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परिक्रमा कनाडा कमान

 टोरोंटो में भव्य कवि सम्मेलन
सुमन कुमार घई
 

पंक्ति में बाँये से दाँयें :श्री पराशर गौड़, श्री श्याम त्रिपाठी ( हिन्दी प्रचारिणी सभा,कैनेडा के अध्यक्ष तथा 'चेतना' पत्रिका के प्रधान सम्पादक), श्री कैलाशचन्द्र भटनागर, प्रो. हरिशंकर आदेश ( मुख्य अतिथि), श्रीमती अरूणा भटनागर (हिन्दी साहित्य सभा की अध्यक्षा)

४मई, २००२, को कैनेडा के ओन्टैरियो राज्य के महानगर, टोरोंटो में एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ। यह कवि सम्मेलन 'हिन्दी साहित्य सभा' द्वारा आयोजित किया गया। हिन्दी साहित्य सभा की नींव कुछ साहित्य प्रेमी परिवारों द्वारा १९९७ में रखी गई थी। यह परिवार कुछ सप्ताह के बाद नियमित रूप से एक दूसरे के घर मिल कर कविता गोष्ठी किया करते थे। 

धीरे धीरे भाग लेने वालों की संख्या बहुत हो गई तो १९९८ में औपचारिक रूप से इस सभा का गठन हुआ और २००० में राज्य सरकार द्वारा एक संस्था के रूप में इसका पंजीकरण हुआ। इस सभा का उद्देश्य कनाडा में हिन्दी साहित्य को प्रोत्साहन देना है। हिन्दी साहित्य सभा वर्ष में दो भव्य समारोहों का आयोजन करती है। एक सांस्कृतिक कार्यक्रम, जिसमें सदस्यों द्वारा लिखे गये एकांकी, नाटक और नृत्य आदि होते हैं और दूसरा कवि सम्मेलन।

इस वर्ष के कवि सम्मेलन में मुझे एक श्रोता के रूप में जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। लगभग १५० श्रोतागण उपस्थित थे जिन्होंने इस सम्मेलन का भरपूर आनन्द लिया। कवि सम्मेलन का आरम्भ श्री भगवत शरण श्रीवास्तव के स्वागतीय शब्दों से हुआ। उसके पश्चात्  श्रीमती अरूणा भटनागर, जो कि 'हिन्दी साहित्य सभा' की अध्यक्षा हैं, ने सभी का अभिवादन किया। फिर मां सरस्वती की वन्दना की गई। अतिथि अध्यक्ष थे डा. शिवनन्दन सिंह यादव और आतिथेय अध्यक्ष डा. भारतेन्दु श्रीवास्तव। डा.भारतेन्दु श्रीवास्तवजी, जो 'अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति' द्वारा, अमेरिका से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'विश्वा' के सम्पादकीय मण्डल में भी सम्मिलित हैं, ने इस बात पर सन्तोष प्रकट किया कि इस सम्मेलन में युवा वर्ग के कवि भी भाग ले रहे हैं। 

डा. शिवनन्दन सिंह यादव ने अपने सन्देश में कहा कि साहित्य केवल का समाज का प्रतिबिम्ब ही नहीं बल्कि उसको मौलिक दिशा देने वाला भी होता है।इस सम्मेलन के मुख्य अतिथि थे प्रो. हरिशंकर आदेश। आदेश जी ने भारत से बाहर रहते हुए कई देशों में भारतीय साहित्य और संस्कृति की अथक सेवा की है। इनके द्वारा रचे हुए दो महाकाव्य "शकुन्तला" और " अनुराग" प्रकाशित हुए हैं। "अनुराग" को भारत वर्ष से बाहर रचा गया प्रथम महाकाव्य माना जाता है। प्रो आदेश द्वारा लिखी गई कई कविताएं भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं और उनपर अनेक शोधपत्र लिखे जा चुके हैं। इन्होंने कुछ उपन्यास भी लिखे हैं परन्तु वे अपना परिचय एक कवि के रूप में देते हैं। इस समय भी वे दो महाकाव्यों की रचना में कार्यरत हैं, उनमें से एक "दमयन्ती" के कुछ अंशों का इन्हों ने कवि सम्मेलन में पाठ भी किया।
 

