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पर्यटन

आबू की प्राकृतिक सुषमा  
डॉ. तारादत्त 'निर्विरोध'    

प्राकृतिक सुषमा और विभोर करनेवाली वनस्थली का पर्वतीय स्थल 'आबू पर्वत' स्वास्थ्यवर्धक जलवायु के साथ एक परिपूर्ण पौराणिक परिवेश भी है। यहाँ वास्तुकला का हस्ताक्षरित कलात्मकता भी दृष्टव्य है। पर्यटक हैं कि खिंच चले आते हैं और आबू का आकर्षण है कि आए दिन मेला, हर समय सैलानियों की हलचल चाहे शरद हो या ग्रीष्म। आबू ग्रीष्मकालीन पर्वतीय आवास स्थल और पश्चिमी भारत का प्रमुख पर्यटन केंद्र रहा है। यह ४३० मील लंबी और विस्तृत अरावली पर्वत शृंखला में दक्षिण-पश्चिम स्थित तथा समुद्रतल से लगभग ४००० फुट की ऊँचाई पर अवस्थित है। गुरु शिखर इस पर्वत का सर्वोच्च शिखर है जो समुद्रतल से ५६५० फुट ऊँचा है।

आबू का भूगोल- दिल्ली एवं जयपुर के दक्षिण पश्चिम और बड़ौदा एवं अहमदाबाद के उत्तर में स्थित आबू का पर्वत बड़ा ही रमणीक, मनोहारी और आध्यात्मिकता का आगार है। यहाँ पहुँचने के लिए पश्चिमी रेलवे की दिल्ली-अहमदाबाद रेलवे लाइन द्वारा दिल्ली से १८ घंटे, बंबई से १६ घंटे और अहमदाबाद से ५ घंटे की आबू रोड की यात्रा तय करनी होती है। आबू रोड से आबू पर्वत जाने के लिए टैक्सियों के अतिरिक्त राजस्थान सरकार की बस सेवा भी उपलब्ध है। आबू पर्वत का पर्यटन काल में १५ मार्च से ३० जून और शरद में १५ सितंबर से १५ नवंबर है। ग़ैर पर्यटन काल (ऑफ सीजन) १ जनवरी से १४ मार्च और एक जुलाई से १४ सितंबर तथा १६ नवंबर से ३१ दिसंबर है। स्थिति यह है कि जुलाई से सितंबर तक मानसून बना रहता है और ६० से ७० इंच तक वर्षा होती है। लगभग २५ वर्ग किलोमीटर के आबू पर्वतीय क्षेत्रफल में नदी, झील, सूर्यास्त स्थल, घुड़सवारी और अनेक दर्शनीय आकर्षण हैं। राज्य सरकार द्वारा प्रतिवर्ष शरद महोत्सव मनाए जाने से यहाँ की हलचल पूर्व से कई गुनी हो गई है।

अंतर्कथाएँ- आबू पर्वत की उत्पत्ति और विकास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के संबंध में अनेक पौराणिक कथाएँ, भौगोलिक तथ्य और आख्यायिकाएँ यहाँ प्रचलित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार आबू पर्वत उतना ही प्राचीन है, जितना सतयुग। यह भी कि महाभारत में वर्णित सर्प सम्राट हिमालय के पुत्र अर्बुदा के नाम पर आबू पर्वत का नामकरण हुआ। एक और पौराणिक कथा के अनुसार वर्तमान में जहाँ आबू पर्वत है, किसी समय वहाँ एक बड़ा गड्ढ़ा था जिसमें एक दिन कामधेनु गाय 'नंदिनी' गिर गई। वह महर्षि वशिष्ठ को प्रिय थी और उन्होंने शिव से उसके उद्धार की प्रार्थना की थी। शिव ने कैलाश से नंदीवर्धन को गड्ढ़े को पाटने और महर्षि की पीड़ा दूर करने भेजा, किंतु उसके पहुँचने के पूर्व ही सरस्वती देवी ने अपनी एक नदी के प्रवाह को गड्ढ़े की ओर मोड़ दिया, जिससे गाय बाहर आ गई, फिर भी नंदीवर्धन के गड्ढ़े के स्थान पर पर्वत शृंखला उत्पन्न की, जो अर्बुदा कहलाई। पूर्व में आबू पर्वत आस्थिर था, अतः शिव ने पाँव के प्रहार से इसे स्थिर किया, जिससे पाँव का अगला भाग उस पर अंकित हो गया। यह भाग आज भी प्रसिद्ध अंचलेश्वर मंदिर में प्रतिष्ठित है। बाद में आबू पर्वत परमार शासकों और उसके बाद देलवाड़ा चौहानों के अधीन रहा। अंग्रेज़ी शासनकाल में लगभग एक शताब्दी तक यह विकासशील रहा और रियासतों के विलीनीकरण के बाद यह बंबई राज्य की प्रशासनिक देखरेख में रहा। राजस्थान में यह भाग १९५६ से मिला दिया गया और अब आबू पर्वत राज्य के सिरोही जिले का एक उपखंड है।

नक्की झील- नक्की झील देवताओं के नाखूनों द्वारा ज़मीन को खुरचकर बनाई गई झील है, जो आबू पर्वत के मध्यस्थ है और पवित्र मानी जाती है। प्राकृतिक सौंदर्य का नैसर्गिक आनंद देनेवाली यह झील चारों ओऱ पर्वत शृंखलाओं से घिरी है। यहाँ के पहाड़ी टापू बड़े आकर्षक हैं। यहाँ कार्तिक पूर्णिमा को लोग स्नान कर धर्म लाभ उठाते हैं। झील में एक टापू को ७० अश्वशक्ति से चलित विभिन्न रंगों में जल फव्वारा लगाकर आकर्षक बनाया गया है जिसकी धाराएँ ८० फुट की ऊँचाई तक जाती हैं। झील में नौका विहार की भी व्यवस्था है।

