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इतिहास

 
विश्व हिंदी सचिवालय का सफरनामा

--डॉ. राकेश शर्मा


हिन्दी का एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में संवर्द्धन करने और विश्व हिन्दी सम्मेलनों के आयोजन को संस्थागत व्यवस्था प्रदान करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना का निर्णय लिया गया। इसकी संकल्पना १९७५ में नागपुर में आयोजित प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन के दौरान की गई जब मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री सर शिव सागर रामगुलाम ने मॉरीशस में विश्व हिन्दी सचिवालय स्थापित करने का प्रस्ताव किया।

इस संकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए भारत और मॉरीशस की सरकारों के बीच २० अगस्त १९९९ को एक समझौता ज्ञापन सम्पन्न किया गया। १२ नवम्बर २००२ को मॉरीशस के मंत्रिमंडल द्वारा विश्व हिन्दी सचिवालय अधिनियम पारित किया गया और भारत सरकार तथा मॉरीशस की सरकार के बीच २१ नवम्बर २००१ को एक द्विपक्षीय करार सम्पन्न किया गया।विश्व हिन्दी सचिवालय की एक शासी परिषद (गवर्निंग कौंसिल) तथा एक कार्यकारी मंडल (एग्ज़िक्यूटिव बोर्ड)
है। विश्व हिन्दी सचिवालय के महासचिव इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

अमेरिका में हिन्दी की स्थापना लाला हरदयाल, करतार सिंह सराया एवं सोहन सिंह मकाना ने १९१३-१५ के मध्य गदर पार्टी की स्थापना के साथ की। युवा अमर शहीद करतार सिंह सराया ने लिखा – “मैं हिन्दी, ठेठ हिन्दी, खून हिन्दी, जात हिन्दी हूँ, यही मजहब, यही फिरका, यही है खानदाँ मेरा।“ इन स्वाभिमानी देशभक्तों की राष्ट्र और राष्ट्रभाषा के प्रति अगाध श्रद्धा को विश्व में हिंदी की स्थापना की दिशा में प्रवासी भारतीयों के प्रथम प्रयास के रूप में देखा जा सकता है। कभी दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्र की ठेठ देहाती भाषा रही हिंदी आज देशकाल की सीमाओं को तोड़ कर विश्व मंचों पर अपना परचम लहरा रही है। इस क्रम में मारीशस में विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना शायद हिंदी के विश्वभाषा बनने के सफरनामें में मील का पत्थर साबित होने जा रहा है। परन्तु इस सचिवालय के स्थापना का भी
अपना एक इतिहास रहा है।

सन् १९७५ हिन्दी जगत का ऐतिहासिक वर्ष था। इसी वर्ष में भारत के शहर नागपुर में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया था। मार्के की बात यह थी कि प्रवासी भारतीय, मारीशस के प्रधानमंत्री डॉ. शिवसागर राम गुलाम को उस सम्मेलन का अध्यक्ष पद संभालने के लिए निमंत्रित किया गया था। इससे साबित होता है कि उनके प्रति भारतीयों की कितनी भावभीनी आत्मीयता थी। डॉ. शिवसागर रामगुलाम के बचपन के समय देश में हिन्दी पढ़ाने का प्रावधान नहीं था। डाक्टरी विधा के अध्ययन में वे १४ वर्ष तक विलायत में रहे। फिर भी वे धाराप्रवाह हिन्दी बोलते थे। प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन में हिन्दी में ही अध्यक्षीय भाषण देकर उन्होंनें लाखों हिन्दी प्रेमियों का दिल जीत लिया था। अपने भाषण में उन्होंने एक ऐसे अंतरराष्ट्रीय हिन्दी केंद्र की स्थापना का विचार रखा जहाँ से भारत के बाहर के देशों में भी हिन्दी का प्रचार हो। डॉ. रामगुलाम ने यह भी स्वीकृति दी कि अगले वर्ष यानी कि १९७६ में मारीशस में हिन्दी का दूसरा विश्व
हिन्दी सम्मेलन आयोजित किया जाए।

सन १९७६ में हिन्दी के इतिहास का द्वितीय विश्व हिन्दी सम्मेलन मारीशस में आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में एक अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी केन्द्र की मारीशस में स्थापना को प्रस्ताव रूप में स्वीकार किया गया। १९७६ के पश्चात आगे चलकर
१९८३ में नई दिल्ली में, १९९३ में पुन: मारीशस में तथा १९९६ में त्रिनिडाड में इस प्रस्ताव को समर्थन प्राप्त होता रहा।

