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फुलवारी


अपना घर अपनी धरती
(नाटक)
-ललित सिंह पोखरिया

पात्र- दस बच्चे, जिसमें से 7 टेंपोवाला, वकील, डॉक्टर, मास्टर, हलवाई, चाटवाला, होटलवाला और सेक्शन ऑफ़िसर के रूप में अभिनय करेंगे और बाकी समूह व सूत्रधार का अभिनय करेंगे।
1

उल्लासमय लय-ताल बज रही है। उसमें नृत्यमय चाल चलते हुए बच्चों का एक समूह पार्क में प्रवेश करता है।

गीत: अपने शहर का सबसे प्यारा, सबसे प्यारा सबसे न्यारा
ये मोहल्ला ये मोहल्ला, ये मोहल्ला हमारा।
हल्ला हमारा। मोहल्ला हमारा।

बीच में एक पार्क है, बहुत बड़ा सा पार्क है
टूटा-फूटा, रूखा-सूखा, उखड़ा-सुखड़ा पार्क है।
चारों ओर मकान हैं, बड़े-बड़े मकान हैं
इन मकानों में रहने वाले-वकील, डाक्टर, मास्टर, अफसर, हलवाई
सभी बड़े सयान हैं, सयान हैं महान हैं, महान हैं सयान हैं
बातों की दुकान हैं।
तो अपने शहर का सबसे प्यारा, सबसे प्यारा सबसे न्यारा
ये मोहल्ला ये मोहल्ला, ये मोहल्ला हमारा,
हल्ला हमारा, मोहल्ला हमारा।

(लय-ताल उसी तरह बजती रहती है। उसी लय-ताल में बच्चे पार्क की सफाई करने लग जाते है।)

सभी:
एक:
दो:
तीन:
चार:
पांच:
छे:
सात:
हम बच्चे मन के सच्चे।
अक्सर निकलते हैं शहर के सफाई अभियान में।
इस पार्क को भी कई बार साफ कर चुके हैं।
इन लोगों को आगाह कर चुके हैं।
पर्यावरण का महत्व बता चुके है।
पर हम मोहल्ले से हार चुके हैं।
आप भी सोचते होंगे ये नादान बच्चे बड़े शैतान हैं
रहने वाले खराब क्यों होगे जब इतने अच्छे मकान हैं। चलिए हम आपसे कराते हैं इनका परिचय।
छे:
एक:
दो:
हमने सब पकड़ रखे हैं इनके रंग और ग।
चलो भई एक-एक करे शुरू हो जाओ।
कोई डाक्टर, कोई वकील, कोई अफसर, कोई मास्टर बन जाओ।

(तीसरा लड़का कूद कर मास्टर के रूप में एक हास्यमय मुद्रा बनाकर खड़ा हो जाता है। अपना परिचय देते हुए आगे बढ़ता है। उसी तरह अन्य लोग भी हास्यमय मुद्रा बनाकर अलग चरित्रों का रूप धरते हुए दर्शकों की ओर बढ़कर अपना परिचय देते है।)

तीन: इण्टर कालेज का मैं मास्टर
घर पर करता टयूशन जमकर
नाम मेरा है विद्या ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ धर।
चार: मैं डाक्टर डी. डी. बुलाबुला
दवा देता बुलाबुला
देखता हूं नाक, कान और गला
मैं डाक्टर डी. डी. बुलाबुला! बुलाबुला! बुलाबुला!
पांच: बड़े बाबू हूं मैं सेक्शन अफसर
कुर्सी तोड़ता रहता दिनभर
नाम है मेरा के. पी. फाइलान।
विभाग मेरा बहुत बड़ा है,
कहते उसको खींचतान।
छे: कौन इस शहर का सबसे बड़ा वकील
अरे मैं! एडवोकेट मियां दलील
बड़े बड़ों की बुद्धि में ठोंक देता मैं कील।
मैं मियां दलील! एडवोकेट मियां दलील!
सात: शहर की इज्ज़तदार हस्ती एक मैं, टेम्पोदार
कहलाता हूं खड़बड़ सिंह धुंआधार। टेम्पोदार
बीस टेम्पो का मैं मालिक - टेम्पोदार!