श्रीरघुनाथ मंदिर- श्रीरघुनाथ मंदिर और आश्रम नक्की झील के तट पर दक्षिण-पश्चिमी हैं। यहाँ चौदहवीं शताब्दी में जगतगुरु वैष्णवाचार्य रामानंदाचार्यजी द्वारा प्रतिष्ठित श्रीरघुनाथजी प्रतिमा है। श्वेत संगमरमर पत्थर से बने इस मंदिर के मुख्य मंडप के गुंबद में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गई हैं।

टॉड रॉक- नक्की झील के पश्चिमी तट की ओर ऊपर पर्वत पर एक ऐसी चट्टान है, जिसकी आकृति मेढ़क (टॉड) जैसी है। टॉड रॉक के नाम से प्रसिद्ध यह चट्टान अन्य चट्टानों से एकदम भिन्न और एक विशाल खंड है।

सूर्यास्त-स्थल- आबू पर्वत के पश्चिमी छोर पर आकर्षक एवं प्रकृति के बीच के स्थल को जहाँ से संध्या समय सूर्यास्त के दृश्य को देखा जा सकता है, सूर्यास्त स्थल कहा जाता है। इस स्थान तक पहुँचने के लिए सड़क मार्ग है वहाँ सीढ़ियाँ भी हैं। यहाँ सूर्यास्त दर्शन के लिए उद्यासन भी बने हुए हैं।

अर्बुदा देवी- आबू पर्वत की आवासीय बस्ती के उत्तर में अर्बुदा देवी का ऐतिहासिक एवं दर्शनीय मंदिर है जो पर्वत उपत्यकाओं के मध्य एक मनोरम स्थल है। यहाँ प्रतिष्ठित अर्बुदा देवी आबू की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूज्य है और इसे 'अधर देवी' भी कहा जाता है।

कुँवारी कन्या का मंदिर- देलवाड़ा के दक्षिण में वृक्षों एवं लताओं से आच्छादित प्रकृति के शांति निकेतन में कुँवारी कन्या का मंदिर है। इस मंदिर में कुँवारी कन्या की मूर्ति के सामने ही एक रसिया बालम की मूर्ति है।

ट्रेवर ताल- देलवाड़ा से ही कोई दो मील दूर उत्तर में राजस्थान सरकार के वन विभाग का वन्य जीव संरक्षण स्थल है, जहाँ प्राकृतिक संपदा से युक्त एक ट्रेवर ताल है। यहाँ वन्य जीव निर्भय होकर विचरते हैं। यह स्थल पर्वतों के मध्यस्थ होने के कारण रमणीक औऱ लुभावना है। ताल पर एक विश्राम गृह भी है। यह स्थान भ्रमणार्थियों के लिए आनंददायक औऱ पिकनिक की अच्छी जगह है।

गुरु शिखर- अरावली पर्वत शृंखला की यह सर्वोच्च चोटी आबू पर्वत की बस्तियों से कोई नौ मील की दूरी पर है। शिखर के लिए ओरिया नामक स्थान से लगभग तीन मील का पैदल मार्ग है। इस सर्वोच्च शिखर पर भगवान विष्णु के अवतार गुरु दत्तात्रेय एवं शिव का मंदिर है, जिसमें बड़े आकार का कलात्मक घंटा भी है। यहाँ दूसरी चोटी पर दत्तात्रेय की माता का मंदिर भी दर्शनीय है जहाँ १४वीं शताब्दी के धर्म सुधारक स्वामी रामानंद के चरण स्थापित हैं।

देलवाड़ा के जैन मंदिर- अनेक आकर्षणों के केंद्र आबू पर्वत में देलवाड़ा जैन मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। यहाँ आर्थिक पुरातत्व, शिल्प, वास्तुकला एवं पौराणिकता का ऐसा समन्वित रूप है, जिसे घंटों ही और निर्निमेष देखने पर भी आँखें नहीं थकतीं। यहाँ कला चातुर्य के साथ आध्यात्मिक आनंदानुभूतियों और आत्मानंद का जो सुख मन को मिलता है, वह दुनिया की माया से काफी हटकर है। देलवाड़ा के जैन मंदिर के कारण आबू पर्वत की ख्याति विश्व स्तर पर रही है। अन्य प्रमुख दर्शनीय स्थलों में नक्की झील एवं फव्वारा, सूर्यास्त स्थल, टॉड रॉक, श्री रघुनाथ मंदिर, धूलेश्वर मंदिर, नीलकंठ महादेव, अर्बुदा देवी का मंदिर, दूध बावड़ी, विमलसहि मंदिर, कुँवारी कन्या का मंदिर, भीम गुफ़ा, अचलगढ़ दुर्ग एवं मंदिर और गुरु शिखर आदि हैं।

अन्य दर्शनीय स्थल- आबू पर्वत के अन्य महत्वपूर्ण, दर्शनीय एवं ऐतिहासिक स्थलों में अचलेश्वर महादेव का मंदिर, नंदाकिनी कुंड, भर्तृहरि गुफा, अचलागढ़ एवं उसके जैन मंदिर लखचौरासी, राजभवन, संग्रहालय, पर्यटक विश्राम गृह, मधुमक्खी पालन केंद्र और राजाओं की कोठियाँ आदि हैं।

३० नवंबर २००९

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