हास्य व्यंग्य

होना ना होना नाक का
--भावना वर्मा


क्या ऐसा हो सकता है? नेता जी ने आँखों और मुँह के नीचे की सपाट जगह को फिर से छुआ.. नहीं है! हैरत से उनका मुँह खुला रह गया... सचमुच नहीं है! भला ऐसा भी कहीं होता है? नाक तो एक तुच्छ कीड़े की भी होती है, फिर उन्हीं की नाक कैसे साथ छोड़ गई? उन्हीं के साथ से ज़्यादती क्यों, आखिर कहाँ गई होगी? उन्होंने फिर से अपने चेहरे को टटोला। अच्छा भला तो है उनके लाल फूले गाल, उनका माथा, उनकी तेजोमय आँखें, सब कुछ तो अपनी जगह पर ठीक है फिर ये ससुरी... ये ज़रूर उनके विरोधियों की चाल है! मीडिया पर आने वाले उनके सलोने चेहरे से जलते हैं सब! पर ये जगह देख कर तो लगता नहीं कि किसी ने काटा है... ये तो लगता है कभी थी ही नहीं यहाँ पर! पर कल ही तो विशेष विदेशी मेहमानों के साथ डिनर लिया था उन्होंने। पूंजी के लिए कितना मक्खन मारा- अपना खाली कटोरा एक स्वच्छ नैपकिन में पकड़ कर आगे किया था तब तो थी अपनी जगह। छूरी, काँटे से मांसाहारी चिली प्रिपरेशन खाते समय भी उनकी नाक से पानी गिरा था। उनके खादी सिल्क के कुर्ते की ऊपरी जेब में रखे खादी के रुमाल में लगे दाग इस बात के गवाह हैं।

फिर किसने की ये शरारत? कहीं कोई टोने-टोटके का चक्कर तो नहीं? ज़रूर यही बात है। उनसे चिढ़ने वालों की अमंगल करने वालों की कमी है क्या? फिरवा दिया गया होगा कोई मन्त्र-तन्त्र और हो गई नाक सिरे से साफ़! नाक ही से तो आन-बान-शान सब कुछ है। जिसकी जितनी ऊँची नाक उतना ही बड़ा नाम! नाक से ही तो इज़्ज़त है... नाक नहीं तो कुछ भी नहीं! अच्छा भला तो सोए थे खर्राटे भी खूब आए थे, फिर वातानुकूलित फाइव स्टार कक्षा में जेड सुरक्षा के बीच उनकी नाक गायब हो गई। कोई विश्वास करेगा। वे जल्दी-जल्दी कमरे का कोना-कोना छानने लगे... उन्होंने इन्टरकॉम का बटन दबाया।

- यस सर... सैक्यूरिटी गार्ड की आवाज़ आई.. ऐनी प्रॉब्लम सर!
- इस बंगले का चप्पा-चप्पा छान मारो... हमारी एक अमूल्य चीज़ खो गई है।
- इम्पॉसिबल सर। हमारे जाने बिना यहाँ तो परिंदा भी पर नहीं मार सकता। कोई घुसपैठिया आए तो तुरन्त गोली मार दी जाए। फिर कुछ भी कैसे खो सकता है सर? आपकी तबियत ठीक है ना सर। नींबू पानी भिजवा दूँ सर या रोज़ की कॉफी।
नहीं! तुम अपना काम करो। वे डपट कर बोले, फिर सोच में पड गए। क्या रात कुछ ज़्यादा हो गई थी। पहले शाही भोज और फिर नारी सुधार गृह का इमर्जेन्सी विजिट... हाँ वही पूछता हूँ। वहीं कुछ गडबड हुई होगी। नेता जी ने मोबाइल पर सधे हुए हाथों से नम्बर पंच किया..
- हेलो मैडम मैं बोल रहा हूँ... हाँ मैं।
- सर! आप! इतने सबेरे आप ने कैसे कष्ट किया? हुक्म कीजिए सर कोई विशेष सेवा चाहिए? कल ही इशारा किया होता तो आज ये तकलीफ़ ना उठानी पड़ती, हुजूर को। आज्ञा दें सर।
- हाँ मैडम देखिए... ज़रा कमरे को अच्छे से चेक करा लीजिए। हमारा कुछ छूट तो नहीं गया है।
- अरे नहीं सरकार! आपकी आज्ञा... आपके जाते ही मुँह अंधेरे ही सब ठीक-ठाक करा दिया है। कोई निशानी कैसे रह जाएगी। जांच कमेटी बैठवानी है। यहाँ सब नीट एण्ड क्लीन है। अपने हाथों से साफ़ किया है। क्या गड़बड़ है सर?
- कुछ नहीं... ठीक है।
- तो कब अगली सेवा चाहिए हुजूर को.. बस इशारा कर दें सर।
- अभी कुछ नहीं..

