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पर्यटन

काठमांडू से ऊपर नागरकोट के एक ग्रामीण विश्रामस्थल पर सुनहरी सुबह

—पर्यटक


विश्व का एक मात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल, हिमालय के उँचे शिखरों के बीच स्थित ऐसा प्रतीत होता है मानो नगराज हिमालय ने बडे लाड से इसे अपनी गोद में बैठा रखा हो। नेपाल अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण अब तक बहुत ही सुरक्षित रहा है। उत्तर में दुर्गम हिमालय की अजेय चोटियाँ, पूरब, पश्चिम और दक्षिण में भारत, उसकी संस्कृति का स्रोत, अनन्य मित्र— इस भौगोलिक विशेषता ने नेपाल की संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखा। नेपाल भ्रमण के लिये बढते हुये कदमों के साथ आँखो में सजीव होते नगराज हिमालय के हिमकिरीट के दृश्यों ने मन में नवीन उल्लास का संचार कर दिया।

नेपाल की राजधानी काठमांडू शाही लिबास में लिपटी हुयी अनिन्द्य सुन्दरी की तरह पर्यटको को लुभाती है, इसके आर्कषण में बँधा हुआ हर पर्यटक उसके बाहुपाश में समाने को लालायित हो उठता है। मैने भी उस खूबसूरत वादी मे अपने को आत्मसात कर लिया। सडकों पर फैले विश्व के विभिन्न देशों के पर्यटको के मध्य समा गया। १९५० तक जो नेपाल सदियों से विदेशियों के लिये बन्द था, आज वही करोडों रूपये पर्यटन व्यवसाय से पैदा कर रहा है। काठमांडू हिमालय के उँचे पहाडों के बीच एक खूबसूरत वादी है।

सड़कों का बहुरंगी सौंदर्यहोटल, मकान, दूकान, सडकें सभी सजधज के साथ नजर आरहे हैं। बाजार में व्यापार उद्योग में भारतीय अच्छी संख्या में हैं। दूकानो में विदेशी वस्तुओं की भरमार है जिसमें चीन निर्मित सामानों का आधिक्य है। मुझे वहीं पता लगा कि इन विदेशी वस्तुओं के ग्राहक या तो केवल सम्पन्न नेपाली हैं या फिर विदेशी पर्यटक।

आज भी नेपाल हर भारतीय के विदेश भ्रमण के सपने को साकार करता हुआ अपनी संस्कृति और नैसर्गिक प्राकृतिक सौन्दर्य से लुभाता रहता है। भारत से नेपाल जाने के लिये किसी प्रकार का प्रतिबन्ध न होने के कारण बहुतायत भारतीय पर्यटन या व्यवसाय के लिये नेपाल जाते रहते हैं। बाजार से निकल कर नेपाल के सचिवालय की ओर पहुँचा। पूर्व में यह राजमहल था किन्तु काफी दिनों से इसे नेपाल राज्य का सचिवालय बना दिया गया है। इसके अन्दर १८०० कक्ष है इसी
से इसकी विशालता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। बाजार के मध्य में महारानी के नाम पर एक बहुत ही सुन्दर उद्यान बनाया गया है। बालाजू की धाराओं के चारो ओर सुन्दर कुंज तथा तैराकी के लिये सरोवर में जल क्रीडा का आनन्द  लिया जा सकता है।

पशुपतिनाथ का मन्दिरनेपाल में पुराने महल और मन्दिरों का समुचित रखरखाव एवं अपनी संस्कृति के प्रति लगाव का एक बहुत ही स्वस्थ परिणाम यह भी रहा कि भारतीय संस्कृति अथवा धर्म की विभिन्न धाराओं का सफल प्रयोग और समन्वय यहाँ सम्भव
हो सका। सम्पूर्ण नेपाल में मन्दिर, स्तूप और मठ भरे पड़े हैं राजधानी के आस पास भी बहुत से मन्दिर हैं।

वाग्मती के तट पर स्थापित पशुपतिनाथ का मन्दिर १३वीं शताब्दी में बना था। यह तीर्थ स्थल सुदूर दक्षिण भारत और विदेशी हिन्दुओं को युगों से आकर्षित करता रहा है। इसका ऊपरी कलश ठोस सोने का है। आँगन मे नन्दी की विशाल मूर्ति प्रतिष्ठित है। दर्शन के समय पुजारी द्वारा “अस्ति जम्बू द्वीपे भारत खंडे आर्यावर्ते" का मन्त्रोच्चार कर चरणामृत लेते समय हठात मैं सोचने लगा कि अनेकों कृत्रिम व्यवधान भारत और नेपाल की सांस्कृतिक एकता को जोड़ने में बाधक रहे हैं फिर भी नेपाल और भारत का हजारों वर्षो का सम्बन्ध सदैव रहा है और रहेगा। यहाँ हिन्दू धर्मावलम्बियों की संख्या ८६ प्रतिशत से भी ज्यादा है।