१५ दिसंबर १९८५ को डॉ. शिवसागर रामगुलाम का देहावसान हो गया। उनके सुपुत्र डॉ. नवीनचन्द्र राम गुलाम देश के प्रधानमंत्री बने। उन्होंनें अपने पिता सर शिवसागर के महान सपने को साकार करने की ओर कदम उठाया। उन्होंनें भारत सरकार की सलाह से स्थानीय शिक्षा मंत्रलय के तत्वावधान में मारिसस में एक ‘विश्व हिन्दी सचिवालय’ का दफ्तर खुलवाया। सचिवालय की स्थापना के लिए सलाहकार के रूप में श्रीमती सरिता बुद्ध को नियुक्त किया गया। बाद में श्री अजामिल माताबदल जी सचिवालय के संयोजक नियुक्त हुए। फिर सचिवालय के लिए एक अलग दफ्तर और अतिरिक्त कर्मचारी नियुक्त किए गए। सचिवालय के दफ्तर में एक पुस्तकालय की व्यवस्था की गई और एक विश्व हिन्दी पत्रिका के प्रकाशन पर कार्य आरम्भ हुआ। संयोजक के प्रयास से एक कवि सम्मेलन का भी आयोजन हुआ जिसमें भाग लेने के लिए दिल्ली से डॉ. केदार नाथ सिंह तथा डॉ. राजेन्द्र गौतम को आमंत्रित किया गया। इस प्रकार काम आगे बढ़ता रहा और अंतत: विश्व हिन्दी सचिवालय की नींव डालने का समय आ गया।

मारीशस में महात्मा गांधी का पदार्पण ३० अक्टूबर १९०१ को हुआ था। गांधी आगमन के शताब्दी समारोह (१नवंबर २००१) में भाग लेने तथा इसी अवसर पर मारीशस में विश्व हिन्दी सचिवालय की नींव डालने के लिए भारत के मानव संसाधन विकास, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा महासागर विकास मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी पधारे हुए थे। शिलान्यास समारोह के अवसर पर उन्होंनें एक सारगर्भित भाषण दिया जिसकी चंद पंक्तियों को यहाँ उद्धृत करना यहाँ अप्रासंगिक न होगा।

“आज मेरी आँखों के सामने एक सपना मारीशस की सुंदर धरती पर साकार हो रहा है, जो २६ वर्ष पूर्व १९७५ में आपकी-हमारी पितृ-भूमि में देखा गया था। अवसर था नागपुर में आयोजित प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन का। इस दौरान हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा दिलाने के उत्साहपूर्ण वातावरण में स्वतंत्र मारीशस के प्रथम प्रधानमंत्री सर शिवसागर रामगुलाम ने मारीशस में स्थायी विश्व हिन्दी सचिवालय बनाये जाने का प्रस्ताव रखा। वे चाहते थे कि हिन्दी को प्रतिष्ठा दिलाने का काम नियमित तथा सुसम्बद्ध तरीके से चलाया जाए।“

हिन्दी की अस्मिता का प्रतीक- हिन्दी सचिवालय बनाने का सपना विश्व भर के हिन्दी प्रेमियों के मन में बना रहा। मारीशस, भारत, फिर मारीशस और उसके बाद त्रिनिडाड में हुए विश्व हिन्दी सम्मेलनों में हर बार यह संकल्प दोहराया गया। भारत और मारीशस ने इस सपने को साकार करने के लिए आगे बढ़कर पहल की और लंदन में छठे विश्व हिन्दी सम्मेलन के आयोजन से पूर्व २० अगस्त, १९९९ के शुभ दिन, विश्व हिन्दी सचिवालय को परस्पर सहयोग से मारीशस में स्थापित करने के समझौते पर स्वीकृति की मुहर लगा दी गई। १२ नवम्बर २००२ को मॉरीशस के मंत्रिमंडल द्वारा विश्व हिन्दी सचिवालय अधिनियम पारित किया गया और भारत सरकार तथा मॉरीशस की सरकार के बीच २१ नवम्बर २००१ को एक द्विपक्षीय करार सम्पन्न किया गया। लंदन सम्मेलन ने इस सद्प्रयास का हार्दिक स्वागत किया और आज हम इस सुंदर भूमि पर उस सपने को साकार होते देख रहे हैं। विश्व हिन्दी सचिवालय ने ११ फरवरी २००८ से
औपचारिक रूप से कार्य करना आरंभ कर दिया है।

मारीशस स्थित विश्व हिन्दी सचिवालय का पहला भव्य विचार गोष्ठी समारोह गुरुवार १० मई, २००७ को इन्दिरा गांधी भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र में देश के शिक्षा एवं मानव संसाधान मंत्री माननीय धरमवीर गोकुल की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। इस अवसर पर कला एवं संस्कृति मंत्री महेन्द्र गौरेसु, देश की हिन्दी संस्थाओं के प्रतिनिधि तथा बहुत से अन्य हिन्दी प्रेमी उपस्थित थे। विचार-गोष्ठी का विषय था, ‘हिन्दी का उन्नयन: चुनौतियाँ एवं समस्याएँ।’ कार्यक्रम एक वन्दना गीत से शुरू हुआ।प्रसिद्ध गायिका वर्षा रानी बिसेसर ने अपने मधुर स्वर में गीत प्रस्तुत किया : ‘जन-जन की अभिलाषा
कि हिन्दी बने विश्व भाषा॥’

