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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से आभा सक्सेना की कहानी— शिवरात्रि का महूरत


ट्रेन में चढ़ने के बाद सुगन्धा ने जैसे ही सामान रखा, कि अचानक ट्रेन में ‘‘बम बम भोले’’ का नाद शुरू हो गया। कंधे पर काँवर लटकाये कई सारे यात्री डिब्बे में चढ़ गए। ट्रेन ने अपनी गति पकड़ ली थी। काँवरिये देहरादून से हरिद्वार के लिये ट्रेन में चढ़े थे। सुगन्धा ने ही स्थिति को समझते हुए दो काँवरिया धारकों को अपनी सीट पर जगह दे दी।

बात उसने ही आगे बढ़ायी ‘‘हरिद्वार जा रहे हो क्या भैया ?’’
"हाँ माँजी... कल शिवरात्रि है न? इसी लिये नील कंठ महादेव पर जल चढ़ाना है मन्नत माँगी थी हमने उसी की आस्था में जल चढाने के लिये इसी ट्रेन में चढ़ गए हैं माँ जी आपको भी तकलीफ हो रही है न हमारे कारण?"
‘‘नहीं... ऐसा बिलकुल भी नहीं है आओ, तुम दोनों ठीक से बैठ जाओ।’’ और वह दोनो अपने अपने काँवर ऊपर की लगेज़ शैल्फ पर रख कर सुगन्धा के ही पास सीट पर बैठ गए। खिड़की से ठंडी हवा के झोंके बार बार सुगन्धा की यादों को सहला रहे थे...

लग रहा था जैसे कल की ही बात है अरे हाँ... पिछले साल की ही तो बात है लगभग यही समय था, फरवरी का अंतिम सप्ताह जब सुगन्धा के मोबाइल पर लंदन से एक फोन आया था ‘आप सुगन्धा जी बोल रही हैं ?... मैं... लंदन से राइमा बोल रही हूँ आप शायद मुझे ना जानतीं हों, पर मैं आपको अच्छी तरह से जानती हूँ उसकी हिन्दी बोली में भी अंग्रेजी की झलक थी।’’

‘हाँ राइमा बोलो कुछ काम था मुझसे ?...’’
‘‘मैं आपको मौसी कह कर बुला सकती हूँ?’’
‘‘हाँ, हाँ क्यों नहीं...’’ सुगन्धा ने ही फोन पर बात आगे बढ़ाई।
‘‘मौसी, क्या आप अनिकेत को जानती है ? अनिकेत ने पिछले वर्ष ही मुझसे शादी की है। आइ एम हिज़ वाइफ। मुझे कल ही मालूम हुआ है कि अनिकेत इंडिया में किसी और लड़की से शादी कर रहे हैं। आप सोच रही होंगी कि, मुझे आपका मोबाइल नम्बर कहाँ से मिला। जब मैं शादी के बाद अनिकेत के घर आयी थी तब अनिकेत ने मुझे आपका फोन नम्बर दे कर कहा था- राइमा, यह मेरी देहरादून वाली मौसी का फोन नम्बर है जब कभी तुम्हारा मन करे तब मौसी से बात जरूर कर लेना। न जाने क्यों मैं उस समय शायद, संकोच के कारण ही आपसे बात नहीं कर सकी थी पर जब
आज मैं अपने मोबाइल में आपका नम्बर ढूँढने लगी तो किस्मत से मिल ही गया।’’

‘‘
पर अनिकेत ने तो यह शादी वाली बात यहाँ किसी को बताई ही नहीं है और, यहाँ तो उसकी शादी की सारी तैयारियाँ भी हो चुकी हैं, हम लोग भी परसों ही उसकी शादी के लिये दिल्ली निकलने वाले हैं फिर सुगन्धा ने कुछ सोच कर कहा... अच्छा यह सब छोड़ो अब यह बताओ कि तुम मुझसे क्या चाहती हो?’’