पहाडी के ऊपर प्रतिष्ठित स्वयंभूनाथ का बौद्ध मन्दिर २००० वर्ष पुराना है। मुख्य मन्दिर के पास और भी छोटे छोटे मन्दिर है। मध्य में छह फुट ऊँचा और साढे तीन फुट मोटा एक चक्र है जिस पर जप के मन्त्र अंकित है इसको घुमाकर श्रद्धालु मन्त्र जप का फल प्राप्त करते हैं। स्वयंभूनाथ के पश्चिम में मंजुश्री स्थित है। यहाँ माघ की श्री पंचमी को बहुत बडा मेला लगता है जहाँ हजारो की संख्या मे लोग पूजन के निमित्त आते हैं।

स्वयंभूनाथ के बौद्ध मन्दिर में स्थित मंत्रचक्र गुहेश्वरी का मन्दिर बौद्धों की तान्त्रिक शाखा की प्रसिद्ध स्थली के रूप में जाना जाता है। राजा जयप्रताप मल ने लगभग ३०० वर्षो पूर्व हनुमान ढोका में हनुमान जी की विशाल प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठिा की थी। इसके पास ही भव्य राजमहल है जिसकी सात मंजिला लकडी के सिंह द्वार पर उत्कीर्ण बारीक कलाकृतियाँ देखकर आँखे आश्चर्य से भर जाती हैं।

धान और मक्के के हरे भरे खेतो के मध्य स्थित बोधिनाथ का स्तूप बडा ही आकर्षक लगता है विश्व के इस विशाल स्तूप मे तथागत के अस्थि अवशेष है। इसके दर्शनाथ तिब्बत, बर्मा, भारत, जापान तथा विश्व के अन्य देशों से हजारों पर्यटक आते रहते हैं। इसके समीप ही तिब्बती लामाओ का एक विहार भी है।

अब तक विश्व के बहुत से बडे.–बड़े गिरजे और मस्जिदों को देख चुका था। किन्तु यहाँ जो शांति और आनंद की अनुभूति हुयी उसकी अभिव्यक्ति शब्दों में कर पाना असम्भव है। इसकी सुखद अनुभूति तो यहाँ आकर ही की जा सकती है । यहाँ के ९० प्रतिशत नागरिको के संवाद सूत्र का माध्यम नेपाली भाषा है। सरकारी काम काज एवं व्यापार में अंग्रेजी का भी प्रयोग होता है।

पाटन काठमांडू कृष्ण मंदिरशिक्षा के प्रति जागरूक नेपाल में विश्वविद्यालय, मेडिकल कालेज, इन्जीनियरिंग कालेज तथ अनेको शिक्षण संस्थायें शिक्षा के प्रचार–प्रसार में लगी हैं। नेपाल में साक्षरता की दर बढ रही है। नेपाल की कुल आबादी का बड़ा प्रतिशत साक्षर है। सूचना क्रान्ति में व्यापक विकास हुआ है। इसका अनुमान इस बात से लग जाता है कि यहाँ लगभग ३५००० इन्टरनेट उपयोग कर्ता हैं।

नेपाल विकासशील देशों की कतार में खडा है। इसकी भौगोलिक स्थिति इतनी महत्वपूर्ण है कि भारत, अमेरिका, रूस, फ्रान्स, ब्रिटेन, चीन आदि सभी करोड़ों रूपये की आर्थिक सहायता देते रहते हैं। नेपाल मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है। यह देश कालीन, कपड़े, चमड़े के बने सामान, जूट निर्मित सामान तथा आनाज के निर्यात से विदेशी मुद्रा अर्जित करता है।

ने
पाल प्रकृति और वनसंपदा की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। यहाँ का राजकीय चितवन राष्ट्रीय उद्यान विश्व के सबसे प्राचीन संरक्षित वनों में से एक है। यह वन नेपाल के दक्षिण मध्य के तराई प्रदेश में स्थित है। प्राचीन काल में इसे महाराजाओं के शिकार के शौक को पूरा करने के लिये इस्तेमाल किया जाता था लेकिन १९५० में इसमें शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया।

१९६३ में इसे गैंडों का संरक्षित वन घोषित कर दिया गया। १९७० में तत्कालीन महाराजा स्वर्गीय महेन्द्र ने इसे औपचारिक रूप से संरक्षित वन का आकार दिया। १९७३ में इसका विस्तार हुआ और १९८४ में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित कर दिया गया। आज इसमें पशुओं की ४३ प्रजातियाँ, पक्षियों की ४५० प्रजातियाँ और सरीसृपों की ४५ प्रजातियाँ संरक्षित हैं। विश्व के कुल गैंडों में से एक चौथाई केवल इस वन में संरक्षित हैं।

काठमांडू के विश्व प्रसिद्ध कैसीनो मे न जाना अपने आप में कुछ खोने जैसा होगा। अतएव मैं भी कौतूहल के साथ उनके बीच में अपने को महसूस करने लगा। थकान के कारण रात गहरी नीद में सोया, सुबह वापसी के लिये मुड़े कदमो से सोचता जा रहा था... प्राकृतिक छटाओं के नयनाभिराम दृश्यों से भरा हुआ नेपाल, वहाँ के निवासियों के निश्छल व्यवहार एवं सुखद शान्ति की अनुभूति ने कहीं ऐसी छाप डाली कि बरबस मन पुनः आने का संकल्प कर चुका था।

२४ जुलाई २००२

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