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प्रकृति और पर्यावरण

 

नगर वानिकी एवं पर्यावरण
- डॉ. डी. एन. तिवारी


विश्व के सभी नगरों की जनसंख्याओं मे तेजी से वृद्धि हो रही है। सन् २००० तक पृथ्वी के आधे से अधिक निवासियों के नगरीय क्षेत्रों में बसने की संभावना है। इस शताब्दी में आबादी के घातीय रूप से बढ़ने के साथ नगरों की ओर भागने की प्रवृत्ति ने एक सैलाब का रूप धारण कर लिया है। विकासशील देशों में नगरीकरण में वृद्धि अत्यधिक नाटकीय ढंग से हुई है। यहाँ सन् १९५० के बाद से नगरवासियों की संख्या चार गुना अधिक हो गयी है।

विकासशील देशों में बढ़ी हुई आबादी का दो-तिहाई हिस्सा शहरों द्वारा समावेशित किया जा रहा है। सन् २००० तक जिन ६६ शहरों में चार करोड़ से अधिक आबादी होने की आशा है, उनमें से ५० शहर विकासशील देशों में हैं। नगरी विकास की गति में इस अभूतपूर्व वृद्धि ने वृक्षों और वनों के साथ मानव के संबंधों को अत्यधिक प्रभावित किया है। शहरों में निश्चय, आबादी अधिक होती है भोजन तथा ऊर्जा के उत्पादन में आत्म-निर्भरता की कमी होती है और अपने निवासियों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वे आमतौर पर वाणिज्य एवं उ़द्योग पर निर्भर रहते हैं। जब शहरों और कुल आबादी की वृद्धि गति धीमी थी, तब भोजन और विशेष ऊर्जा की आवश्यकता अपने आसपास के क्षेत्रों से पूरी की जा सकती थी।

व्यवहार में, हालाँकि नगरीय केंद्रों में कुछ ही पेड़ होते थे, तथापि वन अधिक दूर नहीं थे। प्रत्येक शहर में स्वस्थ नगर-वानिकी के सृजन के लिए राजनीतिक, सामाजिक और तकनीकी तीनो मोर्चो पर कारवाई करने और इसमें नागरिकों, कंपनियो, नगर निगमों, सरकारी एजेंसियों, राजनेताओं, गैर-सरकारी संगठनों तथा कुशल वनविदों को शामिल करने की आवश्यकता है। चूँकि नगर-वानिकी, एक विज्ञान के रूप में, अभी विकास की प्रथम अवस्था में है, अतः भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद ने बेहतर पारिस्थितिकी एवं वृक्षों के प्रति एक नयी और व्यावहारिक समझ विकसित करने के लिए अनुसंधान की शुरुआत की है।

नगर वानिकी

नगर वानिकी, वानिकी की एक विशेष शाखा है जिसका उद्देश्य नगरीय समाज के भौतिक, सामाजिक और आर्थिक कल्याण में वृक्षों के वर्तमान और संभावित योगदान को देखते हुए उनको अधिक संख्या में उगाना और उनका प्रबंधन करना है। अधिक विस्तृत रूप में नगर वानिकी मे एक बहु प्रबंधकीय तंत्र शामिल है, जिसके अंतर्गत नगरपालिका जल विभाजक, वन्यजीव आवास, बाह्य मनोरंजन सुविधाएँ, भू-दृश्य डिजाईन, नगरपालिका की बेकार वस्तुओं का पुनः चक्रण, सामान्य रूप में वृक्षों की देख-रेख तथा कच्चे माल के रूप में लकड़ी, रेशों का उत्पादन आदि निहित है।

नगर वानिकी में नगर केंद्र, उपनगरी क्षेत्र तथा नगरीय सीमांत अथवा ग्रामीण भूमियों सहित अंतरपृष्ठीय क्षेत्र में होने वाली क्रियाएँ शामिल हैं। वानिकी क्रियाओं में अंचल (जोन) के अनुसार महत्वपूर्ण अंतर आ सकता है। केंद्रीय क्षेत्रों मे महत्वपूर्ण नवीन नगर वानिकी प्रयासों की संभावना अधिकांश शहरों में अपेक्षाकृत सीमित है। अतः यहाँ मुख्यतया बहुत समय पहले लगाये गये पेड़ों के रखरखाव की अथवा उनकी जगह दूसरे पेड़ लगाने की आवश्यकता है।

