मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


आज सिरहाने

 

रचनाकार
प्रेरणा गुप्ता

*

प्रकाशक
 बोधि प्रकाशन
बाइस गोदाम, जयपुर
राजस्थान
*

पृष्ठ - २२०
*

रु- २५०

सूरज डूबने से पहले (लघुकथा संग्रह)

‘सूरज डूबने से पहले’, प्रेरणा गुप्ता का प्रथम लघुकथा संग्रह है। संग्रह का नाम, संग्रह में इसी शीर्षक की लघुकथा और संग्रह का आवरण पृष्ठ, सब एक सुर में एक संदेश देते हैं कि कुछ कर गुजरने की क्षमताएँ हम सबके भीतर होती हैं, और हमें उन क्षमताओं को उभारने का, अपने भीतर सुसुप्ता अवस्था में दुबकी कला को, शक्ति को एक बार तो जागृत करने का प्रयास अवश्य करना चाहिए। इस संग्रह में लेखिका ने ‘मन की बात’ के अंतर्गत संग्रह प्रकाशन के पीछे अपने इस मंतव्य का उल्लेख भी किया है। यह बात लेखिका ने मात्र कहने के लिए नहीं कही है वरन् अपने जीवन में इसे चरितार्थ भी किया है। प्रेरणा गुप्ता जी ने लघुकथा लेखन के क्षेत्र में वर्ष २०१६ में कदम रखा और बहुत ही कम समय में इस विधा के पटल पर अपनी पहचान स्थापित कर ली इसके लिए वे बधाई की पात्र तो हैं ही, साथ ही यह तथ्य सुस्पष्ट करता है कि आपकी लघुकथाओं में ‘बात’ तो है।

१२१, लघुकथओं के संकलन ‘सूरज डूबने से पहले’ की लघुकथाओं में कथा तत्व की विविधता के साथ ही साथ विषय के अनुसार कहन को ढालने का लेखिका का कौशल भी सहज रूप से परिलक्षित होता है। इन लघुकथाओं से गुजरते हुए आपको अनुभव होगा कि बहुत आम सी बात या घटना में भी कथा तत्व खोज लेना लेखिका की विशेषता है। हमारे आस-पास ही उगती हैं ये कथाएँ। अविरल बहती दिनचर्या में काँटा डाल, ध्यान लगा बैठने की जरूरत नहीं होती लेखिका को कथा का फ्रेम बुनने में वरन् बहती धार में इनका निशाना ठीक वहीं लगता है, जहाँ कथा डूब- उतरा रही होती है।

गूढ़ बातों, सिद्धांतों और आदर्शों को जन साधारण के मानस में गहरे पैठाने के लिए कथा, कहानियों और किस्सों को हमेशा से ही माध्यम बनाया जाता रहा है लेकिन लघुकथा जैसे शब्द सीमा से बँधे माध्यम के जरिए मानवीय सरोकारों की बात करना, सामाजिक विसंगतियों, विषमताओं को उकेरना, उनके दुष्परिणामों को सामने लाना आदि आसान नहीं है, किंतु इस संग्रह की लघुकथाओं ने यह अत्यंत कुशलतापूर्वक कर दिखाया है और वह भी बहुत ही सहज भाषा में कुछ इस ढँग से कि बात, कथा पढ़ते- पढ़ते मर्म तक सीधे पहुँचे और घर भी करे।

गोरे रंग के प्रति आसक्ति की हद तक लगाव हमारे समाज की बहुत बड़ी विडम्बना है, जिसके चलते न जाने कितनी साँवली-सलोनी लड़कियाँ जीवन भर विभिन्न स्तरों पर संत्रास झेलने को बाध्य हो जाती हैं। इस विडम्बना को ‘कृष्णाप्यारी’ में बच्चे की मालिश करती मां और बुआ सास के बीच की बात- चीत के माध्यम से बहुत कलात्मकता से उभारा गया है। बुआ सास की पीड़ा जिन शब्दों में बह निकलती है, वे बहुत सहजता से यह संदेश भी दे जाते हैं कि महत्वपूर्ण बाह्य सौंदर्य़ नहीं वरन् विचार और मन है। रचनाशीलता का यह सहज आवेग ही इन लघुकथाओं को हमारे मन के बेहद करीब ला देता है।

