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दो पल

बीच में आई होप
-अश्विन गांधी

होप एक गाँव का नाम है। पहाड़ों के बीच, सौंदर्य से भरा हुआ, जहाँ एक बड़ा रास्ता दूसरे बड़े रास्ते से मिलता है। छोटा सा गाँव आते जाते मुसाफिरों पर ही निभ रहा हो। सफर के राही होप में कुछ विराम कर लेते और अपनी गाड़ी को आगे की मुसफिरी के लिये तैयार कर लेते।

एक गाड़ी दो मुसफिर के साथ, होप से निकल कर अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही थी। पहाड़ों से घिरा हुआ रास्ता, –– चढ़ने में गाड़ी थकान महसूस कर रही थी।

'ये गाड़ी की आवाज ठीक सी नहीं आ रही।' समीर ने कहा जैसे खुद से ही बात कर रहा हो। बाजू में बैठी जेनिफर ने सुना।
'क्या गाड़ी रूक जायेगी?'
'हाँ, लगता तो ऐसा ही है। कहीं रूक के देखना पड़ेगा,'
समीर ने गाड़ी को रास्ते के दायीं ओर लेना शुरू किया और वो गाड़ी को बंद करता, उसके पहले ही गाड़ी अपने आप शांत हो गई।

गाड़ी जेनिफर की थी। जेनिफर ने अभी अभी ब्रिटिश कोलम्बिया की युनिवर्सिटी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई पूरी कर ली थी, और अपनी गाड़ी कलौना में माता–पिता की रखवाली में छोड़ना चाहती थी। पढ़ाई खतम होने की खुशी में योरोप की छः महीने की यात्रा का कार्यक्रम बना रही थी।

करीब एक साल पहले समीर की जेनिफर से मुलाकात हुई। किसी यूनिवर्सिटी के सम्मेलन में कारों की बाते हो रही थी और यहाँ से दोनों की दोस्ती आगे बढ़ी। जब भी जेनिफर की गाड़ी में गड़बड़ी हुई, समीर को पुकार दे दी। पाँच साल के मेकॅनिकल इंजिनियरिंग के प्रोग्राम के समीर ने चार साल पूरे कर दिये थे, और नये साल की पढ़ाई शुरू होने के पहले कुछ दिन के लिये घर लौट रहा था।

समीर को कारों से दिलचस्पी बहुत ही छोटी सी उम्र से रही। हाइस्कूल के तीन अंतिम सालों में समीर ने चार टूटी–फूटी गाड़ियाँ खरीदी थी, एक के बाद एक, घर पर या स्कूल के गराज में गाड़ियों को चलती बनाया था, चमक दी थी, और मुनाफे से बेचा था। ये धंधे की कमाई सुरक्षित रही, युनिवर्सिटी के पढ़ाई के खर्चे में मददगार बनी रही, और समीर के माता–पिता खुशखुशाल रहे।

एक साल पहले समीर ने बीएम ड़ब्ल्यु खरीदी। नारंगी रंग की, बीस साल की आयु, और छोटी–मोटी हरकतों के साथ। पंद्रह सौ डॉलर में खरीदी, और पाँच सौ डॉलर्स और मरम्मत में जुड़ा दिये। समीर और नारंगी, जोड़ी नंबर १ ! जोड़ी तोड़ने की कीमत, आज तक, समीर के खयाल से चार हजार से कम नहीं।

'वाह! कितनी सुंदर जगह है! अगर किसी की गाड़ी रूक जाये, तो उसे ऐसी ही जगह रूकने को मिले,' जेनिफर बोल पड़ी, गंभीर परिस्थिति को हल्की बनाने की कोशिश में। समीर गरम हुई गाड़ी के इंजन की खबर ले रहा था। नज़र उठा के, चारो ओर घुमा के बोला, "हाँ, बात सच है, जगह बहुत सुंदर है, मगर जेनी, ये बेबी को खींचकर होप् तक जाना पड़ेगा, ये अभी चालू नहीं होने वाली!"