(परिचयों के बीच में बाकी बच्चे हंसते हुए और लय-ताल के साथ ताली बजाते हुए आनंद लेते रहते हैं)

एक:
दो:
अरे वो चाट किंग तो रह गये! कौन करेगा उनका रोल
(दौड़ते हुए) मैं करूंगा इसका रोल!
(हास्यात्मक अभिनय के साथ मंच के कोने में जाकर खड़ा हो जाता है। परिचय देते हुए आगे बढ़ता है)
चाट वाला: गोल गप्पे! छही-बड़े बेचना मेरा काम,
मशहूर मेरा चाट कार्नर,
नहीं मेरा कोई पार्टनर,
मेरे चाट कार्नर का नाम है चाटी राम बाटी राम
(सभी ताली बजाते हैं, चाटी राम बाटी राम- चाटी राम बाटी राम)
एक:
सभी:
एक:
अरे वो भी तो रह गये।
कौन?
बीच मोहल्ले में मैं होटल चलाउं
पार्टी कराउं मैं शादी कराउं
चुटकी में सारी दुनिया खिलाउं
पार्कों को बावर्ची खाना बना दूं
मैं हूं अलबेला कैटर्स-अलबेला कैटर्स
(बड़ी कॉमिक चाल में चलता है सभी लोग उसी प्रकार चलते हुए किल्लोल करते हैं, तभी सातवें बच्चे की नजर नेपथ्य में पड़ती है। वह चौंककर सभी साथियों को इशारे से रोकता है)
सात: कुछ लोग सुबह की सैर के लिए आ रहे हैं अगर उन्होंने देख लिया होगा कि हम उनकी नकल कर रहे हैं तो ठीक न होगा।
छ:
एक:
चलो निकल लो।
दर्शकों इनको गौर से देखिएगा ये आपको हूबहू वैसे ही दिखाई पड़ेंगे जैसा हमने आपको दिखाया।
दो: आपको ऐसी और भी बातें मालूम पड़ेंगी इनके बारे में कि आपको लगेगा कि हम सब सही कह रहे थे।
सभी: बाय-बाय, हम फिर आयेंगे।
(लाइन बनाकर एक-एक करके लय-ताल करते हुए प्रस्थान करते हैं)

(दूसरी ओर से दो बच्चे, डाक्टर, वकील प्रवेश करते हैं। दरअसल पहले दृश्य में जिस बच्चे ने जिस पात्र की नकल की थी वह वही पात्र बनकर आता है। सब लोग पार्क में टहलने, जागिंग करने और व्यायाम करने लगते हैं। सब बोलते-बोलते अपना काम करते हैं।)

वकील:
डाक्टर:
हा! हा! हा! डाक्टरों को भी टहलने की जरूरत पड़ गयी।
कल आपके यहां रात दो बजे तक लाइट जलती रही। बताइये ये कोई बात है? सरकार बिजली बचाने पर इतना जोर दे रही है, पर्यावरण के लिए खतरा पैदा हो गया है लेकिन आप लोग ?
वकील: दुनिया को नसीहतें देते हैं। आपने अपने बैठक में दो-दो ए.सी. क्यों लगाये हैं।
मोहल्ले के पर्यावरण को कितना धक्का पहुंच रहा है मालूम है।

(मास्टर विद्याधर का प्रवेश)

मास्टर: अरे! आप लोगों को मोहल्ले के पर्यावरण की पड़ी है, उधर ओजोन पर्त में छेद हो गया है उसकी किसी को चिंता है ?
डाक्टर:
मास्टर:
मास्टर साहब आप जानते भी हैं ये ओजोन है क्या बला!
मेरे जानने से क्या होगा? क्या ओजोन परत का छेद बंद हो जायेगा?

(के.पी. फाइलान का प्रवेश)

के.पी. फाइलान: जब जंगल के जंगल कटते जायेंगे, कारखाने जहर उगलते रहेंगे तो पूरी ओजोन परत गायब हो जायेगी। समझे आप लोग!