श्रीमती वीणु अरुण ने अपने स्वागत भाषण में विश्व हिन्दी सचिवालय के उद्देश्यों को संक्षेप में बताया। शिक्षा मंत्री, जो सचिवालय के संरक्षक हैं, उन्होंने हिन्दी की समुन्नति के लिए संगठित होकर कार्य करने को कहा। संगोष्ठी में भारतीय उच्चायोग के द्वितीय सचिव श्री जयप्रकाश कर्दम, कला और संस्कृति मंत्री माननीय महेन्द्र गौरेसु, आर्य सभा के महासचिव श्री सत्यदेव प्रीतम, हिन्दी संगठन के प्रधान श्री अजामिल माताबदल, साहित्यकार रामदेव धुरन्धर, महात्मा गांधी संस्थान के हिन्दी विभाग की डॉ. आर. गोबिन ने भाग लिया और हिन्दी को विश्व भाषा बनाने पर बल दिया। वक्ताओं का विचार था कि पहले हिन्दी को राष्ट्रसंघ में प्रायोगिक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने के लिए पूरी कोशिश करनी चाहिए। इस दौरान हिन्दी के सम्मुख उपस्थित चुनौतियों और समस्याओं पर भी चर्चा की गई। विचार गोष्ठी अपने उद्देश्य में पूर्णत: सफल रही।

संगठन-

विश्व हिन्दी सचिवालय की एक शासी परिषद (गवर्निंग कौंसिल) तथा एक कार्यकारी मंडल (एग्ज़िक्यूटिव बोर्ड) है। विश्व हिन्दी सचिवालय के महासचिव इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। शासी परिषद में विश्व हिन्दी सचिवालय की शासी परिषद में भारत तथा मॉरीशस, दोनों पक्षों, की ओर से ५-५ सदस्य हैं जो निम्नानुसार है। भारत की ओर से- विदेश मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्री और संस्कृति मंत्री तथा मॉरीशस के ओर से- विदेश कार्य, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं सहयोग मंत्री, शिक्षा एवं मानव संसाधन मंत्री और कला एवं संस्कृति मंत्री। इसके गैर-सरकारी सदस्य हैं-  डॉ. रत्नाकर पांडेय, श्री अजामिल माताबदल, डॉ. बालकवि बैरागी एवं श्री सत्यदेव टेंगर।

शासी परिषद की बैठक

शासी परिषद की प्रथम बैठक, भारत के विदेश मंत्री श्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में २८ जनवरी २००८ को नई दिल्ली में आयोजित की गई। बैठक में भारत की ओर से श्री प्रणब मुखर्जी, विदेश मंत्री; श्री अर्जुन सिंह, मानव संसाधन विकास मंत्री; श्रीमती अम्बिका सोनी, संस्कृति मंत्री, डॉ. रत्नाकर पांडेय, डॉ. आर पी मिश्र, नामित उपमहासचिव, विश्व हिन्दी सचिवालय तथा विदेश मंत्रालय, मानव संसाधन मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय के अधिकारीगण उपस्थित थे। मॉरीशस की ओर से श्री डी. गोखुल, शिक्षा एवं मानव संसाधन मंत्री, श्री एम. एम डल्लु, विदेश कार्य, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं सहयोग मंत्री, श्री मुकेश्वर चुन्नी, मॉरीशस के उच्चायुक्त, डॉ.(श्रीमती) विनोद बाला अरूण, महासचिव, विश्व हिन्दी सचिवालय, श्री अजामिल माताबदल, श्री सत्यदेव टेंगर तथा भारत में मॉरीशस के उच्चायोग से अन्य अधिकारी उपस्थित थे। इसके कार्यकारी मंडल में भारत की ओर से सचिव, विदेश मंत्रालय, सचिव, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, सचिव, संस्कृति मंत्रालय, मॉरीशस में भारत का उच्चायुक्त तथा मॉरीशस के ओर से स्थायी सचिव, विदेश कार्य, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं सहयोग मंत्रालय, स्थायी सचिव, शिक्षा एवं मानव संसाधन मंत्रालय, स्थायी सचिव, कला एवं संस्कृति मंत्रालय, स्थायी सचिव, प्रधानमंत्री कार्यालय, मॉरीशस उपस्थित रहे।