जेनिफर और समीर, दोनों के पास बीसीएए की सदस्यता थी। जेनिफर ने सेल फोन से बीसीएए को बुलावा दे दिया, और करीब एक घंटे के अंदर गाड़ी, मुसाफिरों के साथ, फिर से होप में आ गई। शुक्रवार की शाम के कोई सात बजे होंगे। होप का मुख्य रास्ता सुनसान नज़र आ रहा था। एक गराज, जो खुला था और जहाँ गाड़ी खींच के लायी गई थी, वो भी बंद होने की तैयारी में था।

"गाड़ी का डिस्ट्रीब्युटर फ्रीज हो गया है, मिकेनीकल अ‍ेडवान्स नहीं है।" गराज के माफिक वे जो मैकेनिक भी थे, ऐलान किया।

'तो फिर ये डिस्ट्रीब्युटर कहाँ से मिल सकेगा?' समीर ने पूछा।

'अभी तो सब पार्टस् की दुकान बंद होगी। वैसे तो अगर नया डिस्ट्रीब्युटर चाहिये तो वानकुवर से मँगवाना पड़ेगा, यहाँ कोई वो पार्ट रखता नहीं ।'

'डिस्ट्रीब्यूटर की कीमत क्या होती है?' जेनिफर ने पूछा, अभी अभी बिजनेस की ग्रेज्युएट जो बनी थी। खर्चे का कुछ अंदाजा लगाना पड़ेगा। सिर्फ दो साल पुरानी गाड़ी, और दो महिने पहले ही 'कनेडियन टायर' गराज़ में से दो सौ डॉलर्स का खर्च झेल चुकी थी।

नये वाले की कीमत तीन सौ चार सौ डॉलर्स हो सकती है। अगर पुराना रिबिल्ट पार्ट है, या तो स्क्रेप यार्ड से मिल गया, तो कुछ कम हो सकता है। देखो, शायद मेरे घर पर रिबिल्ट डिस्ट्रीब्युटर हो सकता है। मैं कल सुबह देख के बता सकता हूँ। अगर आप चाहे तो अपनी गाड़ी रातभर के लिये मेरे गराज पर छोड़ जा सकते हैं।'

जेनिफर ने समीर से आँख मिलाई, और अंदाज लगाया कि ये प्रस्ताव कुछ जमा नहीं।

'हमें रात तो वैसे होप में गुजारनी होगी। हम कल सुबह डिस्ट्रीब्यूटर की तलाश करेंगे। गाड़ी को टो–लोट में रखना अच्छा रहेगा।' जेनिफर ने कहा, और होप की सड़क पर समीर के साथ चल पड़ी।

"समीर, मुझे कुछ नहीं समझ में आता। डिस्ट्रीब्युटर... मिकेनीकल एडवान्स... जानते हो, इन बातों से मुझे ठंड सी चढ़ रही है, और मेरी अज्ञानता मुझे सता रही है।"

"सुनो, जेनी, अगर मेरे कहने से कुछ अच्छा लगे तो मैं ये कहूँगा कि ज्यादातर जो लोग गाड़ी चलाते हैं, ना उनके पास समय है या इच्छा है या जरूरत है कि वो ये सब जाने।"

"हाँ, वो सच है, समीर, मगर जब ऐसी घटना घटती है तब मूर्खता सी महसूस होती है। ये बताओ, समीर, कितने ईमानदार मैकेनिकों से अब तक मिले हो?"

"तुम जानती तो हो कि पिछले कुछ सालों से मेरी मोटरगाड़ियो में दिलचस्पी रही। जब कभी मैं अपने माता–पिता की गाड़ी मैकेनिकों के पास ले गया तब जो काम कराना चाहा वही हुआ, और ठीक से हुआ। शायद मेरा प्रभाव रहा होगा, मैकेनिकों की ईमानदारी बनाए रखने में! वैसे तो इन्सान के स्वभाव के अनुसार उस धंधे में ईमानदार बने रहना कठिन है जहाँ ग्राहक की अज्ञानता अपार हो!"