नगर वानिकी और पर्यावरण

शहरी क्षेत्रों में तथा इसके आसपास कंकरीट भवनों, डामर तथा रोड़ी के साथ ही साथ परिवहन प्रणालियों तथा औद्य़ोगिक गतिविधियों की प्रधानता के फलस्वरूप मध्य तापमान उच्च (ताप द्वीप प्रभाव) रहता है। वायु अपेक्षाकृत अधिक शुष्क तथा प्रायः प्रदूषित, वर्षा कम तथा प्रभावशाली ढंग से अवशोषित तथा ग्रामीण पर्यावरण की अपेक्षा पर्यावरण सामान्यतः कोलाहलपूर्ण होता है।

वायु, कार्बनडाइऑक्साइड तथा कई अन्य प्रदूषकों और धूल से भर जाती है। इसके परिणामस्वरूप बड़े शहरों की, विशेष तौर पर दोषपूर्ण संवातित क्षेत्रों में, आबोहवा अपने आसपास के क्षेत्र से काफी अलग होती हे।

वृक्षों ने अनेक लाभदायक प्रभावों को सिद्ध किया है जैसे कि ये धूल कम करते हैं, कुछ विषाक्त पदार्थों को स्थित करते हैं तथा उच्च तापमान को कम करके सापेक्ष आर्द्रता को बढ़ाते हैं। फ्रैंकफर्ट में, केवल ५० से १०० मीटर चौड़ी हरित पट्टियों ने वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन द्वारा ३.५ डिग्री सेल्सियस तक तापमान कम करने का महत्वपूर्ण प्रभाव दिखाया तथा इसके द्वारा शहर केंद्र की तुलना में पाँच प्रतिशत तक सापेक्ष आर्द्रता को बढ़ाया। वृक्षों की अन्य महत्वपूर्ण भूमिका निम्न है:-

हवा की सफाई-

शहरी क्षेत्र में प्रदूषित वायु एक प्रमुख समस्या है। वनस्पति द्वारा वायुवाहित प्रदूषकों के निराकरण पर किये गये अनुसंधान दर्शाते हैं कि पौधे प्रदूषण के लिए प्रभावी कुंड (सिंक्स) हैं। वृक्ष सल्फरडाइऑक्साइड को अच्छी तरह से शोषित करते हैं। कीलर (१९७९) ने वृक्षों की एक रक्षा पट्टी के पीछे सीसे (लैड) में ८५ प्रतिशत की कमी का अनुमान लगाया है। मृदा, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, ओजोन तथा हाइड्रो कार्बनों सहित गैसीय प्रदूषकों को अवशोषित करती है। वृक्ष धूल रोकते हैं वृक्षों की ३० मीटर चौड़ी पट्टी का क्षेत्र लगभग सारी धूल को रोक देता है। वृक्ष प्रायः धुएँ और अप्रिय सुगंधों को अधिक प्रीतिकर सुगंधों के द्वारा अथवा वास्तव में उन्हें अवशोषित करके भी हटा देते हैं। वृक्ष वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन द्वारा शहरी वायु की सापेक्ष आर्द्रता को बढ़ाने में भी सहायता प्रदान करते हैं।

तापमान की तीव्रता में कमी

वृक्ष, झाड़ियाँ और अन्य वनस्पतियाँ सौर विकिरण को सुधारकर शहरी पर्यावरण में तापमान की तीव्रता को नियंत्रित करने में सहायता देती हैं। एक विशाल वृक्ष की छाया किसी भवन के तापमान को उसी सीमा तक कम कर सकती है जितना कि एक समान, किंतु छाया रहित भवन में ४२२० के जे पर १५ वातानुकूलक करेंगे। घरों के आसपास वृक्षारोपण द्वारा ऊर्जा की बचत शीतलन के लिए १० से ५० प्रतिशत तक तथा तापन के लिए ४ से २२ तक होती है।

कोलाहल में कमी करना

अधिकांश बड़े शहरों में अत्यधिक कोलाहल शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की क्षति पहुंचाते हैं। कोलाहल प्रदूषण का प्रभाव-क्षेत्र विशेष तौर पर दिल्ली जैसे बड़े शहरों में लगातार बढ़ रहा है। मई-जून के दौरान दिल्ली के २५ विभिन्न स्थानों, जिसमें संवेदनशील, आवासीय, व्यापारिक, तथा यातायात क्षेत्र शामिल हैं, में परिवेशी कोलाहल स्तर अनुमत मानकों से कहीं अधिक था। वृक्ष, कोलाहल का अवशोषण तथा परावर्तन कर अथवा नष्ट कर दोनों ही तरीके से सहायता कर सकते हैं।

सूक्ष्म-जलवायु को प्रभावित करना

सूक्ष्म-जलवायु तथा जलवायु पर वन परितंत्रों का प्रभाव, विशेष तौर पर कार्बन चक्र पर इनके प्रभाव नगण्य नहीं है। अत्यधिक वन निर्वनीकरण की दशा में ग्रीनहाउस गैसों के स्रोतों के रूप में अथवा ‘सिंक्स’ के रूप में हो सकते हैं, जबकि उचित वन संवर्धन तथा वन आवरण के विस्तार वर्धमान स्टॉक का सुधार और संरक्षण कर सकते हैं।

नगर वनों की जरूरतें क्या हैं?

