कि यहाँ कोई भी दबंग व्यक्ति रेवेन्यू वालों की मदद से या फिर किसी पॉलिटिशियन के आशीर्वाद से किसी भी गरीब आदमी की ज़मीन पर कब्ज़ा जमा सकता है। यानि ज़मीन किसी की और कब्ज़ा किसी का। यह भी एक अजूबा ही है।

अजूबा नंबर फाईव यह है कि इंडिया में दसवीं फेल आदमी भी एम०बी०बी०एस० की डिग्री लेकर अपनी प्रैक्टिस शुरू कर सकता है और लोगों की ज़िंदगियों से खेल सकता है। इसी तरह जाली डिग्री के सहारे यहाँ मास्टर या प्रोफैसर बनकर विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करना भी कोई मुश्किल काम नहीं है। दुनिया इसे भी अजूबा मान सकती है कि विश्व गुरु कहलवाने वाले भारत में जाली डिग्री धारी गुरु भी कम नहीं हैं।

इंडिया का अजूबा नंबर सिक्स यह है कि दुनिया के दूसरे मुल्कों में ज़मीन पर पेड़ लगते हैं जबकि इंडिया में काग़ज़ों पर ही पेड़ लगा दिए जाते हैं और बाद में काग़ज़ों में ही यह सर्टीफाईड कर दिया जाता है कि सूखा, बाढ़, कोहरा और ब़र्फ़वारी की वजह से पौधे नष्ट हो गए। ज़्यादा इंटैलिजैंट ऑफ़िसर ग्लोवल वार्मिंग के मत्थे सारा दोष मढ़कर पौधारोपण का बजट हजम कर जाते हैं। यह भी एक अजूबा ही है।

अजूबा नंबर सैवन यह है कि इंडिया के किसी भी दफ़्तर में कोई भी काम करवाना मुश्किल नही है। 'नकद नारायण' के प्रताप से यहा फ़ाइलों को पंख लगते देर नहीं लगती और कायदे-कानून रातों-रात बदल जाते हैं। अजूबे इंडिया में और भी हैं। ऐसे-ऐसे अजूबे हैं कि दुनिया वाले दाँतों तले अंगुली दबा लें लेकिन जब दुनिया के अजूबों की गिनती सात तक रखी गई है तो बाकी के अजूबे बताकर दुनिया वालों का टाइम काहे को बर्बाद किया जाए?

16 जुलाई 2007