हास्य व्यंग्य

संगमरमर की सीढ़ियाँ
शंकर पुणतांबेकर


सड़क से लगा एक बंगला कुछ ऊँचाई पर था, जिसकी गोल आकार की संगमरमरी सीढ़ियाँ बंगले को एक सामंती किस्म की ऐंठ प्रदान करती थीं, सामान्य‘ आदमी को ललकारती हुर्इ। हमारी पार्लियामेंट की सीढ़ियों की भाँति कि खबरदार! जो तुम-जैसे ऐरे-गैरे ने इधर कदम रखने की हिमाकत की।

एक दिन एक लड़के ने सीढ़ियों की चिकनाहट जानने के लिए उन पर हाथ फेरा। ‘ऐ लड़के, क्या करते हो?' ऊपर चौकीदार ने उसे हटका।
उस पंद्रह-सोलह साल के लड़के ने चौकीदार की ओर ध्यान नहीं दिया और सीढ़ियों पर बैठ गया।
‘अबे ऐ, अबे ऐ, यहाँ मत बैठ!' चिल्लाता हुआ चौकीदार नीचे आया।
‘कितनी अच्छी सीढ़ियाँ हैं, और कितने खराब आदमी की?' लड़के ने चौकीदार से कहा।
‘अबे ऐ, किसे खराब कहता है?'
‘देखो चौकीदार भाई! इन चिकनी सीढ़ियों पर सोने की बड़ी इच्छा है... आज नहीं दिवाली के दिन।'
‘नहीं, नहीं, तुम यहाँ सोओगे तो मैं तुम्हें हवालात में बंद करवा दूँगा।'

‘चौकीदार भाई, क्या तुम्हें पेट-भर खाने को मिलता है? नहीं, नहीं मिलता होगा, मैं जानता हूँ। इससे
तो बेहतर है तुम चोरी करो।'
‘लगता है तुम चोर हो।' चौकीदार गुर्राया और लड़के को पकड़ ऊपर मालिक के पास ले गया।
‘अबे ऐ लड़के! क्या करता है तुम्हारा बाप?' चौकीदार की शिकायत पर मालिक ने पूछा।
‘मुझे छोड़ दो। मैंने कुछ नहीं किया।' लड़का बोला। चौकीदार उसे पकड़े था।
‘क्या करता है तुम्हारा बाप बताओ.?'
‘आप सभ्यता से बात नहीं कर सकते? मैं जानता हूँ नहीं करेंगे आप!'
मालिक ने चौकीदार को बाहर जाने को कहा। वह जब चला गया तो मालिक बोला- ‘बताओ तुम्हारे पिताजी क्या करते हैं?'
‘ऐसा कोई गलत काम नहीं कि उनका आपके जैसा मकान हो।'
‘ऐ लड़के...'
‘मेरे पिताजी के एक दोस्त हैं। प्यारे-प्यारे दोस्त। वह चोरी करते हैं। पिताजी से कहते हैं तुम्हें, अगर ऊँचे मकान में रहना हो तो, मास्टरी छोड़ो, दुनिया को अच्छा सबक देना बंद करो और चोरी का काम पकड़ो। बिना चोरी या गलत काम किए तुम जिंदा नहीं रह सकते।'

‘क्या नाम है तुम्हारे पिताजी के इस दोस्त का?'
‘अभी मेरे चाचाजी का नाम बताना ठीक नहीं। आपके इतने बड़े नहीं हुए हैं न अभी, सो पकड़े जा सकते हैं। आपकी जैसी कोठी और प्रतिष्ठा जब हो जाएगी, तो आप ही उनका नाम दुनिया जानेगी।'
‘लड़के! तुम्हें कोड़े लगने चाहिएँ।'
‘जरूर लगने चाहिएँ। मेरे पिताजी इस तरह की बातें करते हैं तो उन्हें लगते हैं। उनसे ही सुनकर जानी हैं मैंने ये बातें'- लड़के ने कहा।

