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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
सुधा अरोड़ा की लघुकथा
सुरक्षा का पाठ

राघव अपनी अमरीकी बीवी स्टेला और दो बच्चों - पॉल और जिनि के साथ भारत लौट रहा है, सुनकर मेरा कलेजा चौड़ा हो गया। आखिर अपना देश खींचता तो है ही। मेरा बेटा राघव तो अमरीका जाने के बाद और भी भारतीय हो गया था। भारत में रहते चाहे उसने कभी १५ अगस्त और २६ जनवरी के कार्यक्रमों में भाग न लिया हो पर विदेश जाते ही उसने अपनी कम्पनी के भारतीय अधिकारियों को इकट्ठा कर वह इन दिनों के उपलक्ष्य में देशप्रेम के कुछ कार्यक्रम करने लगा था जिसके लिए वह मुझसे फोन पर देशप्रेम की कविताएँ और राष्ट्रप्रेम के गीत पूछता और नोट करता। कार्यक्रम की शुरुआत का भाषण भी रोमन अक्षरों में देवनागरी लिखकर मैं ई मेल से उसे भेजती।
यह अलग बात है कि मैं उसके लिए हिन्दुस्तानी लड़की ढूँढ ही रही थी कि शादी उसने अपनी एक अमरीकी स्टेनो से कर ली। और सातवें महीने ही एक बेटा भी हो गया। साल भर बाद जिनि भी, जो बस चार महीने की ही थी। उसकी तस्वीरें देखी थीं। बिल्कुल राघव की तरह गोरी चिट्टी गोल मटोल गाब्दू-सी।
हमारा चार बेडरूम का घर आबाद होने जा रहा था। एक कमरे में हम दो प्राणी थे और बाकी तीन कमरे रोज़ की साफ़ सफ़ाई के बाद मुँह लटकाए पड़े रहते।

तीनों कमरों का चेहरा धो पोंछकर अब चमका दिया गया था। एक कमरे में राघव के आदेश पर हमने बच्चे का झूला भी डलवा दिया था।
राघव का परिवार एयरपोर्ट से घर लौटा तो जैसे घर में दीवाली मन रही थी। घर को देखकर राघव के चेहरे पर भी दर्प था जैसे स्टेफी से कह रहा हो - ''देखा मेरा घर।'' स्टेला पहली बार आ रही थी। राघव से नज़रें मिलते ही बोली, ''ओह! यू हैव अ पैलेशियल हाउस, तुम्हारा घर तो महलों जैसा है, राघव ने मुस्कुराकर उसके कंधे पर हाथ रखा और दूसरे कमरे की ओर इशारा किया जहाँ हमने बच्चों के लिए दीवार पर मिकि माउस और डोनल्ड डक के चित्र दीवारों पर लगा रखे थे।
रात को जिनि को झूले में डाल और हमारे कमरे में लगे छोटे दीवान पर पॉल के सोने का बंदोबस्त कर वे अपने कमरे में सोने के लिए जा रहे थे। मैंने देखा तो कहा, ''इसे अकेले यहाँ? रात को भूख लगेगी... तो...''
स्टेला ने मुस्कुराकर कहा, ''डोंट वरी मॉम! उसे अपने समय से फीड कर दिया है। अब सुबह से पहले कुछ नहीं देना है।''
मैं राघव की ओर मुखातिब हुई, ''रात को रोई तो...'' राघव ने मुझे सख्त स्वर में कहा, ''माँ, आप अपने कमरे में जाकर सो रहो... और स्टेला के कंधे को बाँहों से घेर कर बेडरूम में चला गया।

