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पर्व परिचय                    

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चंदन नगर की जगदद्धात्री पूजा
मानोशी चैटर्जी
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शरद का महीना आते ही शुरू हो जाती है बंगाल में दुर्गा पूजा की धूम। नये कपड़े, नये ज़ेवर, और चार दिन के इस उत्सव के ख़त्म होते ही जैसे सब उदास हो जाते हैं। मगर फिर कुछ ही दिनों बाद कोजागरी पूर्णिमा के दिन घर-घर में लक्ष्मी पूजन के लिए जोड़-तोड़ होने लगती है। और थोड़े ही दिनों में फिर आ जाती है दिवाली। दिवाली या काली पूजा के बाद त्यौहारों का मौसम जैसे ख़त्म हो जाता है सबके लिए। मगर कलकता शहर से कोई तीस किलोमीटर दूर उत्तर में? हुगली ज़िले में बसे चंदरनगर या चंदन नगर नामक छोटे से शहर में तैयारी हो रही होती है एक और उत्सव की? जगद्धात्री पूजा।

चंदननगर उन कुछ शहरों में से है जो कभी ब्रिटिश के अधीन नहीं रहा बल्कि पांडिचेरी आदि कुछ शहरों जैसे वहाँ भी ऋासियों का आधिपत्य था। बंगाल की हरियाली के बीच? संकरी गलियों और ज़मींदारों की बड़ी हवेलियों के साथ? गंगा किनारे बसा ये शहर अपने में अनुपम है।

आज जहाँ बड़ी-बड़ी हवेलियाँ अब अपने जीर्णावस्था में भी पुराने समय के वैभव का प्रदर्शन करती हैं? वहीं ग्रैंड ट्रंक रोड के किनारे लगी आधुनिक दुकानें और इंटरनेट कैफे देश में हुई प्रगति को दिखाती हैं।

चंदरनगर का नाम शायद इसलिए ऐसा पड़ा क्यों कि नदी के किनारे बसा ये शहर अर्धचंद्रमा जैसा आकार का लगता है। ये भी संभव है कि चंदन के व्यापार के चलते इस शहर का नाम चंदननगर पड़ा हो। चंदननगर का एक और नाम है फ्रांसडांगा अर्थात फ्रांसिसी ज़मीन। यहाँ फ्रांसिसी राज होने के कारण ही इसका ऐसा नाम पड़ा। चंदननगर से कई क्रांतिकारी निकले जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जम कर हिस्सा लिया। ब्रिटिश के खिलाफ़ ये उस वक्त एक नामी गढ़ था। पुराना विशाल चर्च, यहाँ का म्यूज़ियम, नंददुलाल का पुराना मंदिर और यहाँ का पाताल बाड़ी चंदननगर को बंगाल के दूसरे शहरों के बीच एक विशेष स्थान दिलवाते हैं। गंगा नदी के किनारे बनाए गए पाताल बाड़ी का कुछ हिस्सा नदी में डूबा हुआ है जहाँ रवींद्रनाथ ठाकुर आ कर रहते थे और उनकी कई रचनाओं ने यहाँ जन्म लिया। सिर्फ यही नहीं यहाँ मनाई जाने वाली जगद्धात्री पूजा का पूरे बंगाल में एक विशेष महत्व है। आइए, इस पूजा के बारे में ज़्यादा जानें।

दुर्गा पूजा के ठीक एक महीने बाद मनाई जाती है जगद्धात्री पूजा। सारा कलकता शहर और आसपास के शहरों से लोग उमड़ पड़ते हैं इस पूजा में शामिल होने के लिए। भव्य मूर्तियाँ और आलीशान पंडाल इस शहर को एक नया रूप दे देते हैं इन कुछ दिनों में। कहा जाता है कि इंद्रनारायण चौधरी? जो कि उस समय के एक बड़े व्यापारी थे? ने ऋणनगर के राजा ऋणचंद्र की देखादेखी जगद्धात्री पूजा का आरंभ चंदननगर में किया। इंद्रनारायण चौधरी उस समय के एक बड़े हस्ती थे। उन्हें फ्रांस की सरकार से कुछ उपाधियाँ भी मिलीं थीं और उन्होंने १७४० में नंददुलाल का भव्य मंदिर भी बनवाया था। १७५० में उन्होंने अपने घर में जगद्धात्री पूजा शुरू की थी। बाद में हर गली नुक्कड़ पर ये पूजा होने लगी और आज जगद्धात्री पूजा एक विशाल उत्सव का रूप ले चुका है।

