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परिक्रमा कनाडा कमान

 टोरोंटो में "पैनोरामा" का उत्सव
सुमन कुमार घेई

सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद लेते श्रोतागण

"पैनोरामा इंडिया" का आरम्भ 1999 में कैनेडा की भारतीय संस्थाओं के एक सांझे मंच के रूप में किया गया था ताकि सब भारतीय अपने विशेष दिवस और त्योहार एकता के साथ मना सकें। इस वर्ष 15 अगस्त के उपलक्ष्य में यह समारोह 23 और 24 अगस्त को टोरोंटो के 'नॉर्थ यॉर्क सिविक सेन्टर' में 'मैल लास्टमैन स्कुएर' में मनाया गया।

इस समारोह में विभिन्न संस्थाओं ने गीत, संगीत, नृत्य और नाटक आदि का प्रदर्शन किया और 24 अगस्त की संध्या को एक कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया। इस वर्ष के समारोह के सांस्कृतिक निर्देशक नमस्ते कैनेडा समाचार पत्र के प्रकाशक सरन घई थे।

कवि सम्मेलन की अध्यक्षता की सरदार निधान सिंह जी ने। सरदार निधान सिंह जी ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में 23 बार जेल यात्रा की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में नई पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी की मान्यताओं को सम्मानित करने का आह्वान दिया। उन्होंने हिन्दी भाषा को भारत माता का ही एक रूप कहा। स्नेह ठाकुर और सरन घई ने कवि सम्मेलन के संचालन का भार सम्भाला। भारत की कई भाषाओं में काव्य पाठ हुआ। सभी कविताएं देशभक्ति से परिपूर्ण थीं। किसी ने वीर रस में काव्य पाठ किया तो किसी ने भारतवर्ष की सुन्दरता को याद किया। किसी ने भारत की राजनीति और भ्रष्टाचार पर चिन्ता व्यक्त की तो किसी ने आंतकवाद के अन्त के रास्ते सुझाए।

जाने पहचाने चेहरों में स्नेह ठाकुर ने 'मुशर्रफ़–सुपात्र' द्वारा कटाक्ष किया, सरन घेई  की 'सुमधुर भारतवर्ष हमारा' मातृभूमि की यादों से ओत–प्रोत थी, सुरेन्द्र पाठक, जो माने हुए हास्य कवि हैं, ने कैनेडा के जीवन के विषय में कविता पढ़ी, भुवनेश्वरी पांडे की कविता 'स्वतन्त्रता' थी। शैलजा सक्सेना ने सामाजिक प्रश्न उठाए, देवेन्द्र मिश्रा ने 'तुम हिन्दुस्तानी' अपनी सुंदर वाणी में सुना कर भारतवासियों को चुनौती दी।

 कैलाश चन्द्र भटनागर का प्रश्न था कि 'हम जागेंगे कब', संदीप त्यागी ने बताया कि 'इंडिया ही आज़ाद हुआ था' भारत नहीं ( क्योंकि संविधान में यही लिखा है कि इंडिया आज़ाद हो रहा है)। राज भारती की कविता 'प्रतिज्ञा' थी, राज कश्यप ने 'तीन विभूतियां' का पाठ किया जो भारत के महापुरूषों से सम्बन्धित थी। पराशर गौड़ ने 'वो पथिक पथ दिखा' सुनाई, प्रो. हरिशंकर आदेश जी ने 'आदरणीय अटल जी' को लिखा पत्र पढ़ा। डॉ. भारतेन्दु श्रीवास्तव जी की कविता 'जय भारत माँ' थी। मैंने भारत की ऋतु की गन्ध को याद करते हुए 'गरमी की यादें' सुनाई। प्रो. हरिशंकर आदेश जी ने इस बात पर सन्तोष प्रकट किया कि इस बार उन्हें अध्यक्ष नहीं बनाया गया तो उन्हें अपनी कविता सुनाने के लिए अन्त तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी और थियेटर पूरा भरा हुआ है।

आमतौर पर जब तक उनकी बारी आती है, तब तक बहुत से लोग जा चुके होते हैं। पंजाबी में कविता पढ़ने वाले थे स. बाबू सिंह और शांति स्वरूप सूरी। बंगाली में अमर मुखर्जी ने अपनी कविता सुनाई। अँशु चक्कू ने उर्दू में लिखी 'गुलशन की यादें' भाव भरी नज्म पढ़ी।

अजय त्यागी की गज़ल ' सुलगती बस्तियां और धधकते शहर ' ने समाज की अनेक बुराइयों को कुरेदा। श्रीमती सुशीला गुप्ता जो कि एक स्वर्गीय स्वतन्त्रता सेनानी की धर्मपत्नी हैं, ने अपनी कविता 'शत शत नमन करूँ' सुनाई। हॉल में बहुत से लोगों की आँखें नम हो गयीं जब सुशीला जी की वाणी भावनावश भर्रा गयी। स्नेह ठाकुर ने उठ कर सुशीला जी का हाथ थाम कर उनको सहारा दिया तो वह अपनी कविता पूरी कर सकीं।
सुमन कुमार घई 'गरमी की यादें' सुनाते हुए। पीछे बायें से दायें स्नेह ठाकुर, स.निधान सिंह और सरन घई 

कवि सम्मेलन पूर्ण रूप से सफल रहा। हॉल खचाखच भरा हुआ था और अन्त तक श्रोताओं का उत्साह उतना ही बना रहा जितना की आरम्भ में था।

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