नेता जी झल्ला गए और खीझकर नम्बर काट दिया। अब क्या करें? किसी को बताएँ भी तो क्या, दिखाएँ भी तो कैसे? कि उनकी अपनी नाक चेहरे पर नहीं है... शीशे में उन्हें अपनी छवि दुबारा दिखी। नाक की जगह पतली-सी खाल, जिससे ठंडी-ठंडी हवा पास हो रही थी। पर ये कलाकारी किसने की होगी? इस उम्र में भी युवा वर्ग के नेता कहलाते हैं... उनकी ऐसी छवि और ये दुर्दशा! बिना नाक के तो वो कहीं के नहीं रह जाएँगे। अरे.. रे..! आज तो उन्हें ब्यूटी कॉन्टेस्ट में जज बन कर जाना है। नहीं-नहीं ऐसे हाथ पर हाथ धरे बैठने से कुछ नहीं होगा। आखिर तो वे सक्षम हैं कोई आम जनता नहीं कि लीजिए बैठे रो रहे हैं... कपार पीटते हुए। इंटरकॉम का बटन दबाया। पी.ए. साहब अन्दर आए।

- गुड मार्निग सर! आज के कार्यक्रम की लिस्ट ये रही। भाषण साथ में पिनअप हैं। काफी व्यस्त कार्यक्रम हैं। हाई कमान जी के साथ दिन का भोज भी है। विदेश से लाया हुआ है सिल्क का सूट तैयार करवा दिया है और कोई ख़ास सेवा सर! ये क्या सर.. नाक पर रुमाल। सर्दी-जुकाम। सिर दर्द, बदन दर्द, कुछ लेते क्यों नहीं?
- अरे पी.ए. तू कैसा पी.ए. है नामुराद, हमारे साथ ऐसा ग़ज़ब घोटाला हो गया है और तुम्हें ख़बर ही नहीं है।
- कोई ग़लती हो गई सर। कहिए तो अभी शहर के सारे अधिकारियों का बैंड बजवा दूँ। क्या परेशानी है सर बताइए तो।
- अरे- यह देख! नेता जी ने चिढ़ कर रुमाल हटाया।
- हैं! पी.ए. की आँखें फटी रह गई.. ग़ज़ब! ये क्या हो गया! आप की नाक!
- ई-ई धीरे बोलो, दीवारों के भी कान होते हैं। पत्रकार सूँघते घूम रहे होंगे चारों ओर, हमारा ज़िक्र किए बिना तो ये लोग मार्निग टी तक नहीं सुडकते।
- पर हुजूर, ये तो बहुत बड़ी जालसाजी मालूम होती है। ना जाने अपोजिशन का हाथ है या कोई विदेशी ताकत हमारे पीछे है। सिरे से नाक सफाचट। आपकी नाक.. सारे हिन्दुस्तान की नाक!!
- पी.ए. कुछ कर.. कोई तो उपाय होगा, मैं यहाँ छुप कर बैठा तो नहीं रह सकता। मेरे हज़ारों काम बाकी हैं। करोड़ों आँखें मुझ पर लगी हुई हैं।
- क्या करूँ, साहब पुलिस, मीडिया से बच कर कोई उपाय करना तो बड़ा मुश्किल है।
- वाह वाह, क्या अकल की बात की है। ऐसा करते हैं विज्ञापन निकलवा दें। हाँ भाइयों-बहनों मंत्री जी की नाक लापता है, उसे ज़िन्दा या मुर्दा पकड़ कर लाने वाले को मुँहमाँगा ईनाम!! कहीं सुना है ऐसा?
- तो फिर प्राइवेट डिटेक्टिव हायर करें, सर। सी.बी.आई वाले तो आप पर ही चढ बैठेंगे कि हुजूर आपने ऐसा क्या किया कि नाक कट गई? हाय! जिस नाक को बोफोर्स की तोप न उड़ा सकी.. जिसे तंदूर की आग न जला सकी। तरह-तरह के घोटालों में उलझी इन्क्वारियों के बुलडोजर तले पिसती अपनी जगह पर ऐंठी अलग से मुस्कुराती रही.. समितियों की रिपोर्ट से अपनी गन्द पोछती रही, ऐसी शाही नाक योंगायब हो गई। अरे हाँ हुजूर किसी ने आपसे पैसों की माँग तो नहीं की थी। आज कल तो माफिया वाले सरे आम गोली मार देते हैं।
- अरे नासमझ! हमारे दोस्त हमसे कुछ माँगते तो आगे चुनाव के समय काम भी तो आते। उन्हें देने में मैंने कभी आनाकानी की है क्या? कौन-सा मुझे अपनी तनख्वाह से देना था।
- पर सरकार.. कौन! कैसे! अपने किसी कार्यकर्ता के साथ वायदा खिलाफी तो नहीं की है। आजकल तो शारीरिक, मानसिक शोषण के खिलाफ़ बड़े प्रोटेस्ट कर रही है। गुस्सैल औरतों की चाल डायन की होती है। बाकी तो डायन भी नौ घर छोड़ कर चलती है। कोई टोना-टोटका करा के नाक सिरे से साफ़ कर दी होगी। अरे हाँ- गुरु जी!! वही बता सकते हैं कि किस महादशा से आपकी यह दुर्दशा हुई है।
- नेता जी की आँखों में आशा की ज्योति जगमगाई। पी.ए. साहब फ़ोन मिलाने लगे। बहुत देर घंटी बजने के बाद साध्वी जी ने जम्हाई लेते हुए शुभ प्रभात कहा। गुरु जी के विषय में पूछने पर आधी नींद में बुदबुदाई- सर! अभी तो उनसे बात कर पाना असंभव है। देर रात तक समाधि की विशेष कक्षाएँ चलती रहीं। सारे आश्रमवासी परमानन्द में लीन होने के बाद निद्रा का आनन्द ले रहे हैं। दो तीन घंटे बाद गुरु जी को आपका आदेश दे दूँगी।
- दो-तीन घंटे! सत्यानाश! सर आज तो भाभी जी आ रही हैं, वो तो यही समझेंगी ना कि अवकाश का आनन्द आपने जम कर उठाया है। उनके मायके वाले क्षेत्र की बाढ अब उतर गई है। हेलीकॉप्टर एक घंटे में आ जाएगा।
नेता जी सहम गए।.. पी.ए. साहब अब जल्दी ही कुछ करना पड़ेगा, हम सब कुछ सह सकते हैं पर तुम्हारी भाभी जी का गुस्सा! अब हम सुसाइड कर लेंगे।
- घबराए नहीं हुजूर... भरोसा रखें। आकाश पाताल एक करा देंगे। आखिर मिलेगी कैसे नहीं। आप आराम करें। हम किस लिए हैं। तूफ़ान से पी.ए. साहब बाहर निकल गए।

