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					 अवनीन्द्र 
					नाथ टैगोर 
					
                          
					अवनीन्द्रनाथ टैगोर (१८७१-१९५१) 
					अवनींद्रनाथ टैगोर का जन्म प्रसिद्ध ‘टैगोर परिवार’ में कोलकता 
					के जोरासंको में ७ अगस्त १८७१ में हुआ था। उनके दादा का नाम 
					गिरिन्द्रनाथ टैगोर था जो द्वारकानाथ टैगोर के दूसरे पुत्र थे। 
					वे गुरु रविंद्रनाथ टैगोर के भतीजे थे। उनके दादा और बड़े भाई 
					गगनेन्द्रनाथ टैगोर भी चित्रकार थे। 
					 
					उन्होंने कोलकाता के संस्कृति कॉलेज में अध्ययन के दौरान 
					चित्रकारी सीखी। १८९० में उन्होंने कलकत्ता स्कूल ऑफ़ आर्ट में 
					दाखिला लिया जहाँ उन्होंने यूरोपिय शिक्षकों जैसे ओ.घिलार्डी 
					से पेस्टल का प्रयोग और चार्ल्स पामर से तैल चित्र बनाना सीखा। 
					१८९७ के आस-पास उन्होंने कोलकाता के गवर्नमेंट स्कूल ऑफ़ आर्ट 
					के उप-प्रधानाचार्य और इतालवी चित्रकार सिग्नोर गिल्हार्दी से 
					चित्रकारी सीखना प्रारंभ किया। उन्होंने उनसे कास्ट ड्राइंग, 
					फोलिअगे ड्राइंग, पस्टेल इत्यादि सीखा। इसके बाद उन्होंने 
					ब्रिटिश चित्रकार चार्ल्स पाल्मर के स्टूडियो में लगभग ३ से ४ 
					साल तक काम करके तैल चित्र और छायाचित्र में निपुणता हासिल की।
					 
					 
					इसी दौरान उन्होंने कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों के तैल चित्र 
					बनाये और ख्याति अर्जित की। कलकत्ता स्कूल ऑफ़ आर्ट के 
					प्रधानाचार्य इ.बी. हैवेल उनके काम से इतने प्रभावित हुए कि 
					उन्होंने अवनीन्द्रनाथ को उसी स्कूल में उप-प्रधानाचार्य के पद 
					का प्रस्ताव दे दिया। इसके बाद अवनीन्द्रनाथ ने कला और 
					चित्रकारी के कई शैलियों पर काम किया और निपुणता हासिल की। 
					हैवेल के साथ मिलकर उन्होंने कलकत्ता स्कूल ऑफ़ आर्ट में 
					शिक्षण को पुनर्जीवित और पुनः परिभाषित करने की दिशा में कार्य 
					किया। इस कार्य में उनके बड़े भाई गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने भी 
					उनकी बहुत सहायता की। उन्होंने विद्यालय में कई महत्वपूर्ण 
					परिवर्तन किये – विद्यालय के दीवारों से यूरोपिय चित्रों को 
					हटाकर मुग़ल और राजपूत शैली के चित्रों को लगवाया और ‘ललित कला 
					विभाग’ की स्थापना भी की। 
					 
					उन्होंने पश्चिम की भौतिकतावाद कला को छोड़ भारत के परंपरागत 
					कलाओं को अपनाने पर जोर दिया। सन १९३० में बनाई गई ‘अरेबियन 
					नाइट्स’ श्रृंखला उनकी सबसे महत्पूर्ण उपलब्धि थी। वे मुग़ल और 
					राजपूत कला शैली से बहुत प्रभावित थे। धीरे-धीरे वे कला के 
					क्षेत्र में दूसरे महत्वपूर्ण व्यक्तियों के संपर्क में भी 
					आये। इनमें शामिल थे जापानी कला इतिहासविद ओकाकुरा काकुजो और 
					जापानी चित्रकार योकोयामा टाय्कन। इसका परिणाम यह हुआ कि अपने 
					बाद के कार्यों में उन्होंने जापानी और चीनी सुलेखन पद्धति को 
					अपनी कला में एकीकृत किया। अबनिन्द्रनाथ टैगोर के शिष्यों में 
					प्रमुख थे नंदलाल बोस, कालिपद घोषाल, क्षितिन्द्रनाथ मजुमदार, 
					सुरेन्द्रनाथ गांगुली, असित कुमार हलधर, शारदा उकील, 
					समरेन्द्रनाथ गुप्ता, मनीषी डे, मुकुल डे, के. वेंकटप्पा और 
					रानाडा वकील। 
					 
					 लन्दन 
					के प्रसिद्ध चित्रकार, लेखक और बाद में लन्दन के ‘रॉयल ‘कॉलेज 
					ऑफ़ आर्ट’ के अध्यक्ष विलियम रोथेनस्टीन से उनकी जीवन-पर्यान्त 
					मित्रता रही। वे सन १९१० में भारत आये और लगभग १ साल तक भारत 
					भ्रमण किया और कोलकाता में अबनिन्द्रनाथ के साथ चित्रकारी की 
					और बंगाली कला शैली के तत्वों को अपने शैली में समाहित करने की 
					कोशिश की। सन १९१३ में उनके चित्रों की प्रदर्शनी लन्दन और 
					पेरिस में लगायी गयी। उसके बाद उन्होंने सन १९१९ में जापान में 
					अपनी कला की प्रदर्शनी लगाई। सन १९५१ में उनकी मृत्यु के उपरान्त 
					उनके सबसे बड़े पुत्र तोपू धबल ने अबनिन्द्रनाथ टैगोर के सभी 
					चित्रों को नव-स्थापित ‘रबिन्द्र भारती सोसाइटी ट्रस्ट’ को दे 
					दिया। इस प्रकार यह सोसाइटी उनके द्वारा बनाये गए चित्रों की 
					बड़ी संख्या की संग्रहक बन गई। 
					 
					चित्रकार के साथ-साथ वे बंगाली बाल साहित्य के प्रख्यात लेखक 
					भी थे। वे ‘अबन ठाकुर’ के नाम से प्रसिद्ध थे और उनकी पुस्तकें 
					जैसे राजकहानी, बूड़ो अंगला, नलक, खिरेर पुतुल बांग्ला 
					बाल-साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उनकी शैली ने 
					बाद के कई चित्रकारों को प्रभावित किया जिनमें– नंदलाल बोस, 
					असित कुमार हलधर, क्षितिन्द्रनाथ मजुमदार, मुकुल डे, मनीषी डे 
					और जामिनी रॉय प्रमुख हैं। ५ अगस्त १९५७ को कोलकाता में उनका 
					निधन हो गया। 
					
                    	१ दिसंबर 
						२०२३
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