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प्रकृति और पर्यावरण

 

साँप हमारा मित्र है
- डॉ. परशुराम शुक्ल


साँप का नाम सुनते ही भय से हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं और यदि कहीं पर भी हमें साँप दिखायी पड़ जाता है तो हम या तो डरकर भाग खड़े होते हैं या फिर उसे मार डालने का प्रयास करते हैं। वास्तव में हम यह सब अज्ञानतावश करते हैं। साँप के संबंध में हमारा ज्ञान बहुत सीमित है। इतना ही नहीं हमारे देश में साँप के संबंध में प्रचलित अंधविश्वासों के कारण इतनी भ्रांतियाँ उत्पन्न हो गयी हैं कि हम साँप को दोस्त के स्थान पर अपना दुश्मन मान बैठे है।

साँप के संबंध में यह कहा जाता है कि साँप बदला लेता है। यदि नागिन को मार दो तो नाग बदला लेता है और यदि नाग को मार दो तो नागिन बदला लेती है। यह सत्य नहीं है। बदला लेने की प्रवृत्ति केवल मानव में होती है, अन्य प्राणियों में नहीं। इसी तरह सुमेरी सर्प के विषय में कहा जाता है कि उसके चाटने से कोढ़ हो जाता है तथा लता सर्प अपनी पैनी नाक से शत्रु की आँखें निकाल लेता है। ये दोनों बातें भी भ्रामक हैं। भारतीय लोगों में ये धारणाएँ प्रचलित हैं कि सर्प चंदन के पेड़ पर लिपटे रहते हैं, कुछ सर्प दो मुँहवाले होते हैं, गर्भवती स्त्री की छाया पड़ने से सर्प अंधे हो जाते हैं, ये दूध पीते हैं, संगीत सुनते हैं, अपने शिकार को जकड़कर उसकी हड्डियाँ तोड़ देते हैं एवं साँप के काटने का इलाज तंत्र-मंत्र के द्वारा किया जा सकता है। ये सभी तथ्य भ्रामक तथा असत्य हैं। साँप में विष अवश्य होता है, किंतु सभी साँपों में नहीं। आइए ! साँपों के संबंध में वास्तविक जानकारी प्राप्त करने के लिए इन पर विस्तार से चर्चा करें।

साँप और भ्रांतियाँ

साँप जमीन पर, वृक्षों पर तथा पानी में रहने वाला जीव है। यह ध्रुवीय प्रदेशों को छोड़कर सभी स्थानों पर पाया जाता है। विश्व में साँपों की लगभग तीन हजार जातियाँ पायी जाती हैं। इनमें से दो हजार चार सौ जातियों का अध्ययन करने के बाद निष्कर्ष निकला है कि इनकी मात्र दो सौ जातियाँ ही ऐसी हैं जो विषैली हैं। विषैले साँपों में ऑस्ट्रेलिया का टाइगर स्नेक सर्वाधिक विषैला सर्प माना जाता है। भारत में लगभग दो सौ पचास जातियों के सर्प पाये जाते हैं। इनमें से चौवन जातियों के साँपों में विष होता है, किंतु ये मानव के लिए घातक नहीं हैं। अधिकांश विषैले सर्प दुर्लभ हैं और कभी-कभी ही दिखायी पड़ते हैं। पट्टीदार सर्प इसका उदाहरण है। नागराज या किंग कोबरा भी विषैला साँप है, किंतु यह मानव से दूर रहना ही पसंद करता है। विषैले साँपों की बहुत-सी जातियाँ ऐसी है, जिनके विषदंत पीछे की ओर मुड़े रहते हैं, अतः इनके काटने से मानव के शरीर में इतना विष नहीं पहुँच पाता कि इससे उसकी मृत्यु हो जाए। अधिकांश विषैले सर्पों का विष इतना कम घातक होता है कि वह केवल चूहों, चिड़ियों-जैसे छोटे जीवों पर ही प्रभाव डालता है। मानव पर इस विष का कोई घातक प्रभाव नहीं पड़ता।