वही हुआ जिसका अंदेशा था। रात को जिनि की भीषण चीख पुकार से नींद खुलनी ही थी। बच्ची चिंघाड़ चिंघाड़ कर रो रही थी।
पॉल मेरे कमरे में मजे से तकिया भींचे सो रहा था। मैं उठी और बच्ची को बाँहों में ले आई। उसकी नैपी भीगी थी। उसे बदला। थोड़ी देर कंधे पर लगा पुचकारा, मुँह में चूसनी भी डाली पर उसका रोना जारी रहा। फिर न जाने कैसे याद आया - राघव जब बच्चा था, अपनी छाती पर उसे उल्टा लिटा देती थी। बस, वह सारी रात मेरी छाती से चिपका सोया रहता था। जिनि पर भी वही नुस्खा कारगर सिद्ध हुआ। मेरी धड़कन में उस बच्ची की धड़कनें समा गईं और वह चुपचाप सो गई। थोड़ी देर बाद मैं जाकर उसे उसके झूले में डाल आई।
तीन दिन यही सिलसिला चलता रहा। रात को वह सप्तम सुर में चीखती। मैं उसे उठाती और कुछ देर बाद वह मेरे सीने पर उल्टे होकर सो जाती। लगता जैसे छोटा राघव लौट आया है। बीते दिनों में जीना इतना सुकून दे सकता है, कभी सोचा न था।
चौथे दिन सुबह अचानक नींद खुली, देखा तो राघव और स्टेला गुड़िया-सी जिनि को मेरे सीने पर से उठा कर चीख रहे थे।

तभी... तभी हम सोच रहे थे कि आजकल जिनि के रात को रोने की आवाज़ क्यों नहीं आती है? ''माँ, आपका ज़माना गया। बच्चे को रोने देना बच्चे के फेफड़ों के लिए कितना ज़रूरी है, आपको नहीं मालूम। डॉक्टर की सख्त हिदायत है कि वह अपने आप रो चिल्लाकर चुप होना और सोना सीख जाएगी। आप क्यों उसकी आदतें खराब करने पर तुलीं हैं?''

मैंने उनके रूखे ऊँचे सुर को नज़रअंदाज़ करते हुए हँसकर कहा, ''आखिर तेरी ही बेटी है, तुझे भी तो ऐसे ही मेरे सीने पर उल्टे लेटकर नींद आती थी... याद नहीं...?''
मैंने राघव को उसके पैंतीस साल पहले के बचपन में लौटाने की एक फिजूल-सी कोशिश की।
''माँ, प्लीज स्टॉप दिस नॉनसेंस। आप बच्चों को तीस साल पहले के झूले में नहीं झुला सकतीं। उन्हें इंडिपेंडेंट होना बचपन से ही सीखना है... आप अपने तौर तरीके, रीति रिवाज़ भूल जाइए...''

मैं चुप। याद आया अमेरिका में पॉल के जन्म के बाद हम लंबी ड्राइव पर नायगरा फॉल्स देखने जा रहे थे। गाड़ी में पॉल को पिछली सीट पर उसकी बेबी सीट पर तमाम जिरह बख्तर से बाँध दिया गया था। रास्ते में वह दाएँ बाएँ बेल्ट में कसा फँसा बुक्का फाड़कर रो दिया। मैंने जैसे ही उसे उसमें से निकाल कर गोद में लेना चाहा, राघव ने कस कर डाँट लगाई, ''अभी पुलिस पकड़ कर अंदर कर देगी। चलती गाड़ी में बच्चे को गोद में उठाना मना है।

मैं हाथ बाँधे बैठी रही थी। नियाग्रा फॉल्स के आंखों को बेइंतहा ठंडक पहुँचाने वाले पानी के तेज़-तेज़ गिरने के शोर में भी मुझे पॉल के मुँह फाड़कर रोने का सुर ही सुनाई देता रहा। आज भी नायगरा फॉल्स की स्मृतियों में दोनों शेर गड्डमड्ड हो जाते हैं।

अब जिनि रोती है तो सब सोते रहते हैं पर मेरी नींद उखड़ जाती है। सोचती हूँ बस, कुछ ही दिनों की बात है। राघव स्टेला पॉल और जिनि सब चले जाएँगे। तब तक मुझे सब्र करना है। जिनि के आधी रात के रोने को अपनी धडकनों में नहीं बाँधना है। उसे अभी से आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ते हुए देख रही हूँ और अंधेरे में और गहराते अंधेरे को पहचानने की कोशिश करती रहती हूँ... सचमुच कुछ समय बाद ऐसी चुप्पी छाती है कि वह सन्नाटा कानों को खलने लगता है।

१५ जून २००९

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