शहरों की पारिस्थितिकी को सुधारने के लिए बड़े वृक्षों, अधिक वृक्षों तथा वृक्षों के उगने के लिए उचित दूरी की आवश्यकता है, लेकिन पिछले दशक से शहरों में छोटे पेड़ उगाने की प्रवृत्ति चल रही है, जिससे शहरी संरचना और वृक्षों में तालमेल बैठ जाता है। यदि वृक्षों से रास्तों को ठंडा रखना है, भवनों में छाया करनी है, सर्दियों की कठोर हवा के प्रभाव को कम करना है, तूफानी जल के बहाव को कम करना है तथा वायु की शुद्धता बढ़ानी है, तो उनका आकार और स्थान बढ़ाना होगा। यदि छोटे वृक्षों की ओर झुकाव जारी रहा तो शहर की सड़कों के किनारे गमलों में उगाये जाने वाले पैधों की कतारें लग जाएँगी जिनका शहरी परिस्थ्तिकी पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है।

नवरोपित वृक्षों का जीवनकाल बढ़ाने के मामले में पुरानी रोपण प्रविधियों को अनुपयुक्त समझा जाने लगा है तथा नयी प्रविधियों को अपनाया जा रहा है। अनुसंधानकर्ताओं को यह पता लग गया है कि वृक्ष की ९० प्रतिशत जड़ें मृदा में ३० से. मी. गहराई तक होती हैं। मृदा जितनी अधिक कसी हुई होगी, जड़ें सतह के उतने ही नजदीक तक उगेंगी। नयी रोपण प्रविधि में सभी प्रकार के रोपणों में अधिक जड़ीय क्षेत्र पर जोर दिया जाता है, वृक्षों के लिए इसका तात्पर्य है उथले किंतु चौड़े रोपण क्षेत्रों को तैयार करना, जो जड़ पिंड के बराबर गहरे तथा तीन से पाँच गुना चौड़े हों। शहरों में गड्ढों में रोपण करने पर वृक्षों को जीवित रखने के लिए व्यापक अभियांत्रिकी तरीके अपनाने होते हैं। उदाहरण के लिए जिओटेकसाइल्स अथवा प्लास्टिक शीटों पर फ्लोटिंग वाक द्वारा मार्गों के अंदर जगह बनानी पड़ती है। ये नयी तकनीकें पुरानी तकनीकों से महँगी पड़ती हैं लेकिन वृक्ष अधिक समय तक जीवित रहते हैं तथा प्राणियों के लिए पर्यावरण सुधारने में अधिक योगदान देते हैं।

बाधाएँ तथा उन्हें दूर करने की आवश्यकता-

प्रायः सभी शहरी क्षेत्रों में वानिकी विकास के मार्ग में आनेवाली मुख्य बाधाएँ इस प्रकार हैं -

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अपर्याप्त धनराशि - योजनाबद्ध वृक्ष प्रबंधन करने तथा वानिकी कार्यक्रमों को ओर अधिक प्रभावशाली ढंग से चलाने में धन की कमी मुख्य बाधा है। मुद्रा स्फीति तीव्र गति से बढ़ रही है और संसाधनों की कमी होती जा रही है। अतः शहरी क्षेत्रों के वानिकी प्रयासों में इस बात का अधिक से अधिक प्रदर्शन करना होगा कि वानिकी पर लागत कम और लाभ अधिक हो। इसके लिए शहरी क्षेत्रों में वानिकी प्रयासों के सकारात्मक परिणामों पर गुणात्मक अनुसंधान करने की अत्यधिक आवश्यकता है।

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कम प्राथमिकता - राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर शहरी क्षेत्रों में वानिकी को कम महत्व दिये जाने की प्रवृत्ति है और अन्य कार्यक्रमों को प्राथमिकता देते हुए, इसे आसानी से स्थगित किया जाता है। शहरी वातावरण में वृक्षों के आर्थिक, सामाजिक और जैव विज्ञानीय लाभों के संबंध में अपर्याप्त ज्ञान, सूचना, जानकारी और सूझबूझ की कमी के कारण वानिकी को पर्याप्त महत्व नहीं दिया जाता हैं यहां तक कि आज भी नगर वानिकी को सजावटी, सौंदर्यपरक, सुख सुविधा अथवा विलासिता की चीज समझा जाता है तथा इसके लिए अधिक प्रयास करना आवश्यक नहीं समझा जाता। राजनीतिक इच्छाशक्ति एवं सहायता के बिना नगर वानिकी पर उचित ध्यान दिया जाना असंभव है।