कार्तिक महीने में मनायी जाने वाली इस पूजा में देवी जगद्धात्री चार हाथों में नाना शस्त्र लिए होती हैं। शेर पर सवार इस देवी की भव्य मूर्तियाँ जगह-जगह पंडाल की शोभा बढ़ा रही होती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर पर विजय के बाद, देवताओं में अहंकार घर कर गया। उन्हें लगा कि मां दुर्गा उनके प्रदान किए हुए शस्त्रों की वजह से ही महिषासुर का वध कर पाईं हैं। तब यक्ष ने उन्हें सबक सिखाया और ये अहसास दिलाया कि एक महान शक्ति जो कि सबकी रक्षा करती हैं दरअसल हर विजय के पीछे हैं। उस शक्ति को जगद्धात्री कहा गया और देवी के रूप में इसकी पूजा की गई।

चंदननगर की जगद्धात्री पूजा मशहूर है विसर्जन के दिन के जुलूस के लिए। सिर्फ चंदननगर के निवासी ही इस दिन की प्रतीक्षा नहीं करते हैं बल्कि इस जुलूस को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। बाहर से चंदननगर को जोड़ने वाली सारी सड़कें बंद कर दी जाती हैं और कलकता से विशेष लोकल रेलगाड़ियाँ चंदननगर के लिए रवाना की जाती है जिसमें हज़ारों की संख्या में लोग इस जुलूस को देखने आते हैं। इस जुलूस में ख़ास बात होती है रोशनी प्रदर्शन की। महीनों से यहाँ के लोग जुटे होते हैं बिजली के तारों के सूक्ष्म काम में इस दिन के लिए। बड़े-बड़े जेनरेटर ट्रक पर रखे जाते हैं और उनसे जुड़े होते हैं बाँस पर लगे छोटे-छोटे बल्ब जो एक प्रसंग या विषय को दर्शाते हैं। कभी मदर टेरेसा का पूरा आश्रम दिखाया जाता है इन बाँस के ढाँचों पर तो कभी महिषासुर वध ही पूरा का पूरा जलते-बुझते बल्ब एक कहानी की तरह कह जाते हैं।

हैरत होती है इतनी अच्छी तकनीकी विशेषज्ञता देख कर। इस तरह सिर्फ एक नहीं बल्कि ३०-४० के करीब जुलूस निकलते हैं एक के बाद एक ट्रकों पर। लोगों का उत्साह देखते बनता है और सारी रात चलता है ये जुलूस। इस जुलूस को देखे बगैर मानना मुश्किल है कि इस छोटे से शहर में कैसे ये लोग इतना कुछ कर पाते हैं। इस जुलूस के लिए प्रतियोगिता रखी जाती है और कौन सी गली की किस पूजा कमिटी ने ये रोशनी प्रदर्शन जीता, अगले दिन के अख़बार की ख़बर का हिस्सा होता है। इस तरह ये पूजा संपन्न होती है और अगले साल फिर इन दिनों के लिए बेसब्री से इंतज़ार करने लगते हैं लोग।

हमारे देश में विभिन्न संस्कति और रीति रिवाज़ों के चलते हर प्रदेश, हर प्रांत मे जाने कितने ही ऐसे उत्सव मनाये जाते हैं जो बड़े उत्सवों की भीड़ में खो जाते हैं। मगर इन उत्सवों का अपना महत्व होता है और हमारे देश की संस्कृति की गरिमा को बनाए रखने में इनका अपना योगदान होता है। चंदननगर का जगद्धात्री पूजा भी ऐसे ही त्यौहारों में से एक है जो सिर्फ चंदननगर का ही सम्मान नहीं बढ़ाती बल्कि भारत देश की संस्कृति को भी और सुदृढ़ करती है।

९ नवंबर २००६

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