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अनुभूति

16. 9. 2005

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पिछले सप्ताह

फ़ोन बजता रहा
कृष्णा सोबती के धारावाहिक संस्मरण का
दूसरा भाग

°

मंच मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में 
बच्चन जी ने क्या खूब रचा

°

बड़ी सड़क की तेज़ गली में
अतुल अरोरा के साथ
ज़ीरो मतलब शून्य

°

रसोईघर में
तैयार करते हैं माइक्रोवेव पर
आलू मेथी का सूप

°

साहित्य संगम में
मोतीलाल जोतवाणी की सिंधी कहानी
का हिंदी रूपांतर
लालटेन, ट्यूबलाइट और
शैंडेलियर

फाटक से पोर्टिको तक जाते–जाते मनोहर के मन के आइने में कुछ यादें प्रतिबिंबित हो उठीं। उन बिंबों में लालटेन, टयूबलाइट और शेंडेलियर के तीन बिंब आपस में टकराकर एक अदभुत माहौल पैदा कर रहे थे। सन 1953 में दिल्ली के पुराने किले के शरणार्थी कैंप में रहते हुए दो दोस्त– गोपाल और मनोहर लोधी रोड के सिंधी स्कूल में साथ पढ़ते थे। रात को एक ही बैरक में लालटेन की रोशनी में वे दोनों मास्टर साहबों द्वारा दिया गया 'होमवर्क' करते थे। दोनों दोस्तों के पिता लोग भी पीछे सिंध के एक ही गांव में साथ–साथ बिताई ज़िंदगी के दिनों से आपस में दोस्त थे, और उनके बूढ़े चेहरों पर लालटेन की मंद–मंद रोशनी फैली थी।

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इस सप्ताह

कहानियों में
भारत से जयनंदन की कहानी
अठतल्ले से गिर गए रेवत बाबू

रतन ने कहा था, "बाउजी, अब हमलोग इस जनता नगर में नहीं रह सकते। यहां जीने की कोई क्वालिटी नहीं है। आसपास के लोग गंदे हैं, असभ्य हैं, जाहिल हैं, अशिक्षित हैं, झगड़ते रहते हैं, सफ़ाई पर ध्यान नहीं देते। हमारा पड़ोसी नाई, धोबी, बढ़ई, लुहार, फलवाला, दूधवाला हो, यह अच्छा नहीं लगता।" रेवत बाबू रतन का मुंह देखते रह गए थे, जैसे उसकी घृणा पड़ोसियों के प्रति नहीं अपने बाप के प्रति उभर आई हो। वे भी तो इन्हीं की श्रेणी के आदमी रहे। कारखाने में एक मामूली मज़दूर। मुख्य शहर से तीस किलोमीटर दूर इस नयी बस रही बस्ती में जब उन्होंने ज़मीन लेनी चाही थी तो इन्हीं फलवाला और दूधवाला ने उनके लिए दौड़–धूप की।
°

फ़ोन बजता रहा
कृष्णा सोबती के धारावाहिक संस्मरण का
तीसरा और अंतिम भाग

°

हिंदी दिवस विशेषांक में
तीन विशेष रचनाएं
महेशचंद्र द्विवेदी का चुटीला व्यंग्य
रहेगा बांस बजेगी बांसुरी

°

इंद्र अवस्थी का 
करारा हिंगलिश चिट्ठा
आइए नेशनल लैंगुएज को रिच बनाएं

°

और 
जितेन्द्र चौधरी की संवेदनात्मक स्वीकृति
मेरा हिंदी प्रेम

सप्ताह का विचार
बतक भारत का राजकाज अपनी भाषा में नहीं चलेगा तबतक हम यह नहीं कह सकते कि देश में स्वराज है।
— मोरारजी देसाई

 

अनुभूति में

नयी कविताएं
हाइकु
संकलन वर्षा मंगल
और
हिंदी को समर्पित कुछ विशेष रचनाएं

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में
अपराधबोध का प्रेत–तेजेन्द्र शर्मा 
चिठ्ठी आई है–कमलेश भट्ट कमल

शौर्यगाथा–राम गुप्ता
प्रश्न–नीलम जैन
सुहागन–विजय शर्मा
चीजू का पाताल–प्रमोद कुमार तिवारी

°

हास्य व्यंग्य में
आज्ञा न मानने वाले–नरेन्द्र कोहली 
जिसे मुर्दा पीटे  . . .–महेशचंद्र द्विवेदी
देश का विकास जारी है–गोपाल चतुर्वेदी
कुता–अरूण राजर्षि

°

दृष्टिकोण में
अनूप शुक्ला का आलेख
हैरी बनाम हामिद

°

फुलवारी में
जानकारी के अंतर्गत
आविष्कारों की नयी कहानियां
और शिल्पकोना में बनाएं
काग़ज़ का याक

°

रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का अंतिम भाग
मराठी ग़ज़लों में छंद–2

°

प्रकृति और पर्यावरण में
आशीष गर्ग बता रहे हैं बेहतर पर्यावरण्
के लिए अब बनेंगी बेहतर व सस्ती
जूट की सड़कें

°

प्रौद्योगिकी में
रविशंकर श्रीवास्तव की सलाह
ब्लागिंग छोड़ें पॉडकास्टिंग करें

°

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन 
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

   

 

 
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