(अलबेला का प्रवेश, चाटीराम-बाटीराम का प्रवेश)

अलबेला:
चाटीराम:
सड़क के ट्रैफिक की भी तो कुछ कहिए!
सड़क तक क्यों जा रहे हैं अपने मोहल्ले में बीस-बीस टैम्पो चलाये जा रहे हैं। मकान धुंआ-धुंआ हुए जा रहे हैं।

(टेम्पोदार का प्रवेश)

टेम्पोदार: और होटलों से चाट के खामचों से जितना कचरा निकल रहा है वह सब बाहर की नालियों में सड़ रहा है। तरह-तरह की बीमारियां फैल रही हैं।
मास्टर: अरे ये सब छोटी-छोटी बातें है, यहां पूरी दुनिया पे मुसीबत आई हुई है।
टेम्पोदार: कैसी मुसीबत मास्टर जी?
मास्टर: ओजोन पर्त में छेद हो गया है मालूम है।
टेम्पोदार: ये तो बड़ी खतरनाक बात है कोई मिस्तरी विस्तरी लगवाइये उसको बंद करने के लिए।
अलबेला: प्लास्टिक व्लास्टिक न लगवाइयेगा लोहे की चादर से बंद करवाइयेगा।
चाटीराम: और क्या! लोहे से इतना मजबूत रहेगा कि चार-पांच साल तक हिलेगा नहीं।
अलबेला: हम तो कहते हैं पूरी पर्त बदलकर लोहे की चादर लगवा दीजिए। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी।
के.पी. फाइलान: अरे पर्यावरण की हालत इतनी खराब है बांस वैसे भी नही रहेगा जंगलों में।
चाटीराम: बासुरी बजाने भर को भी न बचेगा क्या?
मास्टर: नहीं-नहीं इतना तो विदेशों से इम्पोर्ट हो जायेगा।

(वकील, डाक्टर ठहाका लगाते है। तभी वहां सेनेटरी इंस्पेक्टर आ जाता है। सभी लोग किसी न किसी क्रियाकलाप-वाकिंग, जागिंग, योगा में व्यस्त हैं)

सेनेटरी इंस्पेक्टर: नमस्कार! आप सभी लोगों को नमस्कार। मैं सेनेटरी इंस्पेक्टर! आप लोगों की एप्लीकेशन आयी थी कि कूड़ा घर आप लोगों के घर से बहुत दूर हो गया है, कूड़ा ले जाने में परेशानी होती है लिहाजा पार्क में ही एक बड़ा सा कूड़ादान रखवा दिया जाये सो वो कूड़ादान रखवाया जा रहा है, आप लोग अब उसी में कूड़ा डालियेगा। हफ्ते में तीन दिन गाड़ी आयेगी और कूड़ा खाली कर ले जायेगी। अच्छा नमस्कार!
सभी:
वकील:
डाक्टर:
मास्टर:
के.पी. फाइलान:
अलबेला:
नमस्कार! (इंस्पेक्टर चला जाता है)
ये एप्लीकेशन किसने दी?
मैंने तो नहीं दी।
कोई क्यों ऐसी एप्लीकेशन देगा ?
किसको फुर्सत है, ऐसा ऊलजलूल काम करने की।
हमारे तो घर के पीछे खाली प्लाट है, हम उसी में कूड़ा डालते हैं। हम क्यों एप्लीकेशन देंगे भला!
चाटीराम: मेरा तो कूड़ा यानी बची चाट वाट सब कुत्ते चट कर जाते हैं। हमको तो कहीं भी कूड़े दान की जरूरत नहीं।
टेम्पोदार: हमको कौन सी जरूरत है। हमारे टेम्पो से तो धुआं निकलता है। धुआँ थोड़ी कूड़ेदान में डालेंगे।
डाक्टर: बताओ! सरकार को हो क्या गया है ? पार्क को कूड़ाघर बनाया जा रहा है।
वकील:
मास्टर:
मैं सरकार पर केस कर दूँगा।
अरे पार्क तो बच्चों के खेलने की जगह है। उनको स्वच्छ हवा मिलती है। उनका तन मन स्वस्थ बनता है।
के.पी. फाइलान:
अलबेला:
चाटीराम:
टेम्पोदार:
डाक्टर:
के.पी. फाइलान:
वकील: 
अलबेला:
टेम्पोदार:
मास्टर:
सब:
पूरे मोहल्ले का पर्यावरण स्वच्छ रहता है।
ये सरकार तो शरीफ आदमी का जीना मुश्किल कर रही है।
गरीब आदमी का जीना मुश्किल कर रही है।
हमको तो ख़्वामख़्वाह ये सब झेलना पड़ेगा।
पर्यावरण की किसी को चिन्ता नहीं।
उधर जंगल कटवाये जा रहे हैं।
इधर मकान बनाये जा रहे हैं।
उधर फ़ैक्टरी का धुआँ।
शहर में होटलों का कचरा! सड़ा हुआ खाना।
ओजोन परत में छेद करवाना।
हम जायें तो कहां जायें
पर्यावरण कहां है यहां
हम जायें तो जायें कहां
 (गाते हुए उदास बोझिल हृदयों से चले जाते हैं)
(पहले दूसरे लड़के सूत्रधार के रूप में आते हैं)
सूत्रधार एक :
सूत्रधार दो :
सूत्रधार एक :
सूत्रधार दो :
सूत्रधार एक :
ये कैसी बातें करते हैं-कैसे आंसू बहाते हैं।
इनके आगे तो घड़ियाल भी पानी भरते हैं।
इनको कुछ न करना पड़े, सब दूसरे ही करते रहें।
इनका बस चले तो ये हमेशा लेटे रहें।
आधी रात को ये बेचैन, बदल रहे करवटें!
शुरू हो रहा अब अगला सीन, देखिये इनकी हरकतें

