हास्य व्यंग्य

कुर्सी में जान डालने की तकनीक
विनोद विप्लव


दादी-नानी की कहानियों में अक्सर वैसे दैत्यों एवं जादूगरनियों का जिक्र होता था जिनके पास ऐेसी प्रौद्योगिकियाँ होती थीं जिनकी मदद से वे अपनी जान को तोते-मैने आदि में डालकर निश्चिंत हो जाते थे। फिर चाहे उनकी जितनी धुनाई की जाए, चाहे जितनी बार उनकी गर्दन मरोड़ी जाए, चाहे जितने दिन उन्हें उल्टा लटकाए रखा जाए और चाहे जितनी बार पहाड़ से नीचे फेंका जाए उनका बाल बाँका नहीं होता। लेकिन जैसे ही तोते या मैने की गर्दन मरोड़ी जाते बड़े-बड़े दैत्य टें बोल जाते।

आज के जमाने में ये प्रौद्योगिकियाँ कुछ ही लोगों के पास रह गयी हैं, लेकिन आज जो हालात हैं उनमें सरकार को सब काम छोड़ कर ऐसी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने तथा इन्हें सर्वसुलभ बनाने में लग जाना चाहिये। इससे कई फायदे होंगे। चाहे स्वाइन फ्लू और डेंगू फैले, चाहे खाने-पीने की चीजों के दाम आसमान छूए, चाहे खाने में अरहर की दाल मिले या न मिले, बिजली की दिन-रात कटौती होती रहे, बाढ़ आए या सूखाड़ हो, पानी की सप्लाई हो या नहीं हो, चाहे दिन रात
दंगे होते रहें, ट्रेन दुर्घटनायें होती रहे, चाहे मेट्रो के पिलर गिरते रहें और ग्लोबल वार्मिंग होती रहे, किसी का कुछ नहीं बिगड़ सकता।

जिन मंत्रियों के पास ये प्रौद्योगिकियाँ हैं उनका कभी कुछ नहीं बिगड़ता चाहे मंहगाई हो, दंगे हो, दुर्घटनायें हो, भूकंप हो या तूफान हो, क्योंकि उनकी जान कुर्सी में बसती है। जब तक उनकी कुर्सी को कुछ नहीं होता उनकी जान पर कोई आफत नहीं आती। पिछले दिनों तो एक मंत्री ने यह कहते हुए इसका सबूत दे दिया कि अगर उनकी कुर्सी गयी तो उनकी जान चली जाएगी। सरकार ने उनकी जान बचाने के लिये ही भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे इस मंत्री की कुर्सी नहीं छिनी। जिस तरह से कई मंत्रियों ने जहाँ अपनी जान कुर्सियों में डाल रखी है उसी तरह से कई नेताओं ने अपनी जान संसद की सीट में डाल रखी है। जैसे ही उनकी संसद की सीट छिनती है उनकी हालत ऐसी हो जाती है कि उनकी जान अब निकली कि तब निकली।

पिछले दिनों तो एक पार्टी ने अपने लोकसभा चुनाव हार कर संसद की सीट से वंचित रहने वाले एक पुराने नेता की जान बचाने के लिये उन्हें किसी तरह से राज्य सभा की सीट देकर उन्हें जिंदा रखने का इंतजाम किया। वे बोल नहीं पाते, सुन नहीं पाते, देख नहीं पाते, चल नहीं पाते लेकिन राज्य सभा की सीट मिलते ही उनमें नई जान आ गई। लोकसभा की सीट से वंचित होने के बाद से उनकी हालत दिन-ब-दिन तेजी से बिगड़ती जा रही थी। डॉक्टरों ने जबाव दे दिया था। तभी उनकी पार्टी को अचानक इस रामबाण का ख्याल आया। अब चाहे उनके शरीर का एक-एक अंग जवाब दे जाए लेकिन उनकी जान नहीं जाएगी, क्योंकि उनकी जान पाँच साल तक के लिये राज्य सभा की सीट में डाल दी गयी है।

पार्टी ने जब उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने का टिकट नहीं दिया था तब पार्टी की जबर्दस्त आलोचना हुई कि उसने अपने ही बुजुर्ग नेता को जिसने पार्टी को पाला-पोसा और अपने पैरों पर खड़ा किया, मौका मिलते ही किनारा कर दिया। लेकिन अब पार्टी नेताओं की दूरदर्षिता की जयजयकार हो रही है। लोकसभा सीट का तो आजकल कोई भरोसा नहीं है, कब सरकार गिर जाए, कब चुनाव हो जाए। ऐसे में इतने बुजुर्ग नेता कैसे चुनाव लड़ पायेंगे लेकिन राज्य सभा की सीट के साथ तो इस तरह का खतरा नहीं है। वह पूरे पाँच साल तक रहेगी।

एक ऐसे ही अमर नेता हैं जिनके कई बार आपरेशन हो चुके हैं और शायद ही ऐसी कोई बीमारी है जो उन्हें नहीं है, लेकिन उनकी जान सही सलामत है क्योंकि उनकी जान बालीवुड स्टारों और बड़े उद्योगपतियों में बसती है और जबतक इन स्टारों और उद्योगपतियों का कुछ नहीं होगा, उनका बाल बाँका भी नहीं हो सकता। इसी अमर नेता ने पिछले चुनाव में संकट से बुरी तरह घिरी अपनी एक प्रिय सखी को चुनाव में यह कहकर जीत दिला दी कि अगर वह चुनाव हार गयीं तो वह अपनी जान दे देंगी। ऐसे में झख मार कर लोगों को उस नेता को जिताना पड़ा क्योंकि उस सुंदर सी-प्यारी सी नेता की जान की हत्या का पाप कौन अपने सिर पर लेना चाहेगा।

इन उदाहरणों से साफ हो गया है कि कुछ लोगों के पास अपनी जान को नश्वर चीजों में स्थानांतरित करने वाली प्रौद्योगिकी है। सरकार को सर्वजन सुखाय की भावना का परिचय देते हुए ऐसी प्रौद्योगिकियाँ लोगों को सुलभ करानी चाहिए ताकि वे अपनी जान को अनष्वर चीजों में डाल कर निश्चिंत हो सकें। ऐसी कुछ अनश्वर चीजें हैं - गरीबी, भूखमरी, मंहगाई, बेरोजगारी आदि क्योंकि चाहे कुछ भी हो जाए ये हमेशा रहेंगी।

२ जनवरी २०१२