नेता जी कटे पेड़ की तरह भूमि पर दंडवत गिर पड़े। हे तिरुपति बाबा, पार लगाओ प्रभु आखिर विदेशी बैंकों में जमा स्वदेशी धन किस दिन काम आएगा। अपने किए गए कर्मों को याद कर के तो उन्हें अपनी स्वर्गीय नानी याद आ गई। आखिर पी.ए. साहब हाथ मलते वापस आए।
- क्या करें सर, सब जगह ढूँढा... हाई कमान की कुर्सी तले, होटल के डोंगे में, भाभी जी के वैनिटी बॉक्स, गुरु जी के खडाऊँ में, संसद के गलियारे में, मंत्रालय के दफ्तर में, समितियों की फ़ाइल में, सुधार गृह की लाउंड्री में, पार्टी के सजग कार्यकर्ताओं के झोले में, यहाँ तक कि तिरंगे की भी तलाशी ली गई पर.. समझ में नहीं आता अब क्या करें सर?

नेता जी से जवाब देते नहीं बना, वे मूर्छित हो गए, लम्बालेट। आँख खुली तो हाथ से टटोला... आश्चर्य! नाक अपनी जगह वापस लगी हुई थी। वे अपने चेहरे की रौनक वापस पा कर खुशी से झूम उठे। कैसे हुआ ये आश्चर्य!! कहाँ से घूम फिर कर आ गई मेरी लाडली। वे शीशे में बार-बार स्वयं को निहारते और उसे दुलारते।
पी.ए. साहब उनके पास जा कर फुसफुसाए- सर.. धीरे.. धीरे.. टाँके कच्चे हैं। ये नकली नाक है.. प्लास्टिक सर्जरी की देन, सँभाल के।
- हैं!! नेता जी की आँखें फटी रह गई। अभी तक तो वह सिर्फ़ ज्ञान-विज्ञान की प्रगति को भाषण का एजेण्डा समझते थे। जय हो नाक मइया... तेरी बड़ी कृपा!

उसके बाद किस्साओं कोताह नेता जी उसी नाक को ऊँची किए डोलने लगे। सब कुशल मंगल था। पर एक दिन... इस बार तो ऐन मौके पर दगा दे गई। शपथ ग्रहण का राष्ट्रीय प्रसारण हो रहा था कि सबने देखा नाक तो है ही नहीं। क्या हुआ कोई न जान सका, हाँ अब यदा कदा रुकावट के लिए खेद है कि तख्ती झूलने लगी है।

२२ दिसंबर २००८