(दोनों सूत्राधारों का तेजी से प्रस्थान, (सब लोग अपने-अपने घरों में सोते हुए दिखाई पड़ रहे है। लेकिन वे नींद में बेचैन दिखाई पड़ रहे हैं।)

मास्टर : चलो जो हुआ अच्छा हुआ!...........पार्क में कूड़ादान आ गया, आराम हो गया। फिर मेरे यहां कूड़ा होता ही कहां है ? टयूशन पढ़ने वाले बच्चे कापी फाड़-फाड़कर कागज की गेंद बनाकर खेलते हैं। वही जमा हो जाती है। उन गेंदों को तो मैं यहीं से निशाना लगाकर कूड़ेदान में फेंक सकता हूं।..........(फेंकने लगता है).ये ऐसे.....ये ऐसे.........ऐसे.......ऐसे.........ऐसे.....(खुश होकर सो जाता है)।
वकील : आ हा! कितना अच्छा लग रहा है, पार्क में कूड़ा घर आ गया। कूड़ा घर कितना दूर था। पीक दान उठाकर वहाँ ले जाना पड़ता था। अब तो मैं पान खाता रहूँगा। खिड़की से बाहर थूकता रहूँगा। सीधे कूड़ेदान में गिरेगा। ये ऐसे.....पिच्च......ये ऐसे .........पिच्च........(खुश होकर सो जाता है)
डाक्टर : आ हा हा।सबसे ज्यादा आराम मुझे हो गया। मास्टर और वकील जल रहे होंगे। डाक्टर हूं ना, सबसे ज्यादा गंदा कूड़ा तो मेरे ही यहां होता है। होता ही रहता है। रोज कूड़ाघर जाना पड़ता था। अब तो मौज ही मौज है। इधर मरीज की पट्टी हटाई! ये लपेटी! और ये बाहर पहुँचाई। ये कॉटन से घाव साफ किया और ये बाहर फेंका सीधे कूड़ेदान में। मेरा क्लीनिक चकाचक।
के.पी. फाइलान: वाह मजा आ गया! नगर पालिका ने ये बड़ा समझदारी का काम कर दिया। मेरे घर में तो अक्सर पार्टी होती रहती है। खाना-पीना, डिब्बा-बोतल। पता नहीं क्या! क्या? कूड़ा घर तक ले जाने में शर्म आती थी। अब........ये मारा........वो फेंका। बाहर जाने की की जरूरत ही नहीं...कितना आराम हो गया!
चाटीराम: आ! हा! हा! हा! भगवान ने मेरी सुन ली। बासी सामान लाकर क्यों जाऊँ कूड़ाघर! उठाऊँ भगोना और पलट दूं खिड़की के बाहर। सीधे जाकर गिरेगा कूड़ेदान में। आ! हा! हा! हा! (सो जाता है)
अलबेला: बहुत अच्छा हो गया। पीछे प्लॉट की ओर खुलने वाली खिड़की बंद करनी पड़ी। होटल का सड़ा खाना ढोना पड़ता था कूड़ेदान तक। एप्लीकेशन तो मैंने ही लगाई थी न। अब तो बस! सरा सड़ा खाना एक भगोने में डालकर घसिटवा दूँगा नौकरों से कूड़ेदान तक।
टेम्पोदार: मजा आ गया! पहले कूड़े दान का कूड़ा सड़क पर फैल जाता था। टेम्पो कूड़े की कीचड़ में फँस जाते थे। अब तो कूड़ा दान पार्क में ! मेरा रास्ता क्लीन! धड़ाधड़ दौड़ाऊंगा बीसों टेम्पो।