‘क्या है तुम्हारे पिताजी का नाम?'
‘उन्हें कोड़े लगाने के लिए ही जानना चाहते हैं न उनका नाम? मुझे ही लगा दीजिए उनके कोड़े।
पिताजी कहते हैं बेटे, मेरे संस्कार मत ढोओ, नहीं तो मेरे जैसे कोड़े तुम्हें खाने पड़ेंगे। सो संस्कार ढोने की सजा मुझे ही मिलनी चाहिए। पिताजी को नहीं।'
‘लगता है पिता का नाम रोशन करोगे?'
‘अभी मैंने तय नहीं किया है कि पिताजी का नाम रोशन कर भूखा मरूँ या चाचाजी का चोरी का धंधा अपना कर कुछ बनूँ....' लड़का बोला।

‘देखो, ऐसी बात नहीं करते। हमें देश को ऊपर उठाना है सो अच्छे नागरिक बनो।'
‘चाचाजी कहते हैं जो देश को नीचे गिरा रहे हैं, वे आम जनता से यही कहते हैं अच्छे नागरिक बनो। मतलब भूखे मरो। बेरोजगार रहो। अन्याय-अत्याचार-पक्षपात सहो। भ्रष्टाचारी को भ्रष्टाचार करने दो। लूटने वाले को लूटने दो।'

‘तुम्हारे पिताजी क्या कहते हैं? तुम्हें अपने पिताजी की बात सुननी चाहिए।'
‘मेरे पिताजी तो बहुत कुछ कहते हैं और सही कहते हैं।'
‘क्या कहते हैं?'
‘कहते हैं भारत पर विदेशियों के आज भी आक्रमण हो रहे हैं। इतिहास पढ़ा है आपने? पढ़ा भी होगा तो भूल गए होंगे।'
मालिक कुछ नहीं बोला।

‘भारत पर सिकंदर ने आक्रमण किया। कुछ याद है?'
‘मेरा इम्तहान मत लो।'
‘भारत पर कत्ल करने वालों ने आक्रमण किया-चंगेज खाँ ने, तैमूरलंग ने और हाँ, इनके पहले लूट के लिए आक्रमण किया महमूद गजनवी ने।'
‘मुझे इतिहास पढ़ाने की कोशिश मत करो.' मालिक ने कहा।
‘महमूद गजनवी तो बार-बार आता और देश को लूटकर अपने वतन चला जाता। जो काम महमूद गजनवी ने तलवार से किया वही काम तराजू से आगे चलकर अँग्रेजों ने किया, यहीं रहकर।'

‘बस बंद करो अपना इतिहास!'
'हाँ तो, मेरे पिताजी कहते हैं कि विदेशियों के आक्रमण भारत पर आज भी हो रहे हैं' लड़के ने कहा, ‘एकसाथ सभी विदेशियों के। इनमें सिकंदर है, चंगेज खाँ है, तैमूरलंग है, अँग्रेज हैं, इन सबसे बढ़कर है महमूद गजनवी।'
‘तुम्हारे पिताजी पागलों जैसी बात करते हैं।'
‘पहले अलग-अलग समय इन विदेशियों के आक्रमण हुए। आज इन सभी के एक ही समय हो रहे हैं। आपसी साठगाँठ से हो रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि देश जर्जर हो गया है चरमराने को हो आया है।'

‘चुप रहो.!'
‘आप इन्हीं विदेशियों में से एक हैं', लड़के ने कहा, ‘आप भारत में जाते हैं उसे लूटते हैं, लोगों का कत्ल करते हैं और फौरन अपने वतन- इस कोठी में लौट आते हैं।... तभी तो उधर बाहर भारत गरीब है और आप यहाँ अपने वतन में ऐसे अमीर हैं...'
‘चौकीदार! ... चौकीदार! इस लड़के को पकड़कर कोड़े मारो.' मालिक ने चिढ़कर कहा।
चौकीदार आए इसके पहले ही लड़का वहाँ से निकल भागा, लेकिन चिकनी संगमरमरी सीढ़ियों से लुढ़ककर नीचे जा गिरा। काफी चोट आई। पैर की हड्डी टूट गई।

मालिक ने लड़के को अस्पताल में भरती कर दिया। हमारे यहाँ अभी इतनी हया जरूर है कि हमने जिन पर गोली चलाई है उनका इलाज करें, वे मर गए हों तो उन्हें रकम घोषित करें।

५ नवंबर २०१२