‘‘मौसी मैं कल रात की कोई भी फ्लाइट लेकर परसों सुबह दिल्ली पहुँच रही हूँ, और चाहती हूँ कि अनिकेत यह शादी ना करें आप मेरा इंडिया पहुँचने तक इन्तज़ार अवश्य कीजियेगा’’।
‘‘ठीक है मैं कुछ कोशिश करती हूँ पर हाँ, दिल्ली पहुचने पर मुझे फोन जरूर करना,’’ और इसके बाद उधर से राइमा का फोन कट गया था सुगन्धा ने तुरंत राइमा का फोन नम्बर अपने मोबाइल में सेव कर लिया इस सब के बाद तो
सुगन्धा का दिमाग़ जैसे चक्कर खा कर घूमने ही लग गया था समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।

सुगन्धा ने इंटरनेट के द्वारा अगले दिन का अपना दिल्ली का टिकट रिज़र्व कराया और अपने पति दिनेश के ऑफिस से आने का इंतजार करने लगी सुगन्धा ने जब दिनेश को इस सबके बारे में बताया तो उन्होंने भी सुगन्धा को तुरंत दिल्ली जाकर इस विवाह को रोकने की ही सलाह दी थी बड़ी मुश्किल से वह मिनी और विनी को मामा के विवाह में अपने साथ न चलने के लिये मना सकी थी।

किसी तरह सुगन्धा दोनों बच्चों को दिनेश के पास छोड़ कर दिल्ली के लिये निकल सकी थी घर से चलते समय वह बार बार दिनेश को यही समझा रही थी, जैसी भी परिस्थिति होगी उसके बारे में समय समय पर दिनेश को फोन पर बताती रहेगी उसने दिनेश को यह भी कहा था कि, अभी वह दिल्ली के टिकिट कैंसिल न करवाये, बल्कि वह समयानुसार ही बच्चों के साथ दिल्ली विकासपुरी में उसकी दीदी के घर पहुँच जाये ...फिर उसके बाद जैसा भी होगा देखा जायेगा और वह ऑटो रिक्शा में बैठ कर स्टेशन की ओर चल पड़ी थी वह सोच रही थी दीदी, जीजाजी को इस सबके बारे में कैसे बता सकेगी वह, और... अनिकेत को उसकी, अपनी शादी को तोड़ने के लिये कैसे राज़ी कर सकेगी।

ट्रेन बस एक दो मिनट में ही स्टेशन से छूटने वाली थी सुगन्धा किसी तरह से एक हाथ में सूटकेस और दूसरे हाथ में अपना पर्स पकड़े कंपार्टमेंट में घुस ही गई लेकिन अपनी बर्थ, साइड वाली देख कर सुगन्धा का मूड खराब हो गया। वह अपना रिजर्वेशन आर. ए. सी. में कन्फर्म होने के बाद ही घर से स्टेशन के लिये निकली थी। पहली बार वह मिनी और विनी को घर पर अकेला छोड़ कर आयी थी, मन में एक चिन्ता यह भी थी
कि अगले ही महीने उनकी सालाना परीक्षाएँ भी हैं।

सुगन्धा ने सीट पर अपना सामान रखा ही था कि इंजन ने एक जोरदार ब्रेक लगाया और वह सामने वाली सीट पर बैठे अंकल के ऊपर गिरते-गिरते बची ‘‘सॉरी अंकल’’! ‘‘कोई बात नहीं बेटा! कोई बात नहीं।’’ कह कर उन्होंने संक्षिप्त सा उत्तर दे दिया था ‘अंकल मैं ज़रा आपकी सीट पर थोड़ी देर के लिये अपना यह सामान रख लूँ?’’ सुगन्धा ने उनके जबाब देने से पहले ही अपना एक सूटकेस अंकल की बर्थ पर रख ही दिया था सुगन्धा के कहने पर अंकल बर्थ की दूसरे छोर तक खिसक गए थे और उन्होंने उसे अपनी सीट पर सामान रखने के लिये जगह भी देदी थी थोड़ी देर बाद ट्रेन अपने गंतव्य की ओर बढ़ने ही वाली थी अचानक पहले चूँ... चूँ...की आवाज हुई फिर झटके से ट्रेन रुक गई। सुगन्धा को ट्रेन की इस धीमी रफ्तार से तेज भूख की याद हो आई। उसे ऑफिस से आने के बाद, घर से चलते समयतक सिर्फ एक कप चाय पीने का समय ही मिल सका था।  उसने सोचा कि बैग से अपना टिफिन निकाल कर खाना खा ले। जल्दी जल्दी में वह सिर्फ पूरी और आलू की सब्जी ही बना कर ला सकी थी। उसकी बेटी मिनी ने थोड़ा
सा आम का अचार भी साथ में उसके टिफिन में रख दिया था। उसने अपना टिफिन खोला और खाना खाने लगी।