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जिम्मेदारियों का बिखराव - शहरी वृक्ष तथा वनों के प्रबंधन का उत्तरदायित्व प्रायः विभिन्न प्रशासनिक संरचनाओं में बँटा होता है जिनकी जिम्मेदारियाँ प्रतिस्पर्द्धात्मक तथा कभी-कभी प्रतिकूलात्मक भी होती हैं। सौंदर्यपरक दृष्टिकोण पर मुख्य ध्यान केंद्रित होने के कारण पार्क मनोरंजनात्मक विभागों-जैसे अभिकरणों को सामान्यतः मुख्य जिम्मेदारी सौंप दी जाती है, लेकिन लोक निर्माण अभिकरणों, उपयोगिता कंपनियों, पर्यावरणीय सुरक्षा अभिकरणों, फलोद्यान विभागों तथा राष्ट्रीय वानिकी विभागों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार को मुख्य अभिकरण बनाने की आवश्यकता है और अपर्याप्त वित्तीय तथा मानव संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग के लिए विभिन्न क्षेत्रों में समन्वयन स्थापित करना होगा।

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भूमि की कमी - नगर वानिकी के प्रयासों में मुख्य बाधा भूमि की सीमित मात्रा में उपलब्धता है। रोपण के लिए उपयुक्त भूमि की उपलब्धता और साथ ही उसके स्वामित्व और काश्तकारी आदि की दृष्टि से शहरी स्थल अत्यंत जटिल होते हैं।

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पर्यावरणीय दबाव - सामान्यतः शहरी पर्यावरण वृक्षों की वृद्धि एवं पोषण के लिए अधिक उपयुक्त नहीं होता है। पर्यावरणीय दबाव कई वृक्ष प्रजातियों की शक्ति को कम कर देता है और बीमारियों तथा कीटनाशकों का प्रतिरोध करने के लिए उन्हें अशक्त कर देता है। शहरी क्षेत्रों में पेड़ों को कम कार्बनिक पदार्थों वाली पोषक तत्वों के अभाव तथा आर्द्रता वाली कमजोर मृदाओं एवं वायु और जल-प्रदूषण जैसी विपरीत परिस्थितियों में उनका सामना करते हुए अपने को स्थापित करना पड़ता है। वानिकी प्रजाति चयन में इन बाधाओं से पार पाने को सर्वोच्च महत्व दिया जाता है।

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प्रशिक्षण तथा विस्तार का अभाव - खासकर विकासशील देशों में शहरी वानिकी पर प्रशिक्षण और शिक्षा के लिए अपेक्षाकृत कम अवसर हैं, जबकि उचित अनुदेशात्मक सामग्री की कमी भी एक अन्य बाधा है। सामान्यतः यह कहा जा सकता है कि नगर वानिकी में विस्तार कार्यक्रम अत्यंत कमजोर हैं नागरिकों खासकर गरीबों तक पहुँचने और उनकी भागीदारी प्राप्त करने के लिए व्यवहारिक उपाय अपनाने होंगे।

नगर वानिकी, वनविदों तथा जन सामान्य के लिए अपेक्षाकृत एक नयी अवधारणा है। यह एक ऐसी अवधारणा है, जो अभी विकास की स्थिति में है। तेजी से शहरीकरण की प्रवृत्त देशों में, यदि हम यह चाहते हैं कि लोगों का जीवन स्तर इतना अधिक न गिर जाए कि उसे पुनर्स्थापित करना हमारे वश में ही न रहे, तो हमें नगर वानिकी कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने के लिए अधिक-से-अधिक प्रयास करने होंगे।

गरीबी उन्मूलन के लिए विशेष रूप से प्रभावशाली तथा आर्थिक दृष्टि से उपयोगी होने के साथ-साथ पर्यावरणीय सुधार और सौंदर्यपरक के रूप में भी बहुउद्देशीय नगर वानिकी की मान्यताएँ बहुत पहले से ही स्थापित हो चुकी हैं। हमें नगर वानिकी के क्रिया-कलापों को नियोजित और कार्यान्वित करने के लिए, सहायतार्थ हाथ बढ़ाने वाले अभिकरणों को शामिल कर, व्यावसायिक संगठनों की स्थापना करनी होगी।

४ अगस्त २०१४

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