(सभी लोग अपनी-अपनी बात कहकर सो जाते है। )
(कुछ पल बाद वकील उठता है)

वकील : अरे मेरे घर के आगे कागज की गेंदे! मास्टर मैं मुकदमा ठोंक दूँगा!
डाक्टर : (आकर) अरे! मेरे घर के आगे सड़े हुए समोसे!...... चाटी राम मैं तुझे नकली इंजेक्शन लगा दूँगा।
फाइलान: छि:! छि:! छि:! मेरे घर के आगे गंदी रूई और पट्टियाँ! .........डाक्टर मैं सी. एम. ओ. से कहकर तेरा क्लिनिक बंद करवा दूँगा।
मास्टर: अरे.....खाली डिब्बे! खाली बोतलें! ....... बड़े बाबू मैं तुमको सस्पेंड करवा दूँगा।
चाटीराम: अरे! ताजे गोल गप्पों के ऊपर पान की पीक! ......वकील साब! मैं तुमको फांसी चढ़वा दूँगा। (सब आपस में लड़ पड़ते हैं)
(पुलिस का सायरन बजता है। सब अपनी-अपनी जगह आकर सो जाते हैं)सफाई इंस्पेक्टर और कर्मचारी आते हैं। कूड़े का ढ़ेर देखकर हक्के-बक्के रह जाते हैं।
इंस्पेक्टर: हे भगवान! ये क्या हो गया! पार्क के ऊपर कूड़े का पहाड़ कैसे बन गया ? क्या तुमने शहर भर का कूड़ा यहां डलवा दिया ?
कर्मचारी: नहीं साब! मैं ऐसा क्यों करूंगा ? मैं नौकरी से हाथ नही धोना चाहता! मुझे अपने बीबी बच्चे प्यारे हैं।
इंस्पेक्टर:
कर्मचारी:
तो फिर ऐसा कैसे हो गया ? इतने से घरों का इतना ज्यादा कूड़ा।
इन लोगों ने ऐसा कूड़ा डाला कि आस-पास वालों ने पूरे पार्क को कूड़ेदान समझ लिया। इसलिए एक ही महीने में कूड़े का पहाड़ बन गया।
इंस्पेक्टर:
कर्मचारी:
क्या तुम रोजाना कूड़ा नहीं हटवाते थे ?
कैसे हटवाता ? पहले दिन जब आया तो देखा कूड़ादान खाली का खाली। कूड़ा पूरे पार्क में पूरी गली में फैला हुआ था। झाड़ू लगवाता तो बहुत देर हो जाती और फिर मेरी नौकरी चली जाती।
इंस्पेक्टर:
कर्मचारी:
तुम लोगों को समझाते कि कूड़ादान में कूड़ा डालें।
 समझाया! बहुत समझाया! किसी की समझ में नहीं आया! उल्टा सबने मिलकर मुझे हड़काया।
इंस्पेक्टर : तो तुमने मुझे क्यों नहीं बतलाया ?
........ऊं! हूं! ये कैसी खतरनाक बदबू आ रही है।
कर्मचारी : हां ये तो महामारी की खबर ला रही है।

(दोनो मुंह पर कपड़ा बांधते हैं)
(तभी लोगों के रोने की आवाज आती है)

इंस्पेक्टर:
कर्मचारी:
अरे क्या ये कुत्ते भौंक रहे हैं।
नहीं! लगता है सियार रो रहे हैं।

(सूत्राधारों का प्रवेश)

