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प्रेरक-प्रसंग

गाँव क्यों उजड़ा
- राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी

गाँव में बरगद था, उस पर उल्लू बैठा करते थे।
गाँव के लोग कहते थे कि जबसे ये उल्लू बैठने लगे हैं, तब से ही हमारा गाँव उजड़ने लगा है।
खैर, एक दिन दूर से उड़ते हुए हंसयुगल ने उस बरगद पर रात काटी।

सबेरा होने पर जब हंसयुगल उड़ने लगा तो उल्लुओं ने हंसिनी को पकड़ लिया। बोले- "यह तो हमारे उलूकराज की रानी है। यह तो अब यहीं रहेगी।"
हंस और उलूकों के बीच बहुत विवाद हुआ। अन्त में इस बात पर हंस राजी हो गया कि इस गाँव के मनुष्यों की पंचायत करवा लो, जो वे कहें मान्य होगा।
उलूकराज पंचों को बुलाने गये तो पंचों से कह आये कि आप सोच लो, एक तो मैं आपके गाँव का हूँ और दूसरे बात यह कि आपको सबेरे-सबेरे खूबसूरती नजर आएगी।
पंच आये, उन्होंने फैसला कर दिया कि भाई, हंसिनी तो उलूकराज की ही है।
बेचारा हंस अपनी हंसिनी से बोला- क्या करूँ?
हंसिनी ने कहा कि अपनी जान बचा कर जाओ, मैं जैसे होगा, देखूँगी। तुम्हें फिर मिलूँगी।

निराश हंस जब उड़ने को हुआ, तो उल्लुओं ने कहा कि हंस! हम कोई मनुष्यों की तरह तो हैं नहीं, हम तो ईश्वर के न्याय पर भरोसा करते हैं! हमें तेरी हंसिनी से क्या लेना था, हमें तो न्याय की दरकार है।
अब तू हमारा न्याय कर दे कि यह गाँव हमारे कारण उजड़ रहा है कि इन पंचों के अन्याय के कारण?
हंस ने कहा कि इन पंचों के अन्याय के कारण।

१ सितंबर २०१७

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