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					ऐतिहासिक-बूँदी-की-सांस्कृतिक-यात्रा 
					
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					डॉ. चैतन्य सक्सेना 
  
					
					
 
                  अरावली पर्वत शृंखलाओं से घिरा 
					ऐतिहासिक शहर बूँदी राजस्थान के हाड़ौती अंचल की कला एवं 
					संस्कृति का शानदार दस्तावेज है। दुर्गम किला सुन्दर महल 
					कलात्मक बावड़ियों क्षत्रियों बाग बगीचे इस दस्तावेज की 
					खूबसूरत इबारत हैं किन्तु इस दस्तावेज का सबसे गौरवशाली अध्याय 
					है यहाँ की अद्भुत चित्र कला जिसने बूँदी को दुनिया भर में 
					मशहूर कर दिया है। यहाँ के महलों में भित्ति चित्रों का सुन्दर 
					संसार समाया हुआ है। महलों के साथ साथ पुराने घरों में भी 
					सुन्दर भित्ति चित्र आज देखे जा सकते हैं। इससे इस बात का 
					अंदाजा आसानी से हो जाता है कि चित्र कला राजपरिवार और राज 
					महलों तक ही सिमटी हुई नहीं थी बल्कि आम आदमी भी इस कला से 
					गहराई से जुड़ा था। सभी के मिले जुले प्रयासों का नतीजा है कि 
					बूँदी का नाम लिए बिना भारतीय चित्र कला का इतिहास अधूरा ही रह 
					जाता है। 
					 
					चित्र कला 
					का इतिहास  
					 
					कहा जाता है कि मीणा जाति के किसी बूँदी नामक सरदार ने इस शहर 
					को बसाया संस्थापक के नाम पर ही इसका नाम बूँदी पड़ा। बाद में 
					हाडा शासक राव देवा ने बूँदा को हराकर बूँदी पर अपना कब्ज़ा कर 
					लिया फिर इसे अपनी राजधानी बनाया। सन १९४७ में आज़ादी मिलने तक 
					बूँदी एक स्वतंत्र रियासत के रूप में कायम रहा। बूँदी आने वाले 
					पर्यटकों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण यहाँ की चित्र शाला है। 
					बूँदी की समृद्ध चित्र कला की एक झलक पर्यटक इस चित्र शाला में 
					देख सकते हैं। इस चित्र शाला का निर्माण राव उम्मेद सिंह ने सन 
					१९४७-७३ के अंतराल में करवाया था इसीलिए इसे उम्मीद महल के नाम 
					से ही जाना जाता है। राव उम्मेद सिंह के जीवन काल में चित्र 
					शाला में चित्रकारी का 
					काम पूरा नहीं हो सका। बाकि बचा काम उनके उत्तराधिकारी विशन 
					सिंह ने सन १७७३-१८२१ के अंतराल में पूरा करवाया था।  
					 
					चित्रशाला में सघन रूप से चित्रकारी की गई है। चित्रों की विषय 
					वस्तु में कृष्ण की रास लीला गोवर्धनकारी कृष्ण, गोपिकाओं के 
					वस्त्र हरण, राम विवाह, गज लक्ष्मी, आज दरबार, बूँदी का बाजार, 
					महल मंदिर बाग बगीचे, रागनियाँ, प्रेम प्रसंग, नायिकाएँ, हाथी 
					पर सवार आदि के चित्र शामिल हैं। 
					चित्रों को बनाने में फ्रेस्को तकनीक अपनाई गई है। दीवारों के 
					निचले हिस्से में इनग्रेविंग विधि से चित्रों के पेनल्स तैयार 
					किए गये हैं। चित्रों के चारों और बेलबूटे की किनारी है। 
					चित्रों में राजपूत एवम् मुगल दोनों जीवन शैलियों को दर्शन 
					होते हैं। कहीं कहीं पानदान एवं हुक्का भी दिखाई दे जाते हैं 
					महिलाओं की घुंघराली सर्पाकर गले को छूती लंबी लंबी लटें देखकर 
					लगता है चित्रकार के लिए नारी सौंदर्य का यह भी एक मानदंड रहा 
					होगा।  
					 
					बूँदी की 
					चित्रकला शैली  
					 
					
					 कला समीक्षकों ने बूँदी की चित्र 
					कला शैली को 'बूँदी कलम' का नाम दिया है। बूँदी कलम राजपूत 
					चित्र कला शैली की एक प्रमुख उप शैली है। इस शैली की अपनी कुछ 
					खासियत तो है ही साथ ही यह अपनी समकालीन मुगल शैली से भी 
					प्रभावित है। चित्र शाला की देख रेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण 
					विभाग द्वारा की जाती है। महल का बाकी का हिस्सा राज पारिवार 
					की निजी संपत्ति होने के कारण बंद रहता है। 
					 