भारत में विषैले साँपों में चार जातियों के सर्प ऐसे हैं जो अत्यंत विषैले होते हैं। से निरंतर मानव के साहचर्य में आते रहते हैं तथा मानव के लिए घातक सिद्ध होते हैं। ये हैं- नाग (कोबरा), दबोइया (रसैलाई वाइपर), फुरसा (स्केल्ड वाइपर) तथा करैत। इनमें से करैत सर्वाधिक विषैला सर्प माना जाता है। विषैले सर्प के काटने पर विष का प्रभाव कितना पड़ेगा? यह दो बातों पर निर्भर करता है- यदि साँप ने कुछ समय पूर्व किसी शिकार या व्यक्ति को काटा है तो विष का प्रभाव कम पड़ेगा, क्योंकि उसका अधिकांश विष पहली बार काटने में निकल चुका होता है। इसी तरह यदि साँप चेतावनी देने के लिए काटता है तो सामान्यतया विष नहीं छोड़ता या बहुत कम विष छोड़ता है। साँप के विष का मानव पर कितना प्रभाव पड़ेगा? यह भी दो बातों पर निर्भर करता है। पहला- विष की मात्रा तथा दूसरा- विष की तेजी। यदि साँप के काटने पर मानव के शरीर में कम विष प्रविष्ट हो पाया है या विष अधिक घातक नहीं है तो उसका प्रभाव बहुत कम होगा, किंतु यदि विष की मात्रा अधिक है या अत्यंत घातक है तो स्थिति खतरनाक भी हो सकती है। ऐसी दशा में पीड़ित व्यक्ति की प्राथमिक चिकित्सा करके उसे शीघ्र अस्पताल ले जाना चाहिए। आजकल साँप के विष (वेनम) से ही साँप के काटने की ऐसी दवाएँ तैयार की जा चुकी हैं जो मानव की रक्षा करने में सक्षम हैं। अलग-अलग प्रकार के साँपों के विष का प्रभाव भी अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए कोबरा और करैत का विष मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है, जबकि वाइपर के काटने पर हृदय और रक्त प्रवाह प्रभावित होता है। विषैले सर्प के काटने पर यदि व्यक्ति को समय पर अस्पताल न पहुँचाया जाए तो एक घंटे से बारह घंटे के मध्य उसकी मृत्यु हो सकती है।


सबसे विषैला साँप अमेरिका में

साँपों की शारीरिक संरचना, आयु, लंबाई, वजन, विष की मात्रा तथा विष की तेजी आदि अलग-अलग जातियों में अलग-अलग होती है। विश्व के सबसे बड़े सर्पों में इंडोनेशिया, फिलिपींस तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में पाये जाने वाले धारीदार अजगर तथा दक्षिणी अमेरिका के एंडीज पर्वत पर पाये जाने वाले एनाकोंडा के नाम आते हैं। सन् १९१२ में मलाया द्वीप समूह में सेलेबीज के उत्तरी तट पर एक अजगर मारा गया था, जिसकी लंबाई १० मीटर थी। एनाकोंडा की लंबाई तो धारीदार सर्प के बराबर ही होती है, किंतु इसका वजन धारीदार सर्प से अधिक होता है। सन् १९६० में ब्राजील में एक मादा एनाकोंडा का शिकार किया गया था, इसकी लंबाई ८.४५ मीटर तथा वजन लगभग २३० किलोग्राम था। कुछ जीव वैज्ञानिक एनाकोंडा को विश्व का सबसे लंबा सर्प मानते हैं। उनका मत है कि इसकी लंबाई ११ मीटर तक हो सकती है।

विषैले सर्पों में सर्वाधिक भारी साँप अमेरिका के दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्रों में पाया जाने वाला चितकबरी पीठ का रैटल स्नेक है। इसकी सामान्य लंबाई २.३६ मीटर तथा वजन १५ किलोग्राम तक होता है। दूसरे स्थान पर नागराज (किंग कोबरा) का नाम आता है। सन् १९७३ में न्यूयार्क चिड़ियाघर में ४.३९ मीटर लंबे नागराज को मरने के बाद तौला गया तो इसका वजन १२.७५ किलोग्राम निकला।

