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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
शरदिन्दु मुकर्जी
की लघुकथा- तमाशबीन


कर्......कर्........करात् ......।
आरी के आखिरी प्रयास से बूढ़ा देवदार दम तोड़ता हुआ धराशायी हो गया। अँधेरे में जंगल की आह दूर तक सुनाई दी। त्रिशूल और नंदादेवी के शिखर पर चाँदनी कँपकँपा गयी। शिखर ध्यान मुद्रा में निश्चित रहे।

ठीक उसी समय दिल्ली सहित दुनिया के कितने ही शहरों के राजपथ और गली-कूचों में न जाने कितनी असहाय, असुरक्षित बहू, बेटी और बच्चों का शील हरण हुआ।

हिमालय से लेकर हमारे 'सभ्य समाज' के शिखर पर आसीन चमकता हर कुछ, हर कोई तमाशबीन बना बैठा रहा - ज़िन्दगी अपने ढर्रे पर अपने ही अंदाज़ में लुढ़कती रही किसी क्रांति की तलाश में। 

१ सितंबर २०१८

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