कहानियां  

समकालीन हिन्दी कहानियों के स्तंभ में इस माह प्रस्तुत है नार्वे से 'शरद आलोक' की कहानी— 'दुनियाँ छोटी है'

मेज पर मोमबत्तियां जल रही है। नार्विजन गीतों की धुनें वातावरण को संगीतमय बनाने का प्रयास कर रही है। मोमबत्तियां वातावरण को शुद्ध सुगंधमय बना रही हैं। जहां तक भी दृष्टि जाती चहुं ओर लोग टोलियों एवं जोड़ियों में खड़े हुए वार्तालाप करते हुए क्रिसमस का आनंद ले रहे थे।

मैं मूर (नार्वेजीय भाषा में मां को मूर कहते हैं) के साथ यहां आया हूं। चाहे मूर ने हमें जन्म भले ही नहीं दिया। परंतु प्रेम अवश्य ही उसने मुझे अपनों से अधिक दिया है। वह मेरे समीप एक युवती को लेकर आयी – "मैं तुम्हारा परिचय करवाती हूं एक सुंदर नवयुवक से।"

गुलाबी झिल्लीदार शमीज – जैसे वस्त्र ऊपर पहने और नीचे पांवों में काली स्लैक्स। पुरानी भारतीय फिल्मों की नृत्यांगना हेलन का स्मरण हो आया। नीली आंखें, पुष्ट शरीर, उसके शरीर के अंग–अंग छलक रहे थे, जैसे अनजाने में उसने मेरे मन रूपी तालाब में अपने सौंदर्य का एक ही कंकड़ अपनी नयन दृष्टि से फेंका हो और मेरे मन रूपी तालाब में हलचल मचा दी हो।

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