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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
रघुविन्द्र यादव
की लघुकथा- न्यू इयर पार्टी


"सुनो जी, इस बार न्यू इयर पार्टी मैं अरेंज करुँगी और आपको मेरा साथ देना होगा। आप हर बार ले जा कर उस कान फोड़ू शोर में बैठा देते हैं।"
"ठीक है भाग्यवान, जैसी तुम्हारी इच्छा।"
"तो मुझे बजट बताइये।"
"तुम्हें कितना चाहिए?"
"मुझे तो बीस-पच्चीस हजार रूपये चाहियें। आप कितने देंगे?"
"ये लो पच्चीस हजार। किसी चीज की कमी नहीं रहनी चाहिए।"
"हाँ तो मैडम, आज शाम को कहाँ चलना है, न्यू इयर पार्टी के लिए?"
"चलना कहाँ है ये तो शाम को ही पता चलेगा। फिलहाल मुझे गाड़ी की चाभी दीजिये।"
"चलो जी, पार्टी का टाइम हो गया है।"
"पहले बताओ तो सही चलना कहाँ है?"
"झुग्गी बस्ती चलो।"
"झुग्गी बस्ती.....? वहाँ क्या करेंगे?"
"चलो बताती हूँ। मैंने बीस हजार के कम्बल और पाँच हजार की मिठाईयाँ खरीदी हैं, हम पहले झुग्गी बस्ती चलेंगे फिर रेलवे स्टेशन और अंत में श्रीकृष्ण मंदिर वहाँ जो भी सर्दी में ठिठुरता मिलेगा उसे कम्बल और अलाव ताप कर रात बिताते बच्चों को मिठाईयाँ देकर मैं इस बार उनका नव वर्ष मनाना चाहती हूँ।"
"वाकई तुम्हारी सोच तारीफ़ के काबिल है, मुझे गर्व है कि मुझे तुम जैसी पत्नी मिली। मगर ये काम तो दिन में भी हो सकता था; फिर रात काली करने से क्या लाभ?"
"मैं कोई दिखावा नहीं करना चाहती, न मुझे फोटो खिंचवाकर अख़बार में छपवाने हैं; मैं तो बस इतना चाहती हूँ कि जो पैसा हम फाइव स्टार होटल में मौज मस्ती में खर्च कर आते हैं उससे वास्तव में ही जो जरुरतमंद हैं उनकी मदद हो जाए; इसलिए यही समय उपयुक्त है।"
"वाह! अगर सब की सोच तुम जैसी हो जाए तो वाकई आज से नव वर्ष शुरू हो जाए।"

३० दिसंबर २०१३

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