कुछ आश्वस्त होकर सुगन्धा ने जब पूरे कंपार्टमेंट पर दृष्टि डाली तो उसने देखा बराबर वाले कम्पार्टमेंट में तीन, चार युवक-युवतियों का समूह भी सफर कर रहा था ढीले ढाले कपड़े, बाल भी बेतरतीब तरीके से बँधे हुए, अपने आप में मस्त एक दूसरे के ऊपर अधलेटे से, कोई जोड़ा ऊपर की बर्थ पर तो कोई जोड़ा नीचे की बर्थ पर अधलेटा सा बैठा हुआ था न जाने कब से उनमें से एक युवती सुगन्धा के टिफिन पर अपनी नजरें गड़ाये हुए थी अचानक वह कूद कर सुगन्धा के पास आकर बैठ गई।
‘‘वाऊ आन्टी, आम का अचार... आइ लव इट।’’
‘‘चाहिये ?’’सुगन्धा ने उस से पूछ ही लिया।
‘‘हाँ आन्टी, प्लीज... बहुत दिनों के बाद ऐसा अचार देखने को मिला है।’’ सुगन्धा ने पेपर नैपकिन में एक अचार का टुकड़ा पूरी और आलू की सब्जी के साथ रख कर उस युवती को पकड़ा दिया था। ‘‘आन्टी बहुत ही मजेदार है, यह अचार और साथ में आलू और पूरी, सच में आन्टी मजा आ गया, मेरी मम्मी भी ऐसी ही आलू पूरी बनातीं हैं उस युवती ने उस पूरी के चार हिस्से किये और अपने साथियों के साथ एक एक बाइट शेयर करने लगी ‘‘तुम सब लोग आखि़र जा
कहाँ रहे हो’’? सुगन्धा ने न चाहते हुए भी पूछ ही लिया।

‘‘आन्टी! हम लोग यहाँ मंसूरी में एक सेमिनार में आये थे उसके बाद कल सुबह दिल्ली से हमारी गोवा के लिये ट्रेन है आन्टी आपकी बर्थ ऊपर वाली है क्या? आप मेरी बर्थ से एक्सचेंज कर लीजियेगा आपकी बर्थ पर हम में से कोई भी सो जायेगा रात भर की ही तो बात है।’’ और वह वापिस अपनी सीट पर जा कर बैठ गई थी।

सुगन्धा ने अपना सिर हिला कर उसे मौन स्वीकृति दे दी थी। तभी सामने की सीट पर बैठे हुए अंकल ने ही सुगन्धा से पूछा था,
‘‘बेटा! दिल्ली में कहाँ जा रही हो’’?
‘‘अंकल! विकासपुरी में मेरी बहन का घर है, मैं वहीं उन्हीं के यहाँ जा रही हूँ और...आप अंकल ?’’ "अरे वाह! क्या इत्तफ़ाक है मुझे भी वहीं विकासपुरी ही जाना है वहाँ मेरी नातिन रूपा की शादी है, उसी में शामिल होने के लिये जा रहा हूँ। मेरी बेटी वहीं विकासपुरी में गैलेक्सी सोसाइटी है, वहीं पर ग्राउंडफ्लोर के फ्लैट में रहती है।’’
‘‘अच्छा अंकल, सुगन्धा ने आश्चर्य के साथ पूछा ‘‘मेरी दीदी भी वहीं पूर्ति अपाट्मेंट में रहती हैं यह दोनों अपाटर्मेंट आमने-सामने ही तो हैं।’’
‘‘
हूँ’’ अंकल ने एक हुंकारा भर कर सुगन्धा की बात का जबाब दे दिया था।

सुगन्धा सोच रही थी कल तो अनिकेत की भी शादी है कहीं... ये वाले अंकल... अजीब सा विचार सुगन्धा के मन में आया तो सुगन्धा ने उसे एक झटके में अपने मन से निकाल फेंका सामने वाली बर्थ से अचानक गिटार बजाने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी तो उसने देखा उसी ग्रुप में से एक युवक गिटार पर कोई अंग्रेजी धुन छेड़ रहा था धुन कानों को बहुत ही मीठी लग रही थी इसी धुन को सुनते सुनते कब सुगन्धा की आँख लग गई उसे पता ही नहीं चला।
 
