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व्यक्तित्व

अभिव्यक्ति में डॉ. संसारचंद्र
की रचनाएँ

हास्य व्यंग्य में-

 


डॉ. संसारचंद्र

जन्म २८ अगस्त १९१६ को पाक अधिकृत कश्मीर के मीरपुर जिले में।
शिक्षा- लाहौर में

कार्यक्षेत्र- अध्ययन तथा अध्यापन के पश्चात उन्होंने अम्बाला को अपनी कर्म भूमि बनाया। १९४७ से १९६३ तक वह एसडी कॉलेज अम्बाला में हिन्दी तथा संस्कृत के विभागाध्यक्ष के रूप में रहे। तत्पश्चात वह पंजाब विश्वविद्याल चंडीगढ़ आए तथा यहां रीडर तथा डीन, फैकल्टी ऑफ आट्र्स की हैसियत से १९६० तक रहे। फिर १९७२ तक वह जम्मू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर तथा हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे तथा डीन, फैकल्टी ऑफ आट्र्स के पद से सेवानिवृत्त हुए।

प्रमुख कृतियाँ
व्यंग्य संग्रह : सटक सीताराम, सोने के दाँत, अपनी डाली के काँटे, बातें ये झूठी हैं, गंगा जब उल्टी बहे, महामूर्ख मंडल, लाख रुपये की बात, विदूषक की याद में।
संस्कृत काव्य टीकाएँ : मेधदूत, स्वप्नवासदत्ता, उत्तर रामचरित, नागानंद
आलोचना : हिन्दी काव्य में अन्योक्ति, भारतीय समीक्षा : परम्परा और प्रवृत्ति तथा साहित्य अनुभूति और विवेचन

पुरस्कार एवं सम्मान-
अखिल भारतीय संस्कृत प्रचारक मंडल दिल्ली द्वारा विद्या वाचस्पति की उपाधि, हिन्दी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद द्वारा भी विद्या वाचस्पति की उपाधि महाराष्ट्र सरकार द्वारा रंगायन का चक्कलस पुरस्कार, उत्तर प्रदेश साहित्य संस्थान का साहित्य भूषण सम्मान। पंजाब सरकार द्वारा हिन्दी तथा संस्कृत दोनों के लिए उन्हें दो बार शिरोमणि साहित्कार का सम्मान, हरियाणा सरकार द्वारा महर्षि वेद व्यास तथा महर्षि वाल्मीकि सम्मान। हरियाणा ने वर्ष २००७-०८ के लिए उन्हें अपना सर्वोच्च साहित्य सम्मान हरियाणा साहित्य रत्न से अलंकृत।

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