फुलवारी

<

उड़ने वाली भेड़

>

हम एक खेल खेलते हैं। नानी, गीतू और मैं। खेल का नाम है चिड़िया उड़। नानी कहती हैं- "चिड़िया उड़।"
फिर हम भी कहते हैं- चिड़िया उड़ और चिड़िया उड़ा देते हैं। सचमुच की नहीं बस ऐसे ही हाथ हिलाकर।
नानी कहती हैं- बकरी उड़।
तब हम बकरी उड़ नहीं कहते। हम सिर्फ हँसते हैं और कहते हैं बकरी नहीं उड़ती।

चिड़िया, तोता, मैना, कौवा, ये सब पक्षी हैं। ये सब उड़ सकते हैं। बकरी, गाय, भेड़, कुत्ता, बिल्ली ये सब पशु हैं। ये सब नहीं उड़ सकते। फिर भी कुछ कहानियों में गाय उड़ती है, कुछ कहानियों में भेड़ उड़ती है। नानी कहती हैं कहानियों की बातें सच नहीं होतीं। मजे की होती हैं। इसीलिये वे कहानी सुनाती हैं। हाँ तो कल नानी ने एक उड़ने वाली भेड़ की कहानी सुनाई। और मैंने एक सुंदर सपना देखा कि मैं भेड़ पर सवार होकर उड़ रही हूँ।

क्या तुमने कभी सचमुच की भेड़ देखी है? मैंने एक दिन चिड़ियाघर में देखी थी। नानी कहती हैं कि सचमुच की ढेर-सी भेड़ें भारत में उनके गाँव में हैं। जब छुट्टी होगी तब हम उन्हें देखने जाएँगे। तब तक हम रोज -चिड़िया उड़- खेलते हैं, और याद रखते हैं कि भेड़ सिर्फ कहानियों में उड़ती हैं और हाँ सपने में भी।

- पूर्णिमा वर्मन

११ मार्च २०१३  

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।