कहानियां  

समकालीन हिन्दी कहानियों के स्तंभ में इस माह प्रस्तुत है  कनाडा से अश्विन गाँधी की कहानी—"मरना है एक बार"।

सितंबर महिने की ग्यारह तारीख, साल 2001 । मंगलवार की सुबह। अमेरिका में चार प्लेनस् ने अपनी उड्डान शुरू की और अपनी राह बदल दी। आकाश खुला था, सुबह खुशनुमा थी, मगर इरादे भयंकर थे। मनुष्य जीवन के इतिहास में आज की तारीख सदा के लिये अंकित होने वाली थी। एक ऐसी घटना होने जा रही थी जिसमें हर जीवित की जिंदगी एक ही दिन में पलट जानेवाली थी।

चार में से एक प्लेन अपना निशाना चूक गया। कहीं खेत में जा कर गिरा। जो भी जिन्दगियां थीं प्लेन में, भस्मीभूत हो गई।

शायद हम कभी पूरा जान नहीं पायेंगे : क्या हुआ? कैसे हुआ?

कल्पना के सहारे, जन्म लेती है एक कहानी : "मरना है एक बार"
कहानी, एक उस उड़ान की, जो अपना निशाना चूक गई।

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"अरे, रेहमान, इतना घबरा क्यों रहा है?"
"अब्दुल, यह मशीन जालिम सी लगती है। मालूम नहीं क्या होगा। देख वहां, उस आदमी का बैग खोला जा रहा है"। अब्दुल और रहमान अंतिम चेक–पॉइंट पर खड़े थे जहां से एक्स–रे मशीन में से गुजरना था।
"देख, हमने अपने हैन्ड–बैग ठीक से तैयार किये है, कोई मशीन चिल्लायेगी नहीं। कुछ सोच मत, चेहरे पर मुस्कान रख, और जब तेरी बारी आये तब गुड–मौर्निंग बोलना मत भूलना",  कांपते हुए रहमान को अब्दुल ने सांत्वना दी।

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