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कलम गही नहिं हाथ


फेसबुक और हिंदी

पिछले एक माह में फेसबुक के अपने पन्ने को ध्यान से देखते हुए कुछ रोचक तथ्यों से सामना हुआ। लगा कि इसे साझा करना अनेक मित्रों और पाठकों के लिये रोचक रहेगा।

फेसबुक पर मेरी कविताएँ पढ़ने वाले सबसे अधिक लोग भारत में हैं- कुल १५,६४० में से १४,२०१, इसमें से १२,२३६ की भाषा अमेरिकी अंग्रेजी है, २१७७ की ब्रिटिश अंग्रेजी और केवल ९९६ लोग हिंदी भाषा का प्रयोग करते हैं। यह जानकर आश्चर्य हुआ। शुद्ध हिंदी में लिखी हुई मेरी रचनाओं पर अंग्रेजी भाषा वालों का क्या काम? फिर समझ में आया कि भारत में रहने वाले तमाम लोग फेसबुक के भाषा विकल्पों में चुनाव के समय अंग्रेजी को ही प्रमुखता देते हैं। कुछ लोग बेशक हिंदी काम का माध्यम अंग्रेजी को ही बनाए रखने में शान समझते हैं लेकिन बहुत बार ऐसा अज्ञानता के कारण भी होता है। हम कंप्यूटर पर प्रयोग किये जाने वाले अलग अलग विकल्पों में से भाषा विकल्प खोजने की कोशिश नहीं करते। सीधे अंग्रेजी में काम करना शुरू कर देते हैं।

अगर हम हिंदी का विकास चाहते हैं तो चाहे ईमेल हो या फेसबुक या अन्य कोई अन्य सार्वजनिक मीडिया उसमें हिंदी इंटरफेस खोजने की कोशिश करनी चाहिये। इससे दो लाभ होते हैं। एक तो यह कि इंटरनेट से संबंधित बहुत से शब्द जो हमें हिंदी में पता नहीं होते, इन साधनों का हिंदी में प्रयोग करने से पता चल जाते हैं। दूसरे कहीं कुछ गलत अनुवाद है तो उसके लिये हम सही शब्द सुझा भी सकते हैं। तीसरी विशेष बात यह है कि इन साधनों का हिंदी में प्रयोग करते हुए हम हिंदी की शक्ति को बढ़ाते हैं। हम गूगल, फेसबुक या ऐसे अन्य साधनों को यह संदेश देते हैं कि हिंदी में इतने ज्यादा लोग काम कर रहे हैं और इनकी भाषा संबंधित सुविधाओं की ओर ध्यान दिया जाना चाहिये। अगर हम इन्हें अंग्रेजी में ही प्रयोग करते रहेंगे तो यह गलत संदेश जाता है कि इन साधनों का हिंदी में प्रयोग करने वाले बहुत ही कम लोग हैं और इन पर ध्यान देने की विशेष आवश्यकता नहीं। इसके चलते इन सुविधाओं के प्रयोग से संबंधित तमाम निर्देशों के हिंदी अनुवाद नहीं किये जाते हैं या उन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता जिससे उनका सही तरह से पूरा प्रयोग करना बहुत से लोगों को कभी आता ही नहीं है।

आज अनेक भाषा-भाषी अपने फेसबुकपेज का शीर्षक अपनी भाषा में इस प्रकार बना सकते हैं कि उनकी भाषा का चुनाव करने वाले को उनकी भाषा में दिखे और दूसरी भाषाओं का चुनाव करने वालों को अंग्रेजी में। उदाहरण के लिये अगर मैं अपना नाम अरबी में लिखूँ तो अरबी भाषा का चुनाव करने वालों को वह अरबी में दिखेगा और अन्य भाषाओं का प्रयोग करने वालों को अंग्रेजी में। यह सुविधा अभी चीनी, जापानी, कोरियाई, रूसी, ग्रीक, अरबी, हीब्रू, यूक्रेनियन सर्बियन जैसी कुछ भाषाओं में हैं लेकिन हिंदी में नहीं है। यह हमारी कमी है कि इटरनेट जैसे मीडिया के महत्वपूर्ण माध्यम पर हम लिखते तो हिंदी में हैं लेकिन उनका हिंदी इंटरफेस इस्तेमाल नहीं करते। कुल मिलाकर यह कि गूगल, याहू या फेसबुक जैसी कंपनियों को यह संदेश नहीं दे पाते कि उन्हें हमारे लिये हिंदी में अधिक काम करने की जरूरत है।

फेसबुक के इस गणित में रोचक बात यह है कि मेरे पृष्ठ पर ९० प्रशंसक पाकिस्तान से और ८८ बांग्लादेश से आते हैं। क्या इन देशों में हिंदी पढ़ने पढ़ाने की व्यवस्था है? कुछ अन्य देशों का गणित भी बायीं ओर बने चार्ट में देखा जा सकता है। अन्य देशों में तो खैर समझा जा सकता हैं कि हिंदी भाषी प्रवासी भारतीय इन्हें पढ़ रहे होंगे या कुछ हिंदी छात्र।

फेसबुक के बहाने दुनिया के हर कोने में बसे कविताएँ पढ़ने वाले हिंदी प्रेमियों को मेरा नमन। बहुत से लोग शायद अपना पन्ना हिंदी में न भी कर सकें पर भारत में रहने वाले मेरे रचनाकार मित्रों में से कुछ लोग भी अपना पन्ना हिंदी में कर सके तो खुशी होगी।

अपना स्नेह बनाए रखें। संवाद भी बनाए रखेंगे तो और अच्छा लगेगा। नीचे दिये गए स्थान का प्रयोग अपनी टिप्पणी लिखने के लिये कर सकते हैं। इस ऊपर दिये गए चार्ट को क्लिक करने पर बड़ा आकार देखा जा सकता है। कुछ और रोचक तथ्य प्रतीक्षा में हैं शायद उन्हें देखना मनोरंजक रहे।

पूर्णिमा वर्मन
१४ अप्रैल २०१४

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