सूत्रधार 1 व 2 : नहीं इस मोहल्ले में रहने वाले बीमार हो रहे हैं।

(तभी सीटी की आवाज आती है। साथ में लेफ्अ राइट लेफ्ट! लेफ्ट राइट लेफ्ट! लेफ्ट राइट लेफ्ट सुनायी पड़ता है। कुक्ष ही क्षणों में एक पागल मंच पर प्रकट होता है।)

पागल: न कुत्तो भौंक रहे हैं, न सियार रो रहे हैं।
इस मोहल्ले के लोग, बीमार हो रहे हैं।
इंस्पेक्टर:
पागल:
कर्मचारी:
पागल:
आप कौन हैं?
एक पागल!
आप पागल क्यों हुए?
जब समझदार आदमी पागलों जैसा काम करेंगे तो एक पागल ही उनको सही रास्ते पर ला सकता है, इसीलिए मैं पागल हुआ।
(सूत्रधारों का प्रवेश)
सूत्रधार एक:
सूत्रधार दो:
पागल:
जैसे लोहा लोहे को काटता है।
कांटे से कांटा निकलता है।
जैसे ज़हर, ज़हर को मार देता है। वैसे ही एक पागल सौ पागलों को ठीक कर देता है। (सीटी बजाता है)
(पागल के सीटी बजाने पर सारे लोग उठ बैठते हैं)
पागल: परेड! बिस्तर छोड़ेगा - बिस्तर छोड़!
(सभी लोग बिस्तर छोड़कर खड़े हो जाते है)
पागल: बाहर निकल!
(लोग माइम में घर से बाहर निकलने का अभिनय करते हैं)
पागल: पार्क में आ!
(मंच पर लोग इधर-उधर दौड़ते हुए पार्क में पहुंचने का अभिनय करते हैं ऐसे खड़े हो जाते हैं जाते हैं जैसे मिलेट्री के सिपाही एक लाइन में खड़े होते हैं)
पागल:
 
टोकरी उठा!
(सभी लोग टोकरी उठाने का अभिनय करते हैं)
कूड़ा भर।
(लोग टोकरी में कूड़ा भरने का अभिनय करते हैं)
सर पर रख!
(लोग सिर पर रखते हैं)
पीछे मुड़!
(सभी पीछे मुड़ते हैं)
तेज चल!
(लोग चलते हैं)
ट्रक में पलट!
(ट्रक में पलटते हैं)
वापस आ! (वापस आते है)

उल्लासपूर्वक लयताल में सूत्रधार एक और सूत्रधार दो आते हैं।

सूत्रधार एक:
सूत्रधार दो:
सूत्रधार एक:
सूत्रधार दो:
सूत्रधार एक:
सूत्रधार दो:
सूत्रधार एक:
सूत्रधार दो:
सूत्रधार एक:
सूत्रधार दो:
सूत्रधार एक:
तो देख लिया आपने! इन बड़े मकानों में रहने वाले महानों का करिश्मा!
धरती के पर्यावरण की रक्षा का दर्द कैसा ये दिखा रहे थे।
पर पल पलवो अपने घर के पर्यावरण को मिटा रहे थे।
वन की रक्षा, नदियों की रक्षा, रक्षा ओज़ोन परत की।
बातें हैं ये बड़ी-बड़ी पहली बात करो घर की।
बूंद बूंद से घड़ा भरेगा।
कदम कदम से शिखर नपेगा।
हम सुधरेंगे जग सुधरेगा।
सुधार अपने घर से ही शुरू होता है।
यही बात पर्यावरण पर लागू होती है।
पूरी धरती के पर्यावरण की रक्षा के लिए, अपने घर के पर्यावरण की रक्षा करनी होगी।
सूत्रधार दो: ऐसा तभी होगा जब हमारे भीतर इंसानी गुणों की रक्षा होगी।

इंसान और पर्यावरण का इतना गहरा नाता है
पेड़ नहीं हैं मात्र वनस्पति वह हमारे भ्राता हैं
(कोरस आकर पंक्तियाँ दोहराता है)

सभी: कुदरत की हर रचना के संग यही भाव जो लाता है
इंसान वही पर्यावरण का, संरक्षक बन पाता है।

1 जून 2007

समाप्त

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