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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
त्रिलोचना कौ
की लघुकथा- गरमाहट


"मीना इतनी ठंड में इतनी सुबह आ गयी बड़े दिन की छुट्टियाँ हैं सोने भी दे मुझे और तू भी थोड़ा आराम से उठा कर।" हल्की नाराजगी से बोलते हुए सविता ने कहा।

"अरे बीबी जी, आँख लगती ही कहाँ हैं। तीन चार चादर जोड़ कर कथरी बनायी थी लेकिन उससे देह गर्माती नहीं, रात भर सिकुड़कर सोने से पोर पोर पिराता है बस यही लगता है, जल्दी सुबह हो तो काम पर चलूँ। चलते-फिरते सर्दी भी कम लगती है।" कहकर मीना काम करने लग गयी। सविता यह सुनकर स्तब्ध रह गयी। करूणा की लहर उठी मन में, एक अपरिचित अहसास के अनुभव से सिहर गयी उसकी आत्मा। सविता जल्दी जल्दी काम निपटाकर बाजार गई, वहीं बैठकर रजाई भरवाई और लेकर चल दी मीना के घर। मीना ने देखा कुछ कहे इससे पहले सविता ने कहा-
"देख कल नया साल है मैंने तुमसे कहा था कि नये साल पर कुछ लेकर दूँगी। डबल बेड़ की रजाई है बच्चों समेत तुम आराम से सो सकती हो।"

दूसरे दिन दस बजे घंटी बजी, मीना खड़ी थी मुस्काते हुए बोली-
"आज देर तक सोती रह गई, रजाई में इतनी गरमाहट थी कि देह गुनगुनी हो गई। रजइया से निकलने का मन नहीं हो रहा था।" मीना खुशी से पुलक कर बोली और कमरे की खिड़की खोल दी। नवजात धूप के छोटे छोटे टुकड़े कमरे में खेलने लगे। सविता को लगा न जाने कितने सुकूनों वाले नये साल उसके घर में उतर आये हों !

१ जनवरी २०१९

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