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                       पंडित मदन 
						मोहन मालवीय जी को एक बार एक मौलवी ने अपना वकील बनाया। 
						मुकदमे में कुछ अरबी पुस्तकों से न्यायालय के फैसलों के 
						उद्धरण देने थे जिन्हें मालवीय जी ने अपने हाथ से नागरी 
						लिपि में लिख लिया था। अदालत में विरोधी पक्ष जब ये उद्धरण 
						देने लगा तो वह शुद्ध उच्चारण नहीं कर पा रहा था।  
						 
						मालवीय जी ने जज से कहा कि यह अशुद्ध पढ़ा जा रहा है। अगर 
						आप इजाज़त दें तो मैं इनको ठीक से पढ़ दूं। जज की अनुमति 
						मिलते ही उन्होंने अपने हाथ का लिखा कागज़ निकाल कर बिना 
						अटके शुद्ध ढंग से उन अरबी में लिखे गये नज़ीरों को पढ़ कर 
						सुना दिया। 
						 
						नागरी की इस शक्ति और क्षमता को देखकर सब दंग रह गए। 
						अदालतों को अरबी और फारसी के प्रभाव से मुक्त करने में यह 
						घटना काफी मददगार सिद्ध हुई। 
						 
						-रजनीकांत शुक्ल   |