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व्यक्तित्व

अभिव्यक्ति में सुमति सक्सेना लाल की रचनाएँ

कहानियों में-

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आखिरी घर

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किस रास्ते पर

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कौशल्या दी

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दूसरी बार न्याय

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फिर वही सवाल

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विस्थापित

 

 

सुमति सक्सेना लाल

सन १९६५ में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के बाद उसी वर्ष से वहीं के एक संबद्ध महाविद्यालय में दर्शन शास्त्र पढ़ाने लगी थी। सन् १९६८ में धर्मयुग में पहली कहानी चौथा पुरुष छपी थी। उसके बाद पाँच छह वर्षो तक धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान और सारिका में कहानियाँ छपती रहीं। फिर लगभग तीस सालों का लंबा मौन। बीच के इन वर्षो में सन् १९८१ में साप्ताहिक हिन्दुस्तान में एक कहानी ‘‘दूसरी शुरुआत’’ मात्र छपी थी।

२००५ से पुनः निरंतर लिखना शुरु किया है। इन वर्षो में हंस, नया ज्ञानोदय, कथादेश और नवनीत आदि में कहानियाँ छपी हैं। सन २००९ के आरंभ में एक कहानी संग्रह ‘‘अलग अलग दीवारें’’ भारतीय ज्ञानपीठ से और इस वर्ष के आंरभ में एक कहानी संग्रह ‘‘दूसरी शुरूआत’’ पैन्गुइन यात्रा बुक्स से छपा है। एक उपन्यास अभी लिखा है जो विचाराधीन है। जानती हूँ कि उम्र के आख़िरी पड़ाव में हूँ...या तो अभी या फिर कभी नहीं।

ई मेल : sumati1944@gmail.com

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