                  महल के बंद हिस्से में भी सुंदर 
					भित्ति चित्र हैं पर पर्यटक चित्र शाला के ही चित्रों को देख 
					सकते हैं। चित्र शाला के अलावा तारा गढ़, रानी की बावड़ी, 
					शिकार बुर्ज, चौरासी खम्भों की छतरी, सुख निवास नवल सागर फूल 
					सागर एवम् क्षारबाग बूँदी के अन्य दर्शनीय स्थल हैं।  
					 
					बूँदी के 
					दार्शनीय महल  
					 
					लगभग पाँच सौ मी उँची पहाड़ी पर 
					बना तार गढ़ दूर से ही पर्यटकों को बूँदी की शान शौकत की कहानी 
					सुनाने लगता है। इस दुर्गम किले का निर्माण राव बार सिंह ने सन 
					१९३४ ई. में करवाया था। बाद में उसके उत्तराधिकारियों ने भी 
					समय समय पर किले, महलों का निर्माण करवाया। इनमें छतर महल, 
					बादल महल, रतन दौलत, दीवान ए आम कुछ खास इमारतें हैं। बादल 
					महल, रतन दौलत, दीवान ए आम, राव राजा रतन सिंह ने सन १६०७ -३१ 
					के अंतराल में बनवाए थे। छतर महल का निर्माण राव छत्रसाल ने सन 
					१६६० में करवाया था। इन महलों को भी सुंदर भित्ति चित्रों से 
					सजाया गया है। किले का सबसे बड़ा बुर्ज भीम बुर्ज कहलाता है। 
					किले के अन्दर एक काफी बड़ा तालाब भी है वैसे तो बूँदी में कई 
					पुरानी बावडियों एवं कुएँ हैं पर रानी जी की बावड़ी स्थापत्य 
					कला का एक अत्यधिक आकर्षक नमूना है। इस बावड़ी का निर्माण रानी 
					नथावती ने सन १६९९ में करवाया था। इसमें लगे सर्पाकार तोरणों 
					की कलात्मक पच्चीकारी देखते ही बनती है। बावड़ी की दीवारों में 
					विष्णु के अवतार मत्स्य, कच्छप वाराह नृसिंह वामन इन्द्र सूर्य 
					शिव पार्वती एवम् गज लक्ष्मी आदि देवी देवताओं की मूर्तियाँ 
					लगी हैं। बावड़ी की गहराई छयालीस मीटर है। 
                  चौरासी खंभों की 
					छतरी 
					 
                  चौरासी खंभों पर आधारित यह छतरी दो 
					मंज़िला है। बीच में शिवलिंग स्थापित है। छतरी की ऊपरी मंज़िल 
					पर चारों 
                  कोनों पर खंभों पर आधारित चार छोटी तथा बीच में बड़ी 
					छतरी है। शिखर गुंबदकार हैं। चबूतरे पर हाथी एवम् घुड़सवारों 
					की कतारबद्ध मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। क्षार बाग में बूँदी के 
					राजाओं तथा राज परिवारों के सदस्यों की छयासठ छतरियाँ हैं। 
					इनमें से कुछ संगमरमर की बनी हुई हैं जिनमें खूबसूरत पच्चीकारी 
					की गई है। सुख निवास नाम का महल सुख सागर के किनारे बना हुआ 
					है। राज परिवार के सदस्य गर्मी के मौसम में यहाँ आकर रहते थे। 
					आजकल यह सरकारी विश्राम गृह है। शिकार बुर्ज राजाओं के शिकार 
					खेलने के लिए बनाया गया था। नवल सागर एक कृत्रिम झील है जिसके 
					बीचों 
					 बीच वरुण देवता का मंदिर है। 
					 
					त्योहार और 
					सांस्कृतिक कार्यक्रम  
					 
					सावन तीज के त्योहार यहाँ बड़े 
					हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर शहर में बड़ी 
					भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती हैं। आठ दिन तक चलने वाला यह 
					त्योहार जन्माष्टमी के दिन समाप्त होता है। इस बीच तरह तरह के 
					सांस्कृतिक आयोजन किए जाते हैं। बूँदी आने वाले देशी विदेशी 
					पर्यटकों की संख्या में दिन प्रतिदिन बढ़ोत्तरी हो रही है। 
					पर्यटकों को ठहरने के लिए राजस्थान पर्यटन विकास निगम के होटल 
					के अतिरिक्त कुछ अच्छे होटल भी हैं। हाड़ौती कला एवम् संस्कृति 
					की इस मूल्यवान धरोहर को बड़े सहेजकर और संभलकर रखने की 
					आवश्यकता है ताकि बूँदी की अपनी विशेष सांस्कृतिक पहचान हमेशा 
					कायम रह सके।  |