उसकी नींद तो सुबह-सुबह अंकल के अपना ब्रीफकेस को खिसकाने से हुए शोर से खुली थी ‘‘अंकल दिल्ली आ गया क्या ?’’
‘‘नहीं, अभी तो काफी देर से, मेरठ से पहले ही ट्रेन रुकी हुयी है, मालूम नहीं, सिग्नल क्यों नहीं हो रहा है, लग रहा है आउटर पर ही गाड़ी खड़ी कर दी गई है शायद।’’ और वह अपने ब्रीफकेस से टूथ पेस्ट-टूथब्रश आदि निकालने लगे थे।

‘‘फिर तो दिल्ली पहुँचते पहुँचते काफ़ी देर हो जायेगी।’’
‘‘हूँ यह तो है।’’ अंकल ने धीरे से जबाब दिया सुगन्धा ने सामने वाले कम्पार्टमेंट पर नज़र डाली तो देखा उन चारों
लोगों का ग्रुप आराम से चादर ओढ़ कर सो रहा था, लग रहा था जैसे उन्हें कोई हड़बड़ी नहीं है दिल्ली पहुँचने की।

‘‘सुगन्धा, लो चाय पी लो, मैंने तुम्हारे लिये चाय वाले से चाय ले ली है, मालूम है, मुझे तुम्हारा नाम कैसे पता चला मैंने, तुम्हारा नाम ट्रेन के बाहर लगे चार्ट पर पढ़ लिया था।’’
‘‘थैंक्यू अंकल! इस समय चाय पीने का बड़ा ही मन कर रहा था’’।
‘‘कोई स्टेशन पर तुम्हें लेने आयेगा क्या? अगर नहीं, तो हम लोग एक ही ऑटो रिक्शा ले लेते हैं और फिर वैसे भी, हम दोनों को एक ही जगह तो जाना है।’’
‘‘नहीं अंकल पहले मैं कहीं और जाऊँगी, तब उसके बाद ही मैं विकासपुरी में अपनी बहन के घर जा सकूँगी’’ ...तभी लंदन से राइमा का फोन आगया था।
‘‘हैलो, हाँ राइमा, मैं सुगन्धा बोल रही हूँ तुम इंडिया पहुँच गयीं क्या’’?
‘‘जी हाँ।’’दूसरी तरफ से राइमा का स्वर था।
‘‘ठीक है राइमा, मैं स्टेशन से सीधा शिप्रा होटल ही पहुँचती हूँ।’’ सुगन्धा ने इतना कह कर फोन काट दिया था अभी भी ट्रेन आउटर पर ही रुकी हुयी थी सुगन्धा का मन हो रहा था कि कैसे ही ट्रेन चले और वह जल्दी से राइमा को लेकर विकास पुरी अपनी दीदी के पास पहुँचे।

‘‘विकासपुरी में किसी काम से जा रही हो?’’ अंकल ने एक अप्रत्याशित सा प्रश्न कर ही दिया था।
‘‘हाँ अंकल, मैं एक बहुत ही जरूरी काम करने जा रही हूँ, मैं अपने भान्जे की शादी तुड़वाने जा रही हूँ।’’ सुगन्धा ने जै
से-तैसे कह ही दिया।
‘‘मतलब ?’’ एक प्रश्न अंकल की आँखों में झलकने लगा था।
‘‘हाँ, अंकल, अभी मुझे दो तीन दिन पहले ही मालूम हुआ है, कि मेरा भान्जा अनिकेत शादीशुदा है और वह यहाँ, इंडिया में दूसरी शादी करने जा रहा है अब आप ही बताइये अंकल कैसे मैं एक मासूम लड़की का जीवन बरबाद हो जाने दूँ।’’

अंकल को अनिकेत नाम कुछ सुना सुना सा लगा तो उन्होंने अपने सूटकेस से अपनी नातिन रूपा, की शादी का कार्ड निकाला तो उसमें वर के नाम की जगह भी अनिकेत ही लिखा हुआ था उन्होंने सुगन्धा को अपनी नातिन की शादी का कार्ड दिखाया और कहा, ‘‘देखना तो बेटा! कहीं यह अनिकेत तुम्हारा भान्जा तो नहीं?’’

