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कलम गही नहिं हाथ  



अगला विशेषांक- कमल

कमल का फूल न केवल कोमलता और सौंदर्य का प्रतीक है बल्कि राजनीति से लेकर साहित्य और संस्कृति तक इसकी गहरी पैठ है। इसी लिए तो यह हमारा राष्ट्रीय पुष्प है।

यह एक ऐसा पौधा है जो भारत की अनेक सामाजिक गतिविधियों से घनिष्ठता के साथ जुड़ा हुआ है। धार्मिक चित्रों, मंदिरों की दीवारों, गुंबदों और स्तंभों में कमल के सुंदर अलंकरण मिलते हैं। स्थापत्य में भी इसका भरपूर उपयोग किया गया है। जहाँ उदयपुर में पद्मावती माता जल कमल मन्दिर नामक मंदिर को कमल के आकार में बनाया गया है वहीं दिल्ली में स्थित बहाई उपासना मंदिर को भी कमल का आकार दिया गया है। एक ओर योग में वर्णित मूलाधार इत्यादि शरीर के सात प्रमुख ऊर्जा केन्द्रों को कमल या पद्म कहा गया है तो दूसरी ओर साहित्य में पद्मिनी नायिका को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। स्त्री और पुरुष दोनों के नाम के लिए कमल को सहजता से स्वीकारा गया है। खाने के शौकीनों को भसीड़ों के कवाब इसकी जड़ों से ही मिलते हैं तो अनेक प्रकार की सुगंधियों और दवाओं को बनाने में भी इसका प्रयोग होता है। इतिहास की ओर दृष्टि डालें तो एक पुराण को भी पद्मपुराण का नाम दिया गया है। यह सब तो थोड़ी सी बातें हैं इसके विषय में अपरिमित जानकारी से भरपूर रचनात्मक साहित्य को आगामी विशेषांक में प्रस्तुत करने का प्रयत्न करेंगे।

जून या जुलाई के माह में पिछले चार वर्षों से भारतीय पुष्पों पर विशेषांक निकालने की अभिव्यक्ति की एक परंपरा-सी बन गई है। इस क्रम में अभी तक गुलमोहर, अमलतास, कचनार और कदंब पर विशेषांक निकाले जा चुके हैं। इस वर्ष निश्चित हुआ है कि २१ जून का अंक कमल विशेषांक होगा। इसके लिए सभी रचनाकारों तथा पाठकों से कमल पर आधारित कहानियाँ, कविताएँ, व्यंग्य, निबंध, ललित निबंध, जानकारी से परिपूर्ण आलेख, संस्मरण आदि भेजने का निवेदन हैं। रचनाएँ हमारे पास जून की दस तारीख तक अवश्य पहुँच जानी चाहिये। आशा है सदा की तरह आपके सहयोग से इस विशेषांक को उपयोगी बनाया जा सकेगा।

पूर्णिमा वर्मन
१७ मई २०१०

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