पति- पत्नी के नाजुक संबंध के संवेदनात्मक पहलुओं को बहुत सटीक एवं सशक्त प्रतीकों के माध्यम से उजागर किया गया है, कथा ‘धुआँ’ में। सब्जी बनने जैसी रोजमर्रा और साधारण सी प्रक्रिया को उपेक्षित पत्नी के मन में खदबदाते दर्द से लेखिका ने इतनी खूबसूरती से जोड़ा है कि कथा का कलात्मक पक्ष हमें फ्रभावित कर जाता है।

‘आदम खुदा तो नहीं’, कथा में गृहणी घर में काम करने वाली से करवा चौथ की पूजा के लिए बाजार से करवा लाने को कहती है। गहरे बैठी सामाजिक धारणाओं और प्रथाओं के चलते विधवा नौकरानी यह काम करने को सहमत नहीं होती किंतु गृहणी द्वारा उसी से करवा मँगवाना और करवा पर शुभ चिन्ह बनवाना, मानव संवेदनाओं को घायल करती रूढ़ियों को तोड़ने और सामाजिक बदलाव के लिए प्रेरित करता है। विधवा स्त्री को अपशकुन मानना हमारी बहुत बड़ी सामाजिक कुरीति है और इस सोच को तोड़ने के लिए समय समय पर बड़े आंदोलन हुए हैं किंतु यह कथा बहुत सहज रूप से अंधकार में रोशनी की अलख जगाती है।

कथा में प्रतीक के प्रभावी उपयोग का एक और उदाहरण है, चमगादड़। पत्नी का दर्जा दोयम होने की सामाजिक विसंगति, पत्नी को डरा-धमकाकर रखने को पति होने की अनिवार्यता मानने की सोच को बहुत प्रभावी ढंग से कहा गया है। अंत में अपने भीतर बैठे भय को बाहर करने के लिए पत्नी का कमर कसना तथा सारा घटना क्रम, उतार- चढ़ाव चमगादड़ के माध्यम से जिस प्रकार प्रस्तुत किया गया है, वह पाठक के संवेदन को रुपान्तरित करने की क्षमता रखता है।

‘एंटी रिंकल’ और ‘आई लव यू दादी’, बाल मन की कोमलता तथा द्वंद को बहुत एहतियात से बरतती कथाएँ हैं। ये कथाएँ यह भी समझा जाती हैं कि बच्चों के सर्वागींण विकास के लिए घर में बुजुर्गों की कितनी अहम भूमिका होती है। स्वस्थ सामाजिक ढाँचे के लिए सभी पीढ़ीयों का आपस में जुड़ाव अत्यंत महत्वपूर्ण है।

‘हौसले की पतवार’, कथा जीवन दर्शन और आध्यात्म का पुट लिए हुए है। नायिका आत्महत्या के उद्देश्य से नदी की और भागी जा रही है और किनारे पहुँच अचानक ही उसकी मुलाकात हो जाती है निर्जन में डोलती इकलौती नाव में बेठे एकाकी नाविक से। यह नाविक जीवन नैया का खेवनहार है जो समझा जाता है, न जीवन आपके हाथ हैं, न मृत्यु। मनुष्य के हाथ है मात्र जीवन कर्म। अपनी परिस्थितियों से फिर जूझने का साहस ले लौटती नायिका, जीवन के किसी कमजोर क्षण में हम सबका मार्गदर्शन करने में सक्षम है।

‘प्रेम के दो मोती’ में दो सहेलियों की बात- चीत के माध्यम से जीवन के एक अनमोल सच से हमारा साक्षात्कार होता है- सच्चा और निस्वार्थ प्रेम हमारे जीवन की सबसे मूल्यवान पूँजी है। धन-दौलत, भौतिक सुख सुविधाएँ, शारीरिक सौंदर्य सब तुच्छ हैं प्रेम की निर्मल मिठास के सम्मुख।

इतना ही नहीं हमारे पर्यावरण पर मँडराते खतरे, प्रदुषण के दुष्परिणाम, संभावित भयावह स्थितियों की ओर हमारा ध्यानाकर्षण करती कथाएँ जैसे भय की कगार पर, कल की आहट आदि भी हिस्सा हैं इस संकलन की। गरज यह कि कथ्यों की विविधता, संदर्भों के बहु आयामों वाली कथाओं से सुसज्जित प्रेरणा गुप्ता का लघुकथा संग्रह ‘सूरज डूबने से पहले’ एक संग्रहणीय पुस्तक बन पड़ी हैं।

- नमिता सचान सुंदर
१ जून २०२२

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।