सुगन्धा ने कार्ड देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गई, अंकल की नातिन की शादी अनिकेत से ही हो रही थी इसके बाद सुगन्धा ने अपने पर्स से कार्ड निकाल कर अंकल को दिखाया तो वह भी असमंजस में पड़ गए कि अब वह क्या करें, काफ़ी देर तक तो अंकल के मुँह से कोई आवाज़ ही नहीं निकल सकी थी।

‘‘अंकल जब मेरी और आपकी स्थिति एक जैसी है तब ऐसी परिस्थिति में आप ही बताइये कि हम लोगों को क्या करना चाहिये वैसे भी अनिकेत की पत्नी राइमा भी इंडिया पहुँच चुकी है अभी थोड़ी देर पहले उसी का ही फोन था मैं यहाँ से उ
सी से मिलने शिप्रा होटल जा रही हूँ उसके बाद मैं राइमा को साथ लेकर दीदी के घर जाऊँगी फिर देखते हैं, आगे क्या होता है।’’

‘‘हाँ बेटा, मैं भी तुम्हारी बात से सहमत हूँ, मुझे भी इस बारे में कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा।’’ अंकल खिड़की से बाहर कुछ देखने का अकारण प्रयास कर रहे थे।

ट्रेन आगे बढ़ने लगी तो उसकी रफ्तार भी धीरे धीरे अपनी गति पकड़ने लगी धीरे धीरे सारे स्टेशन पीछे छूटते चले जा रहे थे। अब ग़ाजि़याबाद स्टेशन भी निकल चुका था अंकल ने शायद अपनी बेटी को फोन पर कुछ बताया था फिर सुगन्धा की ओर अपना मुँह घुमा कर कर कहने लगे, ‘‘सुगन्धा अपना फोन नम्बर मुझे देना ज़रा... घर पहुँच कर जैसा भी होगा मैं तुम्हें बताता रहूँगा।" नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर वह उतर गए थे और सुगन्धा ने शिप्रा होटल के लिये ऑटो रिक्शा पकड़ लिया था।

सुगन्धा के होटल पहुँचने से पहले ही राइमा नीचे मेन हॉल में रिसेप्शन के पास बैठी हुयी उसी का इंतज़ार कर रही थी वह गुलाबी सूट में बहुत ही प्यारी लग रही थी हल्का सा मेकप उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहा था वह तेज कदमों से सुगन्धा की तरफ आयी और उसने सुगन्धा के पाँव छू कर आशीर्वाद भी ले लिया, उसके बाद रूम बॉय को सुगन्धा का सामान अपने ही कमरे में पहुँचाने को कह कर उसे लिफ्ट में आने का इशारा करने लगी थी।
‘‘आइये मौसी लिफ्ट से रूम में चलते हैं।’’, सुगन्धा जब लिफ्ट से राइमा के रूम में आ रही थी तब वह सोच रही थी कि ऐसा क्या हुआ अनिकेत और राइमा के बीच जो अनिकेत को राइमा से दूर जाना पड़ा ...वह दोनों कब रूम तक पहुँच गयीं सुगन्धा को अहसास तक नहीं हुआ।

‘‘मौसी, आप थोड़ा फ्रेश हो लीजिये मैं तब तक आपके लिये चाय नाश्ते का प्रबन्ध करती हूँ हम लोग साथ में ही ब्रेकफास्ट करेंगे।’’ उसने अपने रूम से ही इन्टरकॉम पर होटल की रूमसर्विस पर ब्रेकफास्ट का ऑर्डर दे दिया था।

सुगन्धा के मन में अनेकों प्रश्नों की बाढ़ सी आयी हुयी थी जब वह फ्रेश होकर कमरे में आयी तो वह स्वयं को बहुत ही तरोताज़ा महसूस कर रही थी बात सुगन्धा ने ही शुरू की ‘‘राइमा, कोई परेशानी तो नहीं हुयी लंदन से यहाँ तक के सफर में ?’’

‘‘नहीं, मौसी, यहाँ देहली में तो मेरी नानी का घर भी था, उसने कुछ दिमाग़ पर जोर देते हुए और सोचते हुए कहा शायद, ग्रेटर कैलाश में, हम लोग अक्सर यहाँ बचपन में आया करते थे और फिर आप मेरे साथ हैं फिर, चिन्ता की तो कोई बात ही नहीं है।’’

‘‘ऐसा है राइमा अभी तक तो मैंने इस सब के बारे में किसी को कुछ भी नहीं बताया है, यहाँ तक कि अनिकेत को भी नहीं अभी हम लोग दीदी के घर चलते हैं वहीं जाकर ही बातचीत करके कुछ हल निकल पायेगा, और फिर समय भी तो नहीं है, बहुत ही कम समय बचा है हमारे पास हम लोग कोशिश तो कर ही सकते हैं अगर बुरा ना मानो तो एक बात
पूछ सकती हूँ, ऐसा क्या हुआ जो अनिकेत को तुमसे दूर जाना पड़ा?’’

