विज्ञान वार्ता

विज्ञान समाचार
डा गुरू दयाल प्रदीप 


डा श्रीकांत अनंत, पृष्ठभूमि में कैंसर कोशिका

प्रोटीन द्वारा कैंसर की रोकथाम

  • वाशिंग्टन युनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन में कार्यरत श्रीकान्त अनन्त एवं उनके सहयोगियों ने ‘साइटिडिन युरिडिन गुयानोसिन बाइंडिंग प्रोटीन–2’ की पहचान की है। भविष्य में यह प्रोटीन विभिन्न प्रकार की ट्यूमर कोशिकाओं को मारने एवं कैंसर की रोक–थाम में सहायक सिद्ध हो सकती है। इसके अतिरिक्त, सेंट जूड चिल्ड्रेन रिसर्च हास्पिटल के वैज्ञानिकों ने अभी हाल ही में पता लगाया है कि विकिरण या विषैले पदार्थों के संपर्क में कोशिकाओं के डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाते हैं जिसका प्रभाव म्यूटेशन, कोशिका– मृत्यु, कैंसर आदि के रूप में परिलक्षित होता है। क्षतिग्रस्त डीएनए 'एटीएम' नामक विशेष एन्ज़ाइम को सक्रिय करता है। एटीएम अन्तत: कुछ अन्य प्रोटीन्स जैसे Brca1 और   P53  को सक्रिय कर देता है। सक्रिय रूप में ये प्रोटीन्स कैंसर विशेषकर स्तन कैंसर को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि ‘एटीएम’ को सक्रिय होने से रोका जा सके तो इस प्रकार के कैंसर पर नियंत्रण किया जा सकता है।

  • विस्टार इंस्टि्यूट की वैज्ञानिक एर्टी एवं उनके सहयोगियों ने चिम्पैंज़ी के श्वास प्रणाली को संक्रमित करने वाले एडिनो वाइरस द्वारा एक नए प्रकार का टीका निर्मित करने में सफलता प्र्राप्त की है। एचआएवी प्रोटीन ‘गैग”–युक्त वैक्सिनिया वाइरस से संक्रमित चूहों को जब यह वैक्सिन दिया गया तो उन्हों ने टी–सेल आधारित शक्तिशाली प्रतिरोध क्षमता का प्रदर्शन किया। भविष्य में यह वैक्सिन एड्स से लड़ने में सहायक हो सकती है। फिलहाल एड्स एवं एचआइवी के विरूद्ध सफल प्रभावशाली वैक्सिन छलावा मात्र ही है। एड्स के बढ़ते प्रकोप को ध्यान में रख कर जोन हॉप्किन्स मेडिकल इंस्टिट्यूसन्स के जे .ब्रूक्स जैक्सन एवं उनके सहयोगियों ने ‘नेविरापाइन’ नामक औषधि का एक प्रतिरोधक के रूप में सफल परीक्षण किया। यह औषधि पहले से ही एड्स के उपचार में उपयोगी थी।

  • : वर्षों के सतत प्रयास के बाद कुछ समय पूर्व अमेरिकन वैज्ञानिकों ने मच्छर तथा मलेरिया परजीवी जीवाणु के जीन्स को श्रेणीबद्ध करने में सफलता पाई। इनके जीनोम की जानकारी के बाद यह आशा की जाती है कि निकट भव्ष्यि में मच्छरों के काटने से होने वाली मलेरिया एवं अन्य जान लेवा बीमारियों  की रोकथाम के लिए और असरकारक औषधियाँ खोजी जा सकेंगी।टेक्सास ए एंड एम युनिवर्सिटी के बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन में आजकल मधुम्क्खियों के जीन्स को श्रेणीबद्ध करने की योजना पर काम चल रहा है।इनके जेनेटिक नक्शे की सहायता से भविष्य में मधुमक्खियों के सामाजिक एवं व्यावहारिक जटिलताओं को समझने के साथ–साथ मधु की गुणवत्ता एवं उत्पादकता में भारी वृद्धि की जा सकेगी। 

  • परड्यू में कार्यरत डी जेम्स एवं डोरथी मूरे,पति–पत्नी की अनुसंधान टीम ने ‘जैविक घड़ी’ के रहस्य का पर्दाफाश करने में सफलता पाई है। इनके अनुसार वस्तुत: किसी भी कोशिका के सभी कार्य–कलापों का समय– नियंत्रण एक प्रोटीन द्वारा होता है। इस विशेष प्रोटीन के बारे में अच्छी तरह जानकर हम सोने से ले कर श्वास लेने  की प्रक्रिया, हृदय–गति, हार्मोमोन्स का समयबद्ध उत्पादन आदि सभी जैविक कार्य–कलापों  की तारतम्यता एवं एकलयता को न केवल समझ सकते हैं, बल्कि इनको नियंत्रित भी कर सकते हैं।

