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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
डॉ. संध्या तिवारी की लघुकथा- चिड़िया उड़


वह बचपन से बीमार थी।

एक दिन उसके डॉक्टर ने उससे कहा, "मैं तुमसे प्यार करता हूँ, तुम मेरे साथ रहोगी, तो तुम पर शोध करके मैं एक रिसर्च पेपर तैयार कर लूँगा और इसके लिये शायद मुझे नोबेल पुरस्कार भी मिले।"
उसकी चमकती आँखे बुझ गयीं।

एक अगले मोड़ पर वह एक लेखक से मिली। उसकी कहानियाँ उपन्यास उसे बहुत पसन्द थे, मानवीय सम्वेदनाओं से भरे।
एक दिन उसके लेखक मित्र ने उससे कहा, "मैं तुमसे प्यार करता हूँ, तुम मेरी किताब का विषय हो। तुम पर लिखा मेरा उपन्यास मुझे ज्ञानपीठ भी दिला सकता है।"
उसका पीला चेहरा और पीला पड़ गया।

काफी समय से उसका बीमा ऐजेन्ट उसमें खासी दिलचस्पी लेने लगा था।
एक दिन उसने कहा; "मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ यद्यपि कि मैं जानता हूँ कि तुम मुझे पत्नी वाले सुख नहीं दे पाओगी..." कहते- कहते उसकी आँखे लालच की कौंध से चमक उठीं।
उसकी आँखो में अपनी नियति पहचान वह रो पड़ी।

और आज, उसका मन बहलाने के लिए उसके साथ खेलने बैठी माँ ने जब उसकी ओर देखते हुए कहा; "चिड़िया उड़!"
तो वह माँ की आँखो और आसमान की तरफ उठी उसकी अँगुली को देखती रह गयी।
माँ की आँखों में प्यार की गहराई और उठी हुई अँगुली में जो ऊँचाई थी, वह किसी डॉक्टर, लेखक या अन्य पुरूष के साये में कहाँ?

१ सितंबर २०१८

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