‘‘हाँ, मौसी, अभी मैं आपको वही सब बताना ही चाह रही थी’’ फिर जो कुछ राइमा ने सुगन्धा को बताया उस पर उसे विश्वास ही नहीं हुआ, ‘‘मैं और अनिकेत लंदन में एक ही ऑफिस में काम किया करते थे, हम दोनों के घर भी आस पास ही थे इसलिये हम लोग ऑफिस साथ साथ ही आया-जाया करते थे अनिकेत से धीरे धीरे पहले दोस्ती हुई फिर यही दोस्ती, कब प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला एक दिन अनिकेत ने ही मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा था मुझे भी अनिकेत में कोई भी कमी नज़र नहीं आई तो मैंने अनिकेत को अपनी स्वीकृति देदी फिर एक दिन लंदन के ही मंदिर में हम दोनों ने शादी भी करली मैंने तो अपने घर इंडिया में अपने माँ पिताजी को अपनी शादी के बारे में बता दिया था पर, अनिकेत अपने घर में किसी को कुछ भी नहीं बता सके थे।

"सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था एक दिन हम लोग अपनी गाड़ी यानि कि कार से ऑफिस के लिये निकले ही थे, गाड़ी मैं ही चला रही थी कि अचानक हमारी कार के आगे एक छोटा बच्चा आ गया उसकी वहीं हमारे सामने ही ऑन द स्पॉट मृत्यु हो गई पुलिस केस बन गया मुझे छह महीने की सज़ा हो गई थोड़े दिन तक तो अनिकेत ने मेरा साथ दिया पर, कुछ दिनों के बाद मैंने देखा अनिेकेत मेरी ओर से लापरवाह होते जा रहे हैं थोड़े दिन बाद तो मौसी, अनिकेत ने जेल में भी आना छोड़ दिया जब मेरी सज़ा खतम हुई और मैं घर, आई तब मुझे मालूम हुआ कि अनिकेत तो बहुत दिनों से घर ही नहीं आये हैं वह तो अच्छा हुआ एक कार्ड जो कि अनिकेत की शादी का था लैटर बाक्स में पड़ा हुआ था, शायद, अनिकेत के घर से ही आया होगा उसी कार्ड से मालूम हुआ कि अनिकेत इंडिया में शादी कर रहे हैं बिना मुझसे तलाक लिये वे दूसरी शादी कैसे कर सकते हैं मौसी?’’ यह सब बताते हुए राइमा की आँखों से आँसू बहते चले जा रहे थे।

सुगन्धा को अब अनिकेत के ऊपर गुस्सा आने लगा था उसने मन में दृढ़ निश्चय कर लिया था कि वह राइमा के साथ अन्याय हरगि़ज नहीं होने देगी।
‘‘चलो राइमा, दीदी के घर चलते हैं।’’
सुगन्धा और राइमा, दीदी के घर पहुचीं तो उन्होंने देखा दीदी का घर दुल्हन ही तरह सजा हुआ है। वहाँ अनिकेत की शादी की तैयारियाँ जोरों से चल रहीं थीं, बाहर विवाह गीत गाए जा रहे थे...
सुभ सुभ किये हर गौरी बिआहू गौरी-हर एक समान रे माई...
गौरी-हर एक समान रे माई...
गौरी हर एक समान...
लेकिन यहाँ तो गौरी-हर अलग हो चुके थे और सच जानने पर क्या बवाल होगा सुगंधा को पता नहीं था शिवरात्रि के शुभ महूरत पर यह विवाह निश्चित हुआ था और न जाने कैसे उसमें इतना अशिवत्व आन जुड़ा था... या फिर राइमा का आगमन कोई शुभत्व लेकर आने वाला था... सुगन्धा को समझ में नहीं आ रहा था।

वह अन्दर बरामदे में पहुचीं तो सुगन्धा ने देखा दीदी मेहमानों से घिरी चाय की चुस्कियाँ ले रहीं हैं आखि़रकार दीदी की सुगन्धा और राइमा के ऊपर निग़ाह पड़ ही गई,
 ‘‘अरे, सुगन्धा तुम ? और दिनेश जी और बच्चे कहाँ है?’’ दीदी अपनी कुर्सी छोड़ कर सुगन्धा के पास उठ कर आ गयीं थीं फिर उन्होंने एक सरसरी निगाह राइमा के ऊपर डाल कर पूछ ही लिया था, ‘‘यह तुम्हारे साथ कौन हैं सुगन्धा’’?
‘‘दीदी, पहले आप अन्दर कमरे में तो चलिये मुझे, आपको कुछ बताना है’’ दीदी सुगन्धा के साथ अन्दर कमरे में आ गयीं थीं ‘‘दीदी यह राइमा है आपकी बहू और अनिकेत की पत्नी।’’