"समीर, आज रात तो यहीं होप में गुजारनी होंगी।"
"हाँ, और जानती हो, गाँव का नाम होप मतलब कि आशा, बुरा नहीं लग रहा!"
"वैसे तो हम अभी तक स्टूडेंट हैं , मोटेल में दो अलग कमरे लेना व्यर्थ सा रहेगा, ठीक है समीर?"
"ओह! हम दोस्त है, और कुछ भी नहीं हो सकता जो हम दोनों नहीं चाहते, ठीक है?"
"ठीक है, समीर।"

शनिवार की सुबह समीर ने फोन करना शुरू किया। रेकिंग–यार्ड के पास, जो चाहिये था, वो डिस्ट्रीब्यूटर नहीं था। पार्ट–स्टोर चार बजे तक वानकुवर से ये पार्ट तीन सौ डॉलर खर्च करने पर में मँगवा सकते थे।

समीर और जेनिफर होप की उसी सड़क पर फिर से निकल पड़े। कल रात वाले मैकेनिक से फिर से मिले। मैकेनिक ने अपने घर पर पार्ट की तलाश ठीक से नहीं की थी। आगे चलकर टो–कोर्ट पर पहुँचे। समीर ने गाड़ी चालू करने की कुछ और कोशिश करी, मगर गाड़ी अकड़ कर खड़ी ही रही।

"अब क्या करेंगे, समीर?"

"अरे कोई बात नहीं, ये बेबी को आज हम घर जरूर पहुँचा देंगे। शायद हम गाड़ी से पूरा डिस्ट्रीब्युटर निकाल दे, और कहीं गराज में चेक करवा ले।"

"मगर हमारे पास कोई औज़ार नहीं हैं । चलो हम कहीं से एक रिंच खरीद ले।" जोड़ी फिर से आ गई होप की सड़क पर। एक एड़जस्टेबल रिंच खरीदा, डिस्ट्रीब्युटर निकाल लिया, और निकल पड़े किसी दूसरे गराज़ की तलाश में! जोड़ी की किस्मत बदलनेवाली थी। दूसरे गराज का मिकेनीक शायद ईमानदारों की बस्ती में से था।

"देखो पूरा डिस्ट्रीब्युटर बदलने की जरूरत नहीं। मिकेनीकल एडवान्स की शायद ही यहाँ जरूरत रहती है। खराब कन्डेन्सर ने पोइण्ट जला दिये है। हम पोइन्ट साफ करके फिर लगा देते हैं," इस मैकेनिक की आवाज़ बहुत ही मधुर सी सुनाई दी।

"फिर मुझे कन्डेन्सर बदलना होगा?" समीर ने पूछा।
"हाँ, कन्डेन्सर तो बदलो, साथ साथ शटर और केप भी बदल दो।
छोटे छोटे पार्टस् है, बाजुवाले स्टोर्स से खरीद लो, कुछ पच्चीस तीस डॉलर्स में मिल जायेगा।"
गाँव का नाम होप सार्थक हो रहा था। गाड़ी होप् की सड़क से आगे निकलकर घर पहुँच गई।

टेलिफोन की घंटी बजी।

"डैड, मैं आज शाम को आपके साथ नहीं जा सकता, जेनिफर का अभी फोन आया था। उसके माता–पिता मुझे डिनर की दावत दे रहें हैं... वो जो जेनिफर की गाड़ी होप की सड़क पर मरम्मत कर दी थी..... "

"ओह , तो मैं क्या करूँगा? क्या मैं तुम्हारे साथ आ सकता हूँ?"
"नहीं डैड, आप को नहीं बुलाया गया है!"
"ठीक है, समीर, बहुत ही सुंदर हो संध्या तुम्हारी। हम कल मिलेंगे।"

१५ जून २००१

 
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