कार्यकारी मंडल की बैठक

कार्यकारी मंडल की प्रथम बैठक श्री आर पी अग्रवाल, सचिव (उच्चतर शिक्षा), मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार की अध्यक्षता में २४-२५ मई को मॉरीशस में आयोजित की गई। बैठक में भारत की ओर से श्री आर पी अग्रवाल, सचिव(उच्चतर शिक्षा), मानव संसाधन मंत्रालय, श्री वीपी हरन, संयुक्त सचिव, विदेश मंत्रालय, श्री आर सी मिश्र, संयुक्त सचिव, संस्कृति मंत्रालय, श्री बी जयशंकर, मॉरीशस में भारत के उच्चायुक्त उपस्थित थे और मॉरीशस की ओर से श्री एस रेगन, स्थायी सचिव, शिक्षा एवं मानव संसाधन मंत्रालय, श्री एन के बल्लाह, स्थायी सचिव, कला एवं संस्कृति मंत्रालय, श्री वी चितू, प्रथम सचिव, विदेश कार्य मंत्रालय, श्रीमती एस बहादुर, सहायक सचिव, प्रधानमंत्री कार्यालय तथा डॉ.(श्रीमती) विनोद बाला अरुण, महासचिव, विश्व हिन्दी सचिवालय उपस्थित थे।

पदाधिकारी-

महासचिव- भारत सरकार तथा मॉरीशस की सरकार के बीच सम्पन्न द्विपक्षीय करार के अनुसार विश्व हिन्दी सचिवालय का प्रथम महासचिव मॉरीशस से होगा और इसका कार्यकाल ३ वर्ष का होगा। तद्नुसार मारीशस से डॉ. (श्रीमती) विनोद बाला अरूण की विश्व हिन्दी सचिवालय की प्रथम महासचिव के रूप में नियुक्त की गई है।

उपमहासचिव- भारत सरकार तथा मॉरीशस की सरकार के बीच सम्पन्न द्विपक्षीय करार के अनुसार विश्व हिन्दी सचिवालय का प्रथम उपमहासचिव भारत से होगा और इसका कार्यकाल ३ वर्ष का होगा। तद्नुसार भारत से डॉ. राजेन्द्र
प्रसाद मिश्र की विश्व हिन्दी सचिवालय के प्रथम उपमहासचिव के रूप में नियुक्त की गई हैं।

उद्देश्य- विश्व हिंदी सचिवालय के निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किये गए हैं।-

  • हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रोन्नत करना l

  • हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करने की दिशा में सघन प्रयास करना l

  • हिंदी में अन्तराष्ट्रीय सम्मलेन, संगोष्ठी, समूह विचार-विमर्श, चर्चा एवं कवि सम्मलेन जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना l

  • हिंदी के विद्वानों को सम्मानित/ पुरस्कृत करना l

  • हिंदी में शोध कार्य के लिए प्रलेखन केंद्र स्थापित करना l

  • अन्तराष्ट्रीय हिंदी पुस्तकालय की स्थापना करना l

  • अन्तराष्ट्रीय हिंदी पुस्तक मेले का आयोजन करना l

इस प्रकार भारत के हिंदी भाषी प्रदेशों से सुदूर दक्षिण में एक छोटे से देश मॉरिशस में स्थापित विश्व हिंदी सचिवालय दुनिया जहान में हिंदी के लिए नई संभावनाओं का द्वार खोलने वाली पहली कड़ी हैl 'हर महान परियोजना एक छोटे से विचार से जन्म लेती है' की अवधारणा को चरितार्थ करने वाला यह प्रयास आने वाले समय में हिंदी और शेष विश्व के मध्य प्रथम सेतु साबित होने जा रहा हैl १९७६ में मॉरिशस में आयोजित द्वितीय विश्व हिंदी सम्मलेन में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी के वर्त्तमान और भविष्य के बारे में प्रतीकात्मक ढंग से जो टिप्पणी की थी आज वो कदम दर कदम हिंदी की बढती प्रगति को देखकर अक्षरशः सत्य लगती हैl उन्होंने कहा था _ "रवि मंडल देखत लघु लागा, उदय तासु त्रिभुवन तम भगा।" सूर्य का मंडल कितना छोटा सा, एक थाली जैसा उगता है लेकिन जिस दिन सूर्य का मंडल उदित हो जाता है उसी क्षण संसार का अंधकार दूर हो जाता है। हमारे सामने मॉरिशस का देखने में छोटा लेकिन अपार तेजस्वी रूप हैl यह देखें हमारे सामने यह जो संसार को निश्चित रूप से नया संदेश दे रहा है और यही नया संदेश आगे चलकर कदाचित विश्व संस्कृति का एक आदर्श रूप बनेगा।"

१२ सितंबर २०११

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