दीदी इस जबाब के लिये जैसे तैयार ही नहीं थीं ‘‘नहीं नहीं यह कैसे हो सकता है ? अनिकेत ने तो कभी भी इस बारे में बताया ही नहीं।’’
"हाँ, दीदी मुझे भी दो तीन दिन पहले ही मालूम हुआ था।"
‘‘सुगन्धा बाहर बरामदे में तुम्हारे जीजाजी बैठे हुए हैं उन्हें बुला कर ले आओ ज़रा।’’  और दीदी ने राइमा को अपने पास ही बिठा लिया था। जीजाजी, अन्दर आये तो उनके पीछे पीछे अनिकेत भी अन्दर कमरे में आ गया था। उन लोगों ने सोचा होगा कहीं, दीदी की तबियत खराब न हो गई हो, अनिकेत राइमा को सामने देख कर चौंक गया था।
‘‘तुम...यहाँ?’’
‘‘हाँ अनिकेत, इतनी आसानी से तुम मुझसे पीछा नहीं छुडा सकते मैं तुम्हारा पीछा करते करते यहाँ इंडिया तक आ गई हूँ, अभी भी देर नहीं हुयी है थैंक गॉड! जो मुझे मौसी का नम्बर समय पर मिल गया वरन, तुम तो दूसरा विवाह रचा कर ऐश कर रहे होते।’’

दीदी ने ही अनिकेत से पूछा था, ‘‘यह क्या, अनिकेत तुमने इस सब के बारे में मुझे पहले क्यों नहीं बताया आखिर किस बात का डर था तुम्हें, अब हम लड़की वालों को क्या मुँह दिखायेंगे।’’
दीदी के तो जैसे हाथ पाँव ही काँपने लगे थे उधर जीजा जी का भी बुरा हाल था उन्होंने किसी तरह से हिम्मत जुटाई और दीदी को ही डाँटने लगे कहने लगे, ‘‘इसी बात का मुझे डर था कि यह लंदन जा कर ज़रूर कोई ना कोई गुल खिलायेगा अब हो गई ना तसल्ली, वह तो अच्छा हुआ कि सुगन्धा, राइमा को ले कर समय पर यहाँ पहुँच गई वरन, यहाँ तो तीन तीन जि़न्दगियाँ ही बरबाद हो जातीं... अब हम खन्ना साब को क्या जबाब देंगे।’’ जीजाजी चिन्तित दिखाई दे रहे थे।

‘‘उसकी चिन्ता मत कीजिये जीजा जी, मेरे ही कंपार्टमेंट में लडकी के नाना जी भी सफर कर रहे थे बातों बातों में उनसे मुझे मालूम हुआ कि वह कोई और नहीं अनिकेत के होने वाले नाना ससुर हैं मैंने उन्हें इस सब के बारे में ट्रेन में ही बता दिया था।’’ थकान के मारे सुगन्धा का बुरा हाल हो रहा था। वह थोड़ी देर के लिये दीदी के ही बैड पर लेट गई। विवाह के गानों की धुनों के साथ कब सुगन्धा नींद की आगोश में खो गई उसे पता ही न चला अचानक दीदी के घर की बैल बजी तो अनिकेत की बुआ जी दौड़ती हुयी अन्दर कमरे में आयीं थीं ‘‘भाभी लड़की वाले आये हैं, मैंने उन्हें ड्राइंगरूम में ही बिठा लिया है।’’

‘‘बातचीत तो उन लोगों से करनी ही पड़ेगी’’ दीदी की तरफ देखते हुए जीजाजी बोले-‘‘ और हाँ, तुम भी बाहर आओ।’’ जीजा जी बुदबुदाते हुए कमरे से बाहर आ गए थे सुगन्धा भी उनके साथ बाहर ड्राइंगरूम में आ गई। ड्राइंगरूम में सुगन्धा ने देखा रूपा के पापा के साथ अंकल भी बैठे हुए थे। सुगन्धा ने दोनों हाथ जोड़ कर उन दोनों को अभिवादन
किया और वहीं अंकल के पास ही कुर्सी पर बैठ गई।