  • रॉचेस्टर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के वैज्ञानिक, नासा एवं एन एस एफ के सहयोग से एक प्रकार के अति सूक्ष्म पदार्थ ‘नैनोमैटिरियल्स’ के विकास में जुटे हुए हैं। इस परियोजना में सफलता का अर्थ है, सौर्य–ऊर्जा से संचालित होने वाले सेल्स की नई पीढ़ी का विकास। ये ‘सोलर सेल्स’ अत्यंत पतली पट्टी जैसे होंगे, जिनके मध्य में ‘सेमी कंडक्टर’ पदार्थ ह्यक्वान्टम डॉट्स के दाने तथा ‘कार्बन नैनो ट्यूब्स’ होंगे। इन सेल्स का आकार फुटबॅाल के मैदान कै बराबर होगा तथा ये काफी हल्के, लचीले एवं अंतरिक्ष की विषम परिस्थितियों को झेल सकने की क्षमता–युक्त होंगे। पारंपरिक ऊर्जा के स्रोत , खनिज ईंधन के लगातार घटते भंडार आज चिंता के  विषय हैं। सोलर सेल्स की इस नई पीढी को पृथ्वी के कक्षा में स्थापित कर, भविष्य में हम न केवल पृथ्वी बल्कि चंद्रमा एवं आस–पास के अन्य ग्रहों को भी लगभग मुफ्त विद्युत–वितरण कर सकते हैं।

  • टेक्नियॉन–इजराइल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी से संबद्ध डॉव डॉरी ने ‘आपकैट’ नामक एक नया सॉफ्टवेयर विकसित किया है। ऑपकैट के द्वारा कंप्यूटर प्रोग्रामिंग की भाषा न जानने वाले साधारण उपभोक्ता भी मातृभाषा में ही मौखिक, लिखित अथवा ग्राफिक रूप से अपने विचार कंप्यूटर को संप्रेषित कर सकते हैं। ऑपकैट मौखिक संप्रेषण का चित्रों एवं ग्राफिक संप्रेषण का मौखिक अनुवाद कर सकता है। इस सुविधा द्वारा साधारण उपभोक्ता भी कंप्यूटर की प्रोग्रमिंग में मनचाहा परिवर्तन कर सकता है। डॉव डॉरी का मानना है कि कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में यह एक क्रांतिकारी परिवर्तन है। भविष्य में यह कंप्यूटर प्रोग्रामर की भी छूट्टी कर सकता है। कंप्यूटर प्रोग्रामर, सावधान!

  • लगभग एक वर्ष पूर्व वीज़मैन इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर इहुड शैपीरो एवं उनके सहयोगी एन्ज़ाइम तथा डीएनए को मिला कर एक ऐसे आणविक कंप्यूटिंग यंत्र का निर्माण करने में सफल हुए जिसे प्रोग्राम किया जा सकता है । इस यंत्र में ऊर्जा का स्रोत एडिनोसिन ट्राई फास्फेटह्य अटप् हृ नामक जैव–ख अणु था। इस आविष्कार ने इन्हें अम्तर्राष्ट्रीय ख्याति दी।

  • हाल ही में इन लोगों ने डीएनए को ही इस यंत्र के ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग करने में सफलता पाई है, फलत: अब इसे किसी बाह्य ऊर्जा स्रोत की आवश्यकता नही है। इस जैविक कंप्यूटर–सूप की महज पाँच मिली लीटर की मात्रा में ऐसे लगभग 15,000 खरब कंप्यूटर हो सकते हैं और सामूहिक रूप से एक सैकेन्ड में लगभग 330 खरब संगणना 99 प्रतिशत सटीकता के साथ कर सकते हैं। इस यंत्र को सबसे छोटे जैविक कंप्यूटर के रूप में गिनीज वर्ल्ड रेकॉर्ड द्वारा सम्मानित किया गया है।

अगले माह नई सूचनाओं के साथ पुन: उपस्थित हांगे, इस बीच प्रतीक्षा रहेगी आपकी प्रतिक्रिया की।

मार्च 03 . अप्रैल03 . जून03