सम्मेलन में २५ कवियों और कवियत्रियों ने भाग लिया। सम्मेलन की पहली कवियत्री स्नेह ठाकुर ने 'आंगन की कच्ची मिट्टी' जो कि वर्तमान के वातावरण पर आधारित थी, सुनाई। देवन्द्र मिश्रा की 'हम भी हैं घड़े कुम्हार के' तो जीवन दर्शन ही था।  पराशर गौड़ की वीर रस की कविता ने रण में हुंकारते फुंकारते बढ़ने आह्वान दिया तो दूसरी तरफ उन्हीं की हास्य रस की कविता ने अपनी कवि बिरादरी की कविता सुनाने की तत्परता पर फब्ती कसी 'अपनी तो सुना गया'। डा.भारतेन्दु श्रीवास्तवजी की मातृप्रेम से ओतप्रोत कविता 'ममता की टिकिया घुल गई' ने श्रोताओं की आंखें सजल कर दीं।  डा. शिवनन्दन यादव की कविता "भावना क्या है' सब के मन के छू गई और सब वाह–वाह कर उठे। सभी कविताएं इतनी सुंदर थीं कि दुविधा है, किसका उल्लेख किया जाए।
बाँये दाँये – श्री राज कश्यप, तीसरे श्री सरन घई ('नमस्ते कनाडा' साप्ताहिक समाचारपत्र के प्रकाशक और सम्पादकं), पंक्ति के अन्त में श्रीमती शैल शर्मा

श्याम त्रिपाठी जी, जो टोरोंटो विश्वविद्यायल में हिन्दी पढ़ाते हैं, 'हिन्दी प्रचारिणी सभा कैनेडा' के अध्यक्ष और इसी के द्वारा प्रकाशित 'चेतना' नाम की साहित्यिक प्रत्रिका के प्रधान सम्पादक हैं, ने मंच पर आकर हर बात ही कविता की शैली में की। यह सभा न जाने कब शुरू हुई और कब समाप्त, बस वाह–वाह ही होती रही। शैल शर्मा की कविता भी बहुत ही सराहनीय रही।

युवा पीढ़ी में शैलजा सक्सेना की कविता ने सम्मेलन की दिशा को आंतकवाद की तरफ मोड़ दिया तो संदीप त्यागी ने देशप्रेम की दिशा में। आशा बर्मन की प्रेम रस में डूबी हुई कविता ने साथी को आह्वान दिया तो मृदुल सम्बन्धों पर ब्रजराजकिशोर कश्यप ने अपने विचार प्रकट किये। भुवनेश्वरी पांडे ने घर मे होने वाली अनबन और महाभारत में कोई अन्तर नहीं समझा। कैलाश चन्द्र भटनागर, जो उर्दू में लिखते हैं,  का हिन्दी में प्रयास भी अच्छा था। डा. शिव पाल की हास्यरस की कविता उस क्लीनेक्स के टुकड़े पर आधारित थी जो गलती से अपने आप को इन्सान समझ बैठा। सारी सभा हंसी से लोट–पोट हो रही थी। विजय विक्रान्त ने अपनी पत्नी की, उनके प्रति विचारधारा प्रकट करके घर की पोल ही खोल दी। 

राज शर्मा जो हिन्दी ही नहीं पंजाबी की भी पुरस्कृत कवियित्री हैं ने अपनी गम्भीरता से परिपूर्ण कविता पढ़ी। राज कश्यप जी, जो रॉयरसन विश्वविद्यालय में गणित के प्राध्यापक होनो के साथ साथ संस्कृत और हिन्दी व्याकरण के विद्वान भी हैं, की कविता बहुत ही अच्छी थी।कामिनी चाहावर, प्रमिला भार्गव, सरन घई (टोरोंटों के 'नमस्ते कनैडा' सप्ताहिक समाचार पत्र के प्रकाशक) और सरोज भटनागर की कविताएँ उच्च कोटि की थीं। प्रो. हरिशंकर आदेश जी की कविताओं के विषय में क्या कहूँ, सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है। 

आदेश जी का कविता वाचन

कवि सम्मेलन लगभग तीन घन्टे चला। हर 'रस' की कविताएँ पढ़ी गयीं परन्तु एक बात निश्चित थी कि रह रह कर सम्मेलन की दिशा वर्तमान के घटनाक्रम की दिशा में घूम जाती थी। चाहे वह आंतकवाद हो या भ्रष्टाचार (डा.भारतेन्दु श्रीवास्तवजी की दूसरी कविता)। डा. शिवनन्दन सिंह यादव का वक्तव्य कि 'साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब ही नहीं बल्कि मौलिक दिशा भी निर्धारित करता है, कसौटी पर खरा उतर रहा था। 

सभी श्रोताओं ने सम्मेलन का बहुत ही आनन्द लिया यहाँ तक कि समाप्त होने के बाद भी लगभग आधे घन्टे तक लोग लॉबी में रूके रहे और समारोह की सराहना करते रहे। हर पक्ष से कवि सम्मेलन अत्यंत सफल रहा।

 
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