घर का सारा माहौल ही इस घटना से बोझिल हो गया था। बात जीजाजी ने ही शुरू की, ‘‘माफ कीजिये खन्ना साब! मुझे ज़रा भी इस बात का आभास होता तो मैं कभी भी इस शादी के लिये राज़ी नहीं होता। बच्चे हैं, अपनी जिम्मेदारी मालूम नहीं कब समझेंगे अब आप ही बताइये कि ऐसी परिस्थिति में क्या करना चाहिये मैं आपका गुनहग़ार हूँ आप जो सजा चाहें वह सज़ा मुझे और मेरे परिवार को दे सकते हैं।’’ खन्ना साब यह सब सुन कर चुप न रह सके एकदम उन्होंने जीजाजी को गले से लगा लिया, ‘‘कैसी बात करते है सलिल जी, गलती तो इंसान से ही होती है न? इस शादी को तोड़ना तो पड़ेगा ही। जोड़े तो भगवान ही बनाता है क्या पता मेरी बेटी के लिये कोई और ही वर चुना होगा उसने और वह लोग यह कह कर अपने घर चले गए थे।

उसी समय अनिकेत के फूफा जी ने एक सुझाव दिया था सब कुछ तैयारियाँ तो हैं ही दीदी, क्यों ना सारे रिश्तेदारों के सामने उसी मंडप में अनिेकेत और राइमा के फेरे भी डलवा दिये जाएँ। सब लोग उनके इस सुझाव को मान गए थे और एक बार फिर से घर में खुशियों ने दस्तक देदी थी दीदी, सुगन्धा को राइमा को वापिस होटल छोड़ कर आने को बोल कर अपने कामों में लग गयीं, जिससे कि विवाह के बाद राइमा की विदाई होटल से हो सके। राइमा भी खुश थी, असली मायने में तो दुल्हन तो वह अब बनने जा रही थी।
बाहर दूसरा गीत शुरू हो चुका था...
ठाड़े रहियो, बन्ने, ओ गली के मुहाड़े पे... गौरी को पूजन मैं ओ ही गैल जाऊँगी
ठाड़े रहियो...ठाड़े रहियो...
बन्ने को चाहे अनचाहे रुकना पड़ा था। सारी दुनिया बन्नी के साथ थी। "सुभ सुभ किये हर गौरी बिआहू" की शुभता आकार लेने लगी थी। शिवरात्रि का महूरत अपना रंग दिखाने लगा था।

अगले दिन की सुबह तो और भी सुखद थी। सुबह सुबह अंकल का फोन सुगन्धा के पास आया था ‘‘हैलो सुगन्धा, मैं रूपा का नाना मिस्टर खन्ना बोल रहा हूँ मैंने तुम्हें यह बताने के लिये फोन किया है कि तुम किसी भी प्रकार का टैन्शन मत लेना आज हमारे यहाँ रूपा का भी विवाह हो रहा है और उसी मंडप में हो रहा है जिसमें कि पहले होने वाला था रूपा के कुलीग से हमने उसका रिश्ता तय कर दिया है एक बार फिर से तुम सबको और अनिकेत जी को शादी की मुबारकबाद।’’ इतना कह कर उन्होंने फोन रख दिया था ढेर सारी खुशियाँ बन्द खिड़की से दस्तक दे रहीं थीं जरूरत थी तो बस उन्हें सुनने की...

एक साल हो गया उस बात को... दीदी से पता लगा था रूपा और अनिकेत अलग अलग अपने परिवारों के साथ सुखी थे। दी दी भी संतुष्ट थीं। उनकी संतुष्टि को साझा करने, हालचाल जानने ही निकली है इस यात्रा पर...

अचानक पैरों पर किसी स्पर्श का अनुभव हुआ तो मैं चौंकी, देखा उन काँवर धारकों में से एक मेरे चरणों को स्पर्श कर रहा था, ‘‘माँजी हरिद्वार आ गया है आपका बहुत बहुत धन्यवाद आपने हमें अपनी सीट पर जगह दी हम नीलकंठ महादेव पर जाकर आपके लिये भी प्रार्थना करेंगे आपकी सारी मुरादें पूरी हों।" और सारे काँवरिये हरिद्वार रेलवे स्टेशन पर बम बम भोले की नाद के साथ उतरने लगे थे।

४ मार्च २०१३

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