सबसे जहरीला साँप : इनलैंड

अलग-अलग जातियों के साँपों की शारीरिक संरचना अलग-अलग होती है। ये दस सेंटीमीटर से लेकर दस मीटर तक के हो सकते हैं। साँपों की त्वचा बड़ी स्वच्छ, चिकनी, चमकदार तथा सफेद, हरे, पीले, लाल, काले या कई रंगों की होती है, जो देखने में बड़ी सुंदर और आकर्षक लगती है। साँप के कान नहीं होते, किंतु इसके शरीर में ध्वनि तरंगों को ग्रहण करने की अद्भुत क्षमता होती है। यही कारण है कि यह जमीन पर हलकी-सी आहट होने पर भी सतर्क हो जाता है। साँप की आँखों पर पलकें नहीं होतीं, अतः सोते समय भी इसकी आँखें खुली दिखायी देती हैं। साँप के दाँत नहीं होते, किंतु कुछ साँपों के ऊपर के जबड़े में विषदंत होते हैं जो भीतर से खोखले होते हैं। अफरीका में साँपों की कुछ ऐसी जातियाँ पायी जाती हैं जो आठ-दस फुट की दूरी से ही अपने शिकार पर निशाना लगाकर विष की बौछार करती हैं और उसे अंधा कर देती हैं। विश्व का सर्वाधिक विषैला साँप तिमार सागर की एशमोर रीफ के पास पाया जाने वाला समुद्री साँप (हाइड्रोफिस बेलचिरी) है। इसका जहर ऑस्ट्रेलिया के तायपान नामक सर्प के जहर से सौ गुना तेज होता है। भूमि पर विचरण करने वाले सर्पों में सबसे जहरीला सर्प इनलैंड तायपान होता है। इसकी लंबाई लगभग दो मीटर होती है तथा यह कींसलैंड के पास चैनल काउंटी में पाया जाता है। इनलैंड तायपान का जहर दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया में पाये जाने वाले साँप से भी नौ गुना तेज होता है। इस प्रकार के एक साँप से एक बार ११० मिलीग्राम विष प्राप्त हुआ था, जो २,१७००० व्यक्तियों को मारने के लिए पर्याप्त था। विश्व में सर्पों के काटने से सर्वाधिक व्यक्ति श्रीलंका में मरते हैं। एक अनुमान के अनुसार यहाँ प्रतिवर्ष एक हजार व्यक्तियों की मृत्यु साँपों के काटने से होती है।

सबसे लंबा विषैला साँप : नागराज

विषैले सर्पों में दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में पाया जाने वाला नागराज (किंग कोबरा) विश्व का सबसे लंबा विषैला सर्प है। अप्रैल १९७३ में मलाया में पकड़े गये एक किंग कोबरा की लंबाई ५.७ मीटर नापी गयी थी। विश्व का सबसे छोटा विषैला सर्प, चित्तीदार बोना एडर है। इसकी अधिकतम लंबाई २३ सेंटीमीटर तक होती है तथा यह नामीबिया (अफ्रीका) में पाया जाता है।

जैसा कि अभी-अभी बताया जा चुका है कि साँपों के दाँत नहीं होते, किंतु कुछ साँपों के विषदंत होते हैं। इन्हीं विषदंतों से ये विष छोड़ते हैं। विश्व में सबसे बड़े विषदंत अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाये जाने वाले गैबून वाइपर नामक सर्प के होते हैं। गैबून वाइपर की लंबाई १.८ मीटर तक तथा इसके विषदंतों की लंबाई ५ सेंटीमीटर तक हो सकती है। गैबून वाइपर बड़ा क्रोधी होता है तथा कभी-कभी अपने ही विष से अपने आपको मार डालता है। १२ फरवरी, १९६३ को फिलाडेल्फिया के चिड़ियाघर में एक गैबून वाइपर ने अपने ही दाँतों से अपने को डसकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी। सर्पों में सर्वाधिक शक्तिशाली और विशालकाय अजगर होता है, किंतु किसी भी प्रकार के अजगर के विषदंत नहीं होते।

सबसे तेज भागने वाला साँप- माल्बा

साँप की लहराती हुई चाल को देखने से ऐसा लगता है- जैसे यह बहुत तेज चलने वाला प्राणी हो, किंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। साँप की चाल छह किलोमीटर प्रति घंटा से लेकर नौ किलोमीटर प्रति घंटा के मध्य होती है। अफ्रीका में पाया जाने वाला काले रंग का छरहरे शरीर वाला माल्बा सर्प विश्व का सबसे तेज गति से भागने वाला सर्प है। यह सर्प समतल भूमि पर १६ से १९ किलोमीटर प्रति घंटा की गति से भाग सकता है। साँप के पैर नहीं होते। यह अपनी रीढ़ की हड्डी की कशेरुकाओं की सहायता से चलता है। सामान्यतया एक साँप की रीढ़ की हड्डी में तीन-चार सौ कशेरुकाएँ होती है। तथा प्रत्येक कशेरुका लंबी, मुड़ी और लचकदार पसलियों के एक-एक जोड़ से संबद्ध होती है। केवल पहली दो-तीन कशेरुकाओं के साथ कोई पसली नहीं जुड़ी होती। साँप की पसलियों का एक सिरा कशेरुकाओं से जुड़ा होता है और दूसरा सिरा स्वतंत्र होता है, जिससे पसलियाँ आगे-पीछे गति कर सकती हैं। साँप का चलना पसलियों की गति से ही संभव होता है। चलते समय साँप के शरीर की एक तरफ की पसलियाँ आगे बढ़ जाती हैं और शल्कों के किनारे आधार को पकड़ लेते हैं। इसके बाद जब दूसरी तरफ की पसलियाँ उनके सामने आती हैं तो शरीर का पिछला भाग आगे बढ़ जाता है और अगला भाग पिछले भाग के दबाव से आगे बढ़ जाता है। इस प्रकार सामान्यतया खींचने और धकेलने की प्रक्रिया से ही साँप आगे बढ़ता है, किंतु कुछ जातियों के साँपों को अलग ढंग से भी चलते हुए देखा गया है।

सफाई पसंद जीव- साँप

साँप अत्यंत सफाई पसंद जीव है। यह मल विसर्जन करते समय अपनी पूँछ को इस प्रकार ऊपर उठा लेता है कि इसका शरीर गंदा न होने पाये। इसके साथ ही साँप घंटों पानी में नहाने का भी शौकीन होता है। अधिकांश साँप जीवनभर केंचुल बदलते हैं। इससे इनकी त्वचा नये रंग-रूप के साथ चिकनी और चमकदार निकल आती है। साँप के केंचुल बदलने का समय इसकी आयु, आहार और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

साँप एक मांसाहारी प्राणी है, किंतु भोजन में इसकी कोई विशेष रुचि नहीं होती और इसे जो कुछ भी मिलता है, उसी को खाकर संतोष कर लेता है। इसके दाँत नहीं होते, अतः यह शिकार को निगलकर खाता है। अजगर-जैसा विशाल साँप जंगली सुअर, चीतल तथा हिरन- जैसे बड़े जीवों को भी खा जाता है, जबकि सामान्य साँप चूहों, चिड़ियों, मेंढ़कों, छिपकलियों तथा इसी प्रकार के छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़ों को खाता है। यह सामान्यतया शिकार को खाने के पूर्व काफी दूर से उसका पीछा करता है। बहुत-से-साँप अपने से छोटे साँपों का भी भक्षण करते हैं। साँपों के संबंध में यह भ्रमपूर्ण धारणा है कि ये दूध पीते हैं। साँप स्तनपायी नहीं होते, अतः इनके दूध पीने का प्रश्न ही नहीं उठता। हाँ, कभी-कभी ये पक्षियों या अन्य जीव-जंतुओं के अंडे अवश्य खा जाते हैं। किसी समय भारत में एक विशेष जाति का साँप पाया जाता था, जो केवल अंडे ही खाता था। इसके मुँह में एक नुकीला काँटा होता था, जिसकी सहायता से इसके मुँह के भीतर जाते ही अंडा टूट जाता था। अंडा टूटने के बाद यह भीतर का भाग खा जाता था और छिलके उगल देता था। साँप या अजगर अपने मुँह से भी बहुत बड़े आकार का शिकार सरलता से निगल जाते हैं। इसका कारण इनके मुँह तथा पूरे शरीर की त्वचा की नमनीयता है। इनकी खाल इस प्रकार की बनी होती है कि बड़े से बड़ा शिकार निगलते समय बिना किसी हानि के काफी फैल जाती है। साँप के पेट में विशेष प्रकार का द्रव पदार्थ होता है, जिसकी सहायता से यह कठोर-से-कठोर हड्डियों को भी हजम कर जाता है। इसके साथ ही इसका अपना विष भी शिकार को पचाने में विशेष सहयोग प्रदान करता है।

साँपों के संबंध में यह भ्रमपूर्ण धारणा प्रचलित है कि एक जाति के नर साँप दूसरी जाति की मादाओं के साथ समागम करते हैं। वास्तव में ऐसा नहीं है। एक जाति का नर साँप केवल अपनी जाति की मादा के साथ ही समागम करता है। समागम के समय कुछ सर्प पूँछ के बल सीधे खड़े हो जाते हैं और एक-दूसरे से गुंथ जाते हैं। इस समय उनके मुँह एक-दूसरे से गुंथ जाते हैं। प्रजनन के बाद कुछ जातियों की मादाएँ अंडे देती हैं और कुछ जातियों की मादाएँ बच्चे देती हैं। इनकी संख्या साठ से सौ तक होती है। उदाहरण के लिए- कोबरा और करैत मादा अंडे देती है, जबकि सैंडबोआस, वाइन स्नैक्स तथा सभी प्रकार की वाइपर मादाएँ बच्चे देती हैं। साँप की औसत आयु दस से बीस वर्ष तक होती है, किंतु कुछ जातियों के सर्प तीस वर्ष तक जीवित रहते हैं। सर्पों की अधिकतम आयु का विश्व कीर्तिमान एक साधारण अजगर का है। यह अजगर ४० वर्ष, ३ महीने, १४ दिन जीवित रहा था।

साँप : मित्र है शत्रु नहीं

मानव का सबसे बड़ा शत्रु है- चूहा। चूहों का सबसे बड़ा शत्रु साँप है। साँप चूहों को खाकर मानव पर उपकार करता है। यदि विश्व में साँप न होते तो आज सारी धरती पर चूहों का राज्य होता। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि साँप मानव का मित्र है- शत्रु नहीं। साँप कभी भी बदला लेने के लिए या बिना किसी कारण के मनुष्य को नहीं काटता। यह केवल शिकार के लिए या आत्म-रक्षा के लिए ही काटता है। साँप सदैव से ही मानव के लिए उपयोगी रहे हैं। विख्यात भारतीय चिकित्सक चरक के काल में जलोदर के उपचार के लिए साँप के विष का प्रयोग किया जाता था। आयुर्वेद में भी आमवात, क्षय, कोढ़ तथा इसी प्रकार के अन्य अनेक असाध्य रोगों की चिकित्सा के लिए साँप के विष से औषधियाँ तैयार करने के प्रमाण मिलते हैं। आधुनिक चिकित्सक भी रक्त के थक्कों को समाप्त करने के लिए एवर्टिन का प्रयोग करते है, जो साँप के विष से ही तैयार किया जाता है।

१३ अप्रैल २०१५

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