हास्य व्यंग्य

'ये' टैक्स भी लगाओ न!
—गुरमीत बेदी


ख़ाकसार की बीवी खुश है कि वित्त मंत्री जी का बजट 'फीमेल ओरियैंटिड' है। यानि वह अपने बजट में फीमेल्ज पर अच्छे ख़ासे फिदा हुए हैं और उन्होंने फीमेल्ज के लिए एक लाख अस्सी हज़ार रुपए की आय तक इंकम टैक्स से छूट दे दी है। अब 'छूट' चाहे आयकर की हो या शॉपिंग की, किटटी पार्टी अरेंज करने की हो या मायके जाने की, बीवी को 'छूट' बहुत पसंद है। लेकिन चिदंबरम जी ने उसे आयकर में जो छूट दी है, उससे वह मारे खुशी के बल्लियों उछल रही है। खुशी-खुशी में उसने सहेलियों को दावत पर भी बुला लिया है। वैसे ऑफ दि रिकार्ड बता दूँ कि ख़ाकसार की बीवी न तो नौकरी करती है और न ही उसका कोई बिजनिस है। ख़ाकसार की तनख्वाह ही उसकी आमदनी का एकमात्र स्रोत है और इस माह टैक्स अदा करने के बाद खाकसार को जो थोड़ी बहुत तनख्वाह मिली है, उसी से उसकी बीवी इस नई किस्म की खुशी को सेलीब्रेट कर रही है!

अब जैसे पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं लिया जा सकता, नौकरी करते हुए 'सरकार बहादुर' से से पंगा नहीं लिया जा सकता और बिजनिस करते हुए एक्साईज वालों को आँख नहीं दिखाई जा सकती, उसी तरह गृहस्थी का बोझ अपने कंधों पर ढोते हुए गृहलक्ष्मी को नाराज़ करने का रिस्क कैसे लिया जा सकता है? ख़ाकसार अपनी बीवी की खुशी में शरीक होने की रस्म अदा करने के साथ-साथ मुल्क के माननीय वित्त मंत्री जी को कुछ ऐसे टैक्स लगाने का सुझाव देना चाहता है जिससे हमारा मुल्क दुनिया के सामने एक उदाहरण भी प्रस्तुत करे और सरकार की आय भी बढ़े। लीजिए पेश-ए-खिदमत हैं कुछ मौलिक, अप्रकाशित और अप्रसारित सुझाव-

(एक) विरोध टैक्स : इस टैक्स से सरकार को इतनी इंकम होगी कि पूछो मत। इस टैक्स में यह प्रावधान होगा कि इस मुल्क में अगर कोई किसी का विरोध करता है तो उसे विरोध करने के ऐवज में टैक्स अदा करना पड़ेगा। यानि अपनी टैक्स रिटर्न में उसे इस बारे पूरी डिटेल देनी होगी कि उसने किसका विरोध किया, किस सीमा तक किया और क्यों किया? इस टैक्स का स्लैब विरोध के पैमाने पर डिपैंड करेगा। अगर विरोध सिर्फ़ बयानबाजी तक होगा तो टैक्स की दर कम होगी। अगर विरोध में धरना-प्रदर्शन और नारेबाजी शामिल होगी तो टैक्स थोड़ा ज़्यादा देना पड़ेगा और अगर विरोध का लेवल इससे ऊँचा होगा तो टैक्स लेवल भी ऊँचा हो जाएगा। अपने मुल्क में चूँकि एक-दूसरे का विरोध करने की प्रवृति ज़्यादातर पालिटिशियनों में ही पाई जाती है, इसलिए पालिटिशियनों को ज़्यादा से ज़्यादा इन्कम टैक्स अदा करना पड़ेगा। चाहे वे भ्रष्टाचार के ज़रिये इकट्ठे किए धन से टैक्स अदा करें चाहे किसी ठेकेदार या उद्योगपति की पॉकेट से पैसे निकलवाकर टैक्स जमा करवायें। इसके अलावा विरोध करने की खुजली से ग्रस्त समाज की अन्य प्रजातियों को भी अपनी खुजली मिटाने के लिए इस नए टैक्स का भुगतान करना पड़ेगा। सरकार की बल्ले-बल्ले हो जाएगी।

(दो) आश्वासन टैक्स : यह टैक्स उन लोगों को अदा करना पड़ेगा जो सिर्फ़ आश्वासन देकर ही अपना उल्लू सीधा करते हैं। इस टैक्स के दायरे में भी ज़्यादातर पालिटिशियन आएँगे, चाहे वे हाई लेविल से लेकर छुटटभैया लेविल के हों। इसके अलावा सरकारी दफ़्तरों के वे बाबू भी इन्कम टैक्स दाता हो जाएँगे जो आश्वासन देकर भी फाईल एक टेबुल से दूसरे टेबुल तक नहीं सरकाते। प्रेमिकाओं से शादी करने का आश्वासन देने वाले होनहार प्रेमी भी इस टैक्स के दायरे में आ जाएँगे। यानि सरकार की पाँचों उँगलियाँ घी में।

(तीन) भाषण टैक्स : यह टैक्स पालिटिशियनों के साथ-साथ कर्मचारी और मज़दूर यूनियनों के नेताओं को अदा करना पड़ेगा। इन सबका काम भाषण देना है। अब भाषण की भी किस्में होंगी। लंबा और उबाऊ भाषण देने वालों को ज़्यादा टैक्स देना पड़ेगा। चलताऊ भाषण देने वालों को थोड़ा कम टैक्स देना पड़ेगा। भड़काऊ भाषण देने वालों को टैक्स के साथ-साथ जुर्माना भी अदा करना पड़ेगा। अपने मुल्क में बहुत से लोग सिर्फ़ भाषण देकर ही काम चलाते हैं, इसलिए इस टैक्स से सरकार की इन्कम और बढ़ जाएगी।

(चार) चापलूसी टैक्स : इस मुल्क में चापलूसी की महान परम्पराएँ हैं। कर्मचारी अपने बॉस की चापलूसी करता है, बॉस अपने सुपर बॉस की चापलूसी को टॉप प्रायोरिटी देता है, सुपर बॉस लीडरों के आगे नतमस्तक होता है। लीडर पार्टी हाईकमान की चापलूसी करके राजनीति करता है। यानि 'चापलूसी मेव जयते'। सरकार चापलूसी की इस परम्परा को कैश करके ऐश कर सकती है। बस चापलूसी पर टैक्स ही तो लगाना है।

इसके अलावा टैक्स की कुछ और किस्मों के आइडियाज़ भी ख़ाकसार के जहन में हैं लेकिन ख़ाकसार को डर है कि वित्त मंत्री जी कहीं आइडियाज़ पर ही टैक्स न लगा दें। वित्त मंत्री जी क्या